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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भृगुः देवता - कालः छन्दः - निचृत्पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - काल सूक्त
    136

    का॒लोऽमूं दिव॑मजनयत्का॒ल इ॒माः पृ॑थि॒वीरु॒त। का॒ले ह॑ भू॒तं भव्यं॑ चेषि॒तं ह॒ वि ति॑ष्ठते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का॒लः। अ॒भूम्। दिव॑म्। अ॒ज॒न॒य॒त्। का॒लः। इ॒माः। पृ॒थि॒वीः। उ॒त। का॒ले। ह॒। भू॒तम्। भव्य॑म्। च॒। इ॒षि॒तम्। ह॒। वि। ति॒ष्ठ॒ते॒ ॥५३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कालोऽमूं दिवमजनयत्काल इमाः पृथिवीरुत। काले ह भूतं भव्यं चेषितं ह वि तिष्ठते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कालः। अभूम्। दिवम्। अजनयत्। कालः। इमाः। पृथिवीः। उत। काले। ह। भूतम्। भव्यम्। च। इषितम्। ह। वि। तिष्ठते ॥५३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    काल की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (कालः) काल [समय] ने (अमूम्) उस (दिवम्) आकाश को (उत) और (कालः) काल ने (इमाः) इन (पृथिवीः) पृथिवियों को (अजनयत्) उत्पन्न किया है। (काले) काल में (ह) ही (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनेवाला (इषितम्) प्रेरा हुआ (ह) ही (वि) विशेष करके (तिष्ठते) ठहरता है ॥५॥

    भावार्थ

    काल को पाकर ही यह दीखता हुआ आकाश और पृथिवी आदि लोक उत्पन्न हुए हैं और परमेश्वर के नियम से भूत और भविष्यत् भी काल के भीतर हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(कालः) म० १। समयः (अमूम्) दृश्यमानाम् (दिवम्) आकाशम् (अजनयत्) उदपादयत् (कालः) (इमाः) दृश्यमानाः (पृथिवीः) पृथिव्यादिलोकान् (उत) अपि च (काले) (ह) एव (भूतम्) अतीतम् (भव्यम्) भविष्यत् (च) (इषितम्) प्रेरितम् (ह) (वि) विशेषेण (तिष्ठते) वर्तते ॥

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    भाषार्थ

    (कालः) काल ने (अमूम्) उस (दिवम्) द्युलोक को (अजनयत्) पैदा किया है। (उत) और (कालः) काल ने (इमाः) इन (पृथिवीः) पृथिवियों अर्थात् पृथिवी चन्द्र और ग्रहों को पैदा किया है। (काले) काल में (ह) ही (भूतम् भव्यम्) भूत और भविष्यत्, (च) और (इषितम्) प्रेरित हुआ वर्तमान जगत् (ह) निश्चय से (वि तिष्ठते) स्थिर है।

    टिप्पणी

    [पृथिवीः=पृथिवी शब्द यहाँ बहुवचनान्त है, इसलिए नाना पृथिवियों का सूचक है। ये नाना पृथिवियाँ ग्रह-उपग्रह रूप हैं।]

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    विषय

    जनिता-धाता

    पदार्थ

    १. (काल:) = वह काल नामक प्रभु ही (अमूं दिवम्) = उस विप्रकृष्ट द्युलोक को (अजनयत्) = उत्पन्न करते (उत) = और (काल:) = वे काल नामक प्रभु ही (इमाः पृथिवी:) = इन 'अवमा, मध्यम, व परमा' पृथिवियों को पैदा करते हैं। २. काले उस काल नामक प्रभु में ह-ही (भूतम्) = भूतकालावच्छिन्न, भव्यम् भविष्यत्कालावच्छिन, (च) = और (इषितम्) = इष्ट-इष्यमाण यह वर्तमानकालावच्छिन्न जगत् निश्चय से (वितिष्ठते) = विशेषेण आश्रित है।

    भावार्थ

    प्रभु ही धुलोक व पृथिवी को पैदा करते हैं। वे ही भूत, भविष्य व वर्तमान लोकों के आधार हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kala

    Meaning

    Kala brought into existence those heavens, and Kala brought these earths into existence. In kala only subsist the past and the future and all that is moved and desired at the present time.

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    Translation

    Time has created that heaven; Time has created these earth as well. In Time, indeed, is located all that has existed and that will ever exist stirred (by Time).

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    Translation

    This Kala creates the Younder heavens and this Kala creates these realms of the earth; the past, present and future rest in Kala and all that moves rest on the time.

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    Translation

    The Kala created these heavenly spheres. Kala also made these terrestrial spheres. In the Kala is verily stationed, in various forms, all what was created before, and all what shall be created in future, and all that is moving on.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(कालः) म० १। समयः (अमूम्) दृश्यमानाम् (दिवम्) आकाशम् (अजनयत्) उदपादयत् (कालः) (इमाः) दृश्यमानाः (पृथिवीः) पृथिव्यादिलोकान् (उत) अपि च (काले) (ह) एव (भूतम्) अतीतम् (भव्यम्) भविष्यत् (च) (इषितम्) प्रेरितम् (ह) (वि) विशेषेण (तिष्ठते) वर्तते ॥

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