अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 43/ मन्त्र 8
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म
छन्दः - त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
62
यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। ब्र॒ह्मा मा॒ तत्र॑ नयतु ब्र॒ह्मा ब्रह्म॑ दधातु मे। ब्र॒ह्मणे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। ब्र॒ह्मा। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। ब्र॒ह्मा। ब्रह्म॑। द॒धा॒तु॒। मे॒। ब्र॒ह्मणे॑। स्वाहा॑ ॥४३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्र ब्रह्मविदो यान्ति दीक्षया तपसा सह। ब्रह्मा मा तत्र नयतु ब्रह्मा ब्रह्म दधातु मे। ब्रह्मणे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठयत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। ब्रह्मा। मा। तत्र। नयतु। ब्रह्मा। ब्रह्म। दधातु। मे। ब्रह्मणे। स्वाहा ॥४३.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी [ईश्वर वा वेद के जाननेवाले लोग] (दीक्षया) दीक्षा [नियम और व्रत की शिक्षा] और (तपसा सह) तप [वेदाध्ययन, जितेन्द्रियता] के साथ (यान्ति) पहुँचते हैं। (ब्रह्मा) ब्रह्मा [सबसे बड़ा जगत्स्रष्टा परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (ब्रह्मा) ब्रह्म। [परमात्मा] (मे) मुझको (ब्रह्म) वेदज्ञान (दधातु) देवे। (ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥८॥
भावार्थ
जो मनुष्य ब्रह्मज्ञानियों के समान दीक्षा और तप के साथ परमात्मा की प्राप्ति का उपाय करते हैं, वे ही ब्रह्मानन्द भोगते हैं ॥८॥
टिप्पणी
८−(ब्रह्मा) सर्ववृद्धः। जगत्स्रष्टा परमेश्वरः (ब्रह्मा) (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (ब्रह्मणे) जगदुत्पादकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥
भाषार्थ
(दीक्षया) व्रतों नियमों और (तपसा सह) तपश्चर्या के साथ विद्यमान (ब्रह्मविदः) ब्रह्मवेत्ता लोग (यत्र) जहां (यान्ति) जाते हैं, (तत्र) वहां (ब्रह्मा) चारों वेदों का विद्वान् (मा) मुझे (नयतु) पहुंचाए, ले चले। (ब्रह्मा) चारों वेदों का विद्वान् (मे) मुझ में (ब्रह्म) वेदविद्या और ब्रह्मसाक्षात्कार (दधातु) स्थापित करे, और परिपुष्ट करे। (ब्रह्मणे) ब्रह्मा के लिए (स्वाहा) मैं श्रद्धा-भक्ति भेंट करता हूं।
टिप्पणी
[ब्रह्मा= “ब्रह्मा त्वो वदति जातविद्याम्” (ऋ० १०.७१.११)। अर्थात् ब्रह्मा यज्ञों में कर्मों के सम्बन्ध में ज्ञानोपदेश करता है। यदि “ब्रह्मा” पद को “ब्रह्म+आ” में विभक्त किया जाए, तो “ब्रह्म” का अर्थ होगा सब से बड़ा परमेश्वर। “आ” का सम्बन्ध “नयतु” के साथ होकर “आ नयतु” का अर्थ होगा “ले आए”। द्वितीय “आ” का सम्बन्ध होगा “दधातु” के साथ, अर्थात् “आ दधातु” आधान करे। अर्थात् ब्रह्म ही निज कृपा द्वारा मुझे ले आए वहां, जहां कि ब्रह्मवेत्ता लोग जाते है, और ब्रह्म ही मुझ में निज ब्रह्मस्वरूप का आधान करे। इस प्रकार मन्त्रसंख्या १ की व्याख्या में दिये प्रमाण में ब्रह्म नामक परमेश्वर का वर्णन इस मन्त्र में उत्पन्न हो जाता है।]
विषय
ब्रह्मा-ब्रह्म [ज्ञान]
पदार्थ
