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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भृगुः देवता - कालः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त
    145

    स॒प्त च॒क्रान्व॑हति का॒ल ए॒ष स॒प्तास्य॒ नाभी॑र॒मृतं॒ न्वक्षः॑। स इ॒मा विश्वा॒ भुव॑नान्यञ्जत्का॒लः स ई॑यते प्रथ॒मो नु दे॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त। च॒क्रान्। व॒ह॒ति॒। का॒लः। ए॒षः। स॒प्त। अ॒स्य। नाभीः॑। अ॒मृत॑म्। नु। अक्षः॑। सः। इ॒मा। विश्वा॑। भुव॑नानि। अ॒ञ्ज॒त्। का॒लः। सः। ई॒य॒ते॒। प्र॒थ॒मः। नु। दे॒वः ॥५३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त चक्रान्वहति काल एष सप्तास्य नाभीरमृतं न्वक्षः। स इमा विश्वा भुवनान्यञ्जत्कालः स ईयते प्रथमो नु देवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त। चक्रान्। वहति। कालः। एषः। सप्त। अस्य। नाभीः। अमृतम्। नु। अक्षः। सः। इमा। विश्वा। भुवनानि। अञ्जत्। कालः। सः। ईयते। प्रथमः। नु। देवः ॥५३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    काल की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (एषः कालः) यह काल [समय] (सप्त) [तीन काल और चार दिशाओं रूपी] सात (चक्रान्) पहियों को (वहति) चलाता है, (अस्य) इसकी (सप्त) [वे ही] सात (नाभीः) नाभि [पहिये के मध्य] हैं, और (अक्षः) [इसका] धुरा (नु) निश्चय करके (अमृतम्) अमरपन है। (सः) वह (इमा) इन (विश्वा) सब (भुवनानि) सत्तावालों को (अञ्जत्) प्रकट करता हुआ [है], (सः कालः) वह काल (नु) निश्चय करके (प्रथमः) पहिला (देवः) देवता [दिव्य पदार्थ] (ईयते) जाना जाता है ॥२॥

    भावार्थ

    काल व्यापक और नित्य है, काल से ही संसार के सब कार्य सिद्ध होते हैं, मनुष्य काल के यथावत् उपयोग से उन्नति को प्राप्त होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सप्त) त्रयः कालाश्चतस्रो दिशश्चेति सप्तसंख्याकान् (चक्रान्) रथाङ्गविशेषान् (वहति) चालयति (कालः) समयः (एषः) सर्वत्र व्यापकः (सप्त) पूर्वोक्ताः (नाभीः) नाभयः। अक्षबन्धकानि मध्यच्छिद्राणि (अमृतम्) अमरत्वम्। अक्षयम् (नु) निश्चयेन (अक्षः) रथावयवः (सः) कालः (इमा) व्याकृतानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) भवनवन्ति चराचरात्मकानि जगन्ति (अञ्जत्) अनक्तेः-शतृ, छान्दसो नुमभावः। अञ्जन्। व्यक्तीकुर्वन् (कालः) (सः) (ईयते) इण् गतौ-कर्मणि यक्। ज्ञायते तत्वज्ञैः (प्रथमः) आदिमः (नु) निश्चयेन (देवः) दिव्यपदार्थः ॥

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    भाषार्थ

    (एषः कालः) यह काल (सप्त चक्रान्) सात चक्रों को (वहति) वहन करता है, उन्हें चला रहा है। (अस्य) इस काल के चक्रों की (सप्त नाभीः) सात नाभियाँ [Navals] हैं। (नु) और निश्चय से (अमृतम्) अमर परमेश्वर (अक्षः) इन नाभियों में लगी धुरा है। (सः) वह काल (इमा विश्वा भुवनानि) इन सब अर्थात् सात चक्राकर भुवनों को (अञ्जत्) अभिव्यक्त करता है। (सः कालः) यह काल मानो (प्रथमः देवः) प्रथम देव अर्थात् परमेश्वर के (नु) सदृश (ईयते) सक्रिय हो रहा है।

