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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कपिञ्जलः देवता - ओषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुपराजय सूक्त
    51

    इन्द्रो॑ ह चक्रे त्वा बा॒हावसु॑रेभ्य॒ स्तरी॑तवे। प्राशं॒ प्रति॑प्राशो जह्यर॒सान्कृ॑ण्वोषधे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । ह॒ । च॒क्रे॒ । त्वा॒ । बा॒हौ । असु॑रेभ्य: । स्तरी॑तवे । प्राश॑म् । प्रति॑ऽप्राश: । ज॒हि॒ । अ॒र॒सान् । कृ॒णु॒ । ओ॒ष॒धे॒ ॥२७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो ह चक्रे त्वा बाहावसुरेभ्य स्तरीतवे। प्राशं प्रतिप्राशो जह्यरसान्कृण्वोषधे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । ह । चक्रे । त्वा । बाहौ । असुरेभ्य: । स्तरीतवे । प्राशम् । प्रतिऽप्राश: । जहि । अरसान् । कृणु । ओषधे ॥२७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बुद्धि से विवाद करे, इसका उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष ने (ह) ही (त्वा) तुझको (बाहौ) अपनी भुजा पर (असुरेभ्यः) असुरों से (स्तरीतवे) रक्षा के लिये (चक्रे) किया है। (प्राशम्) [मेरे] प्रश्न के (प्रतिप्राशः) प्रतिवादियों को (जहि) मिटादे, (ओषधे) हे ताप को पीनेवाली [ओषधि के समान बुद्धि ! उन सबको] (अरसान्) फींका (कृणु) कर ॥३॥

    भावार्थ

    (इन्द्र) महाप्रतापी महाबली पुरुष ही अपने बुद्धिबल से (असुर) देवताओं के विरोधी अधर्मियों का नाश करते आये हैं, करते हैं और करेंगे ॥३॥ सायणभाष्य में (स्तरीतवे) के स्थान मे [तरीतवे] है ॥

    टिप्पणी

    ३–इन्द्रः–अ० १।२।३। परमैश्वर्यवान् महाप्रतापी पुरुषः। ह। हन हिंसागत्योः–ड। प्रसिद्धम्। चक्रे। कृञ्–लिट्। कृतवान्। त्वा। त्वाम्। ओषधिम्। बाहौ। कृवापाजिमि०। उ० १।१। इति वह प्रापणे, यद्वा, वाह यत्ने–उण्। यद्वा, अर्जिदृशिकमि०। उ० १।२७। इति वाधृ विहतौ–कु, धस्य हः। वकारबकारयोरेकत्वम्। भुजे। असुरेभ्यः। सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति षु ऐश्वर्यप्रसवयोः–क्रन्। यद्वा, सुर दीप्त्यैश्वर्ययोः–क प्रत्ययः। देवविरोधिभ्यः। अपण्डितेभ्यः। राक्षसेभ्यः सकाशात्। (असुरेभ्यस्तरीतवे) वा शरि। पा० ८।३।३६। खर्परे शरि वा लोपो वक्तव्यः। वार्तिकम्। इति विसर्गलोपः। स्तरीतवे। तुमर्थे सेसेनसेऽसे०। पा० ३।४।९। इति स्तृ प्रीतिरक्षाप्राणनेषु [शब्दकल्पद्रुमकोषे] तवे प्रत्ययः। रक्षितुम् ॥

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    विषय

    इन्द्र द्वारा पाटा का धारण

    पदार्थ

    १. यह पाटा ओषधि भग्न-सन्धानकरी' है, अत: (इन्द्रः) = सेनापति ने (ह) = निश्चय से ही पाटा ओषधे! (त्वा) = तुझे (असरेभ्यः) = असुरों से (तरीतवे) = पार पाने के लिए (बाहौ चक्रे) = अपनी भुजाओं पर धारण किया। संग्राम में विदारणों का भय बना ही रहता है। यह पाटा ओषधि इन विदारणों का सर्वोतम उपचार है, अत: सेनापति इसे सदा अपने समीप रखता है, मानो इसे बाहु पर ही धारण किये रहता है। २. हे (ओषधे) = ओषधे! तू (प्राशम्) = पथ्यसेवी के (प्रतिप्राश:) = विरोधी होकर खा जानेवाले रोगों को (जहि) = नष्ट कर। इन रोगकृमियों को (अरसान् कृणु) = शुष्क कर दे।

    भावार्थ

    पाटा ओषधि भग्नसन्धानकरी है, अतः संग्राम में घावों के उपचार में अत्यन्त उपयुक्त है, इसी से सेनापति इसे सदा समीप रखता है।

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    भाषार्थ

    (इन्द्रः) जीवात्मा ने (त्वा) तुझे (बाहौ) निज बाहु में (चक्रे) किया, पकड़ा, (असुरेभ्यः) असुरों के लिये, (स्तरीतवे) अर्थात् उनके विनाश के लिये (प्राशम्) अर्थ पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    ["बाहौ" पद द्वारा सशरीर जीवात्मा कहा है। स्तृणाति वधकर्मा (निघं० २।१९)। बाहौ=बाहुसंलग्ने हस्ते, यथा "गङ्गायां घोषाः" = गङ्गातटे घोषाः)। मन्त्र में बांधने अर्थ का निर्देशक कोई पद नहीं ।]