१. (यत्र) = जहाँ (ब्रह्मविदः) = ब्रह्मज्ञानी पुरुष (दीक्षया तपसा सह) = व्रतसंग्रह व तप के साथ (यान्ति) = जाते हैं, (ब्रह्मा) = वह ज्ञानस्वरूप प्रभु (मा) = मुझे (तत्र नयन्तु) = वहाँ ले-चले। २. इसी दृष्टिकोण से (ब्रह्मा) = वे सर्वज्ञ प्रभु मे मेरे लिए ब्(रह्म दधातु) = ज्ञान को धारण करें। (ब्रह्मणे स्वाहा) = उस सर्वज्ञ प्रभु के प्रति मैं अपना अर्पण करता है।
भावार्थ
मैं सर्वज्ञ प्रभु के स्मरण से ज्ञानरुचि बनकर स्वाध्यायपूर्वक ज्ञान प्रास करूँ और दीक्षित व तपस्वी बनकर उत्तम लोक का भागी बनें।
विषय
ईश्वर से परमपद की प्रार्थना।
भावार्थ
(ब्रह्मा मा तत्र नयतु) मुझे उस पद पर (ब्रह्मा) वेद का परम विद्वान् लेजाय और ब्रह्मा (ब्रह्म मे दधातु) ब्रह्मा, चतुर्वेदज्ञ परमेश्वर और वेदज्ञ ब्रह्म का प्रदान करे, ब्रह्मज्ञान उपदेश करे। (ब्रह्मणे स्वाहा) उस महान् ब्रह्मवेत्ता और ब्रह्म की मैं स्तुति करता हूं। इस सूक्त में अग्नि, सूर्य, चन्द्र, सोम, इन्द्र, आपः और ब्रह्मा यें भौतिक रूप से जब अपनी अपनी शक्ति के प्रतिनिधि हैं और उन उन शक्तियों के देने में समर्थ हैं वे सब भी हमें उस ब्रह्मवेत्ता के पद पर लेजायं अर्थात् वे सब भौतिक शक्तियां हमें उस ब्रह्म के महान् अनन्त शक्ति का बोध करावें। इसके अतिरिक्त ये सब नाना लक्षणों से ईश्वर के नाम हैं। वह हमें सब शक्ति दें और मोक्षपद प्राप्त करावें। परमात्मा के उन सभी अनन्त मात्रा में विद्यमान गुणों को ये भौतिक पदार्थ तो नमूने के रूप में दर्शाते हैं। इसलिये ये परमेश्वर के नाम होकर भी सूर्यादि भौतिक पदार्थों के नाम हैं। इसी प्रकार उन उन गुणों वाले पुरुषों के भी वाचक हैं। अग्नि, सूर्य, चन्द्र, सोम आदि नाम आचार्य, राजा, विद्वान्, उपदेशक शादि के लिये आते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्म, बहवो वा देवता। त्र्यवसानाः। ककुम्मत्यः पथ्यापंक्तयः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma Supreme
Meaning
Where men dedicated to Brahma go, with Diksha and tapas, there may Brahma, the divine sage, lead me. May Brahma bless me with the knowledge and vision of Brahma. Homage to sagely Brahma in truth of word and deed.
Translation
Whither the realizers of the Divine Supreme go with consecration and austerity, may the Lord of knowledge lead me thither; may the Lord of knowledge grant me the sacred knowledge.
Translation
Let Apah, the waters become the sources of establishing immortality in me and...vow occupy. I... Apah.
Translation
Let the Vedic scholar, well versed in all the four Vedas lead me to that high state, where the Vedic scholars, fully conversant with God, revel through their solemn vows and austerity. Let the same Vedic scholar infuse complete knowledge of God into me. My prayers to God and the Vedic scholar.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(ब्रह्मा) सर्ववृद्धः। जगत्स्रष्टा परमेश्वरः (ब्रह्मा) (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (ब्रह्मणे) जगदुत्पादकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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