    टिप्पणी

    [सप्त चक्रान्= चक्राकार भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यम्—ये सात१ चक्राकार लोक। इन चक्रों में प्रत्येक की एक-एक नाभि [Navel या centre केन्द्र] है, और इन नाभियों में परमेश्वरूपी धुरा इन सातों को परस्पर सम्बद्ध कर रही है। अञ्जत्=वस्तुओं और भुवनों की अभिव्यक्ति या उत्पत्ति नियत कालों में ही होता है। नु=उपमावाचक। यथा—“वक्षस्य नु ते पुरुहुत वयाः” (ऋ० ६.२४.३), पर “वृक्षस्य इव पुरुहूत शाखाः” (निरु० १.२.४)। अक्षः=Axis, Axie।]

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    विषय

    कर्ता-संहर्ता

    पदार्थ

    १. (एषः कालः) = यह सबका संकलन करनेवाला प्रभु (सप्त चक्रान्) = सात चक्राकार में गति करनेवाले लोकों को (वहति) = धारण करता है। 'भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यम् इन व्याहृति शब्दों में इन सात लोकों का प्रतिपादन हुआ है। (सप्त) = सात ही (अस्य) = इस प्रभु के (नाभि:) = [नह बन्धने] बन्धन के साधन हैं। सात छन्दोमयी वेदवाणियाँ हमें उस प्रभु को प्राप्त करानेवाली होती है। इन वेदवाणियों का (अक्ष:) = अध्यक्ष प्रभु (नु) = निश्चय से (अमृतम्) = अमृत है। २. (स:) = वह अमृत प्रभु ही (इमा विश्वा भुवनानि) = इन सब लोकों को (अञ्जत्) = व्यक्त करता हुआ-इनकी सृष्टि करता हुआ (सः) = [षोऽन्तकर्मणि स्यति इति] अन्त करनेवाला है। (काल:) = वह इन सबका फिर से संकलन कर लेता है। (नु) = निश्चय वह (प्रथमः देवः) = सर्वप्रथम देव प्रभु ईयते तत्त्वज्ञों से जाना जाता है। तत्त्वज्ञ पुरुष उसे सृष्टिकर्ता व संहर्ता के रूप में देखते हैं।

    भावार्थ

    वे प्रभु ही सातों लोकों का धारण करते हैं। वे ही इनको प्रकट करते हैं और अन्तत: इन्हें प्रलीन करनेवाले होते हैं। तत्त्वज्ञ लोग ही प्रभु को इस रूप में देखते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kala

    Meaning

    Seven wheels (globes) of whirling worlds does this Time-courser carry. Seven are the naves and axles of this chariot moving on the one axis of Immortal Eternity. He creates and manifests all these worlds of existence. That Time, first, eternal, self-refulgent Divinity, is intensely active, on the move, (and That can be approached but with motionless meditative effort).

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    Translation

    This Time (horse) draws the seven wheels: seven are to naves, verily, the immortality is the axle. Making all the beings manifest, Time, the destroyer (sah), moves on He is the primal deity.

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    Translation

    This Kala bears seven wheels, seven are its names amits axle is immortal. This Kala moves all the worlds (into succession) This Kala is known tie first wondrous power.

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    Translation

    The Kala carries along seven wheels. Seven are its naves and immortality is its axle. The self-same Kala, revealing all these worlds, is truly known to be the Primeval Lord.

    Footnote

    Seven wheels: Six pairs of months and the Malmas i.e., intercalary month. Seven naves: seven seasons of the year or seven chhandas or Vedic metres, it may also refer to seven parts of time: क्षण, पल, हीरा, मुहूर्त, प्रहर, दिन, रात्रि or अहोरात्र, सप्ताह, पक्ष, मास, ऋतु, आयण, सम्वत्सर

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सप्त) त्रयः कालाश्चतस्रो दिशश्चेति सप्तसंख्याकान् (चक्रान्) रथाङ्गविशेषान् (वहति) चालयति (कालः) समयः (एषः) सर्वत्र व्यापकः (सप्त) पूर्वोक्ताः (नाभीः) नाभयः। अक्षबन्धकानि मध्यच्छिद्राणि (अमृतम्) अमरत्वम्। अक्षयम् (नु) निश्चयेन (अक्षः) रथावयवः (सः) कालः (इमा) व्याकृतानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) भवनवन्ति चराचरात्मकानि जगन्ति (अञ्जत्) अनक्तेः-शतृ, छान्दसो नुमभावः। अञ्जन्। व्यक्तीकुर्वन् (कालः) (सः) (ईयते) इण् गतौ-कर्मणि यक्। ज्ञायते तत्वज्ञैः (प्रथमः) आदिमः (नु) निश्चयेन (देवः) दिव्यपदार्थः ॥

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