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    विषय

    ओषधि के दृष्टान्त से चितिशक्ति का वर्णन ।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, इन्द्र, आत्मा (त्वा) तुझको (असुरेभ्यः) असुर अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह मद आदि दुष्ट भावों को (स्तरीतुम्) विनाश करने के लिये (बाहौ) अपनी बाहुरूप बल वीर्य पर (चक्रे) धारण करता है। शेष पूर्ववत् ।

    टिप्पणी

    ‘तरीतवे’ इति पदच्छेदः सायणसम्मतः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कपिञ्जल ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-४ अनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory

    Meaning

    Indra, the soul, in defence against the onslaughts of negative desires and passions, bears and wears you on the arm. Answer all doubts and questions raised by sceptics and negationists and silence them one by one. Expose them all as empty and meaningless.

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    Translation

    The resplendent one has put you on his arm for defence against evil-forces. May you send a counter-missile against the missile. O herb, maké my rivals sapless, dull and flat.

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    Translation

    The mighty man has this on his arms for his protection from the diseases. This makes the diseases dull becoming counter-questioner to him who questions its efficacy.

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    Translation

    A powerful soul, in order to suppress the demons of lust, indignation, avarice, and infatuation, utilizes thee, O intellect, with his mental force, like that of arms. O intellect, refute thou the adversaries of mine, the debater. O intellect, efficacious like the medicine, that cures fever, render all my opponents in the debate, dull and flat!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–इन्द्रः–अ० १।२।३। परमैश्वर्यवान् महाप्रतापी पुरुषः। ह। हन हिंसागत्योः–ड। प्रसिद्धम्। चक्रे। कृञ्–लिट्। कृतवान्। त्वा। त्वाम्। ओषधिम्। बाहौ। कृवापाजिमि०। उ० १।१। इति वह प्रापणे, यद्वा, वाह यत्ने–उण्। यद्वा, अर्जिदृशिकमि०। उ० १।२७। इति वाधृ विहतौ–कु, धस्य हः। वकारबकारयोरेकत्वम्। भुजे। असुरेभ्यः। सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। इति षु ऐश्वर्यप्रसवयोः–क्रन्। यद्वा, सुर दीप्त्यैश्वर्ययोः–क प्रत्ययः। देवविरोधिभ्यः। अपण्डितेभ्यः। राक्षसेभ्यः सकाशात्। (असुरेभ्यस्तरीतवे) वा शरि। पा० ८।३।३६। खर्परे शरि वा लोपो वक्तव्यः। वार्तिकम्। इति विसर्गलोपः। स्तरीतवे। तुमर्थे सेसेनसेऽसे०। पा० ३।४।९। इति स्तृ प्रीतिरक्षाप्राणनेषु [शब्दकल्पद्रुमकोषे] तवे प्रत्ययः। रक्षितुम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) জীবাত্মা (ত্বা) তোমাকে (বাহৌ) নিজ বাহুতে (চক্রে) করেছে, ধরেছে, (অসুরেভ্যঃ) অসুরদের জন্য, (স্তরীতবে) অর্থাৎ তাদের বিনাশের জন্য (প্রাশম্) প্রকর্ষরূপে ভোজনকারীকে উদ্দিষ্ট করে (প্রতিপ্রাশঃ) প্রতিদ্বন্দ্বী প্রাশকে (ওষধে) হে ঔষধি তুমি (জহি) নাশ করো (অরসান্ কুণু) এবং তাদের রসবিহীন করো।

    टिप्पणी

    ["বাহৌ" পদ দ্বারা সশরীর জীবাত্মা বলা হয়েছে। স্তৃণাতি বধকর্মা (নিঘং০ ২।১৯) বাহৌ = বাহুসংলগ্নে হস্তে, যথা "গঙ্গায়াং ঘোষাঃ" = গঙ্গা তটে ঘোষাঃ)। মন্ত্রে বাঁধনের অর্থের নির্দেশক কোনো পদ নেই।]

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    मन्त्र विषय

    বুদ্ধ্যা বিবাদঃ কর্ত্তব্য ইত্যুপদিশ্যতে

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) পরম্ ঐশ্বর্যবান পুরুষ (হ)(ৎবা) তোমাকে (বাহৌ) নিজের বাহুতে (অসুরেভ্যঃ) অসুরদের থেকে (স্তরীতবে) রক্ষার জন্য (চক্রে) করেছে। (প্রাশম্) [আমার] প্রশ্নের (প্রতিপ্রাশঃ) প্রতিবাদীদের (জহি) বিনাশ করো, (ওষধে) হে তাপ পানকারী [ঔষধির সমান বুদ্ধি ! সেই সকলকে] (অরসান্) ক্ষীণ (কৃণু) করো ॥৩॥

    भावार्थ

    (ইন্দ্র) মহাপ্রতাপশালী মহাবলশালী পুরুষই নিজের বুদ্ধিবল দ্বারা (অসুর) দেবতাদের বিরোