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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 9
    ऋषिः - भृगुः देवता - कालः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त
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    तेने॑षि॒तं तेन॑ जा॒तं तदु॒ तस्मि॒न्प्रति॑ष्ठितम्। का॒लो ह॒ ब्रह्म॑ भू॒त्वा बिभ॑र्ति परमे॒ष्ठिन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तेन॑। इ॒षि॒तम्। तेन॑। जा॒तम्। तत्। ऊं॒ इति॑। तस्मि॑न्। प्रति॑ऽस्थितम्। का॒लः। ह॒। ब्रह्म॑। भू॒त्वा। बिभ॑र्ति। प॒र॒मे॒ऽस्थिन॑म् ॥५३.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेनेषितं तेन जातं तदु तस्मिन्प्रतिष्ठितम्। कालो ह ब्रह्म भूत्वा बिभर्ति परमेष्ठिनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तेन। इषितम्। तेन। जातम्। तत्। ऊं इति। तस्मिन्। प्रतिऽस्थितम्। कालः। ह। ब्रह्म। भूत्वा। बिभर्ति। परमेऽस्थिनम् ॥५३.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    काल की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (तेन) उस [काल] करके (इषितम्) प्रेरा गया (तेन) उस करके (जातम्) उत्पन्न किया गया (तत्) यह [जगत्] (तस्मिन्) उस [काल] में (उ) ही (प्रतिष्ठितम्) दृढ़ ठहरा है। (कालः) काल (ह) ही (ब्रह्म) बढ़ता हुआ अन्न (भूत्वा) होकर (परमेष्ठिनम्) सबसे ऊँचे ठहरे हुए [मनुष्य] को (बिभर्ति) पालता है ॥९॥

    भावार्थ

    यह जगत् काल के उत्तम उपयोग से उत्पन्न होकर ठहरा हुआ है और उसके ही उत्तम उपयोग से अन्न आदि पाकर मनुष्य उच्च पद पाते हैं ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(तेन) कालेन (इषितम्) प्रेरितम् (तेन) (जातम्) उत्पादितम् (तत्) दृश्यमानं जगत् (उ) उवधारणे (तस्मिन्) काले (प्रतिष्ठितम्) दृढं स्थितम् (कालः) (ह) एव (ब्रह्म) प्रवृद्धमन्नम् (बिभर्ति) पालयति (परमेष्ठिनम्) सर्वोत्कृष्टे पदे स्थितं पुरुषम् ॥

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    भाषार्थ

    (तेन) उस काल द्वारा (इषितम्) प्रेरित, (तेन) उस काल द्वारा (जातम्) उत्पन्न (तत्) वह जगत् (तस्मिन्) उस काल में (उ) निश्चय से (प्रतिष्ठितम्) स्थित है। (कालः ह) काल ही मानो (ब्रह्म भूत्वा) ब्रह्मरूप होकर (परमेष्ठिनम्) परम स्थान अर्थात् द्युलोक में स्थित नक्षत्रादि का भी (बिभर्ति) धारण पोषण करता है।

    टिप्पणी

    [“भूत्वा” द्वारा स्पष्ट है कि काल वस्तुतः ब्रह्म नहीं, अपितु लगभग ब्रह्मवत् शक्तिशाली है। क्योंकि जगत् की उत्पत्ति स्थिति तथा प्रलय काल के अधीन है। परमेश्वर भी कालबद्धसा होकर उत्पत्ति आदि करता है।]

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    विषय

    'ब्रह्म'द्वारा 'ब्रह्मा' का धारण

    पदार्थ

    १. (तेन) = उस काल से ही (इषितम्) = सम्पूर्ण स्रष्टव्य संसार चाहा जाता है [इष्ट-कामितम] [सो अकामयत०]। (तेन जातम्) = उस काल नामक प्रभु से ही यह उत्पन्न किया गया है (उ) = और (तत्) = वह उत्पन्न जगत् (तस्मिन् प्रतिष्ठितम्) = उस काल में ही प्रतिष्ठित है। २. (काल:) = काल ही (ब्रह्म भूत्वा) = सञ्चित सुखरूप अबाध्य परमार्थ तत्त्व होकर (परमेष्ठिनम्) = सर्वोच्च स्थिति में स्थित ब्रह्मा को (बिभर्ति) = धारण करता है। कर्मानुसार सर्वोच्च उत्तम सात्त्विक स्थितिवाला जीव ही ब्रह्मा है। यह उस काल नामक प्रभु से ही धारण किया जाता है।

    भावार्थ

    प्रभु ही सृष्टि की कल्पना करते हैं, इसको उत्पन्न करके इसका धारण करते हैं। 'ब्रह्म' होते हुए ये प्रभु 'ब्रह्मा' [सर्वोच्च सात्विक गतिवाले जीव] का धारण करते हैं।

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    विषय

    ‘काल’ परमेश्वर।

    भावार्थ

    यह जगत् (तेन) उस परमेश्वर ने (इषितम्) चला रक्खा है। (तेन) उसके द्वारा ही (जातम्) उत्पन्न हुआ हैं। (तत्) और वह (तस्मिन्) उस कालरूप परमेश्वर के आश्रय पर ही (प्रतिष्ठितम्) प्रतिष्ठित है। (कालः ह) वह काल ही निश्चय से (ब्रह्म) बृहत् स्वरूप होकर (परमेष्ठिनम्) परम सत्य पर आश्रित समस्त ब्रह्माण्ड को (बिभर्ति) धारण कर रहा है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः सर्वात्मकः कालो देवता। १-४ त्रिष्टुभः। ५ निचृतपुरस्ताद् बृहती। ६-१० अनुष्टुप्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kala

    Meaning

    Inspired and moved by that Time, the moving world in chrological time is created, manifested and stabilised in Time, Kala alone, having become manifest in the created world, bears the highest existent reality.

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    Translation

    Urged by Him, created by Him, all that is set, surely, within Him. Time, becoming the Divine supreme, sustains the Lord, seated in the highest abode.

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    Translation

    This world has been put into motion by that Kala and has been created by that and this has been based on the Kala. Kala being the vast sky holds waters that rain.

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    Translation

    Stirred by Him, created by Him, this universe is firmly stationed in Him alone. The very Kala, being Brahma, the Mighty One, sustains the vast universe, the greatest sacrifice of His.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(तेन) कालेन (इषितम्) प्रेरितम् (तेन) (जातम्) उत्पादितम् (तत्) दृश्यमानं जगत् (उ) उवधारणे (तस्मिन्) काले (प्रतिष्ठितम्) दृढं स्थितम् (कालः) (ह) एव (ब्रह्म) प्रवृद्धमन्नम् (बिभर्ति) पालयति (परमेष्ठिनम्) सर्वोत्कृष्टे पदे स्थितं पुरुषम् ॥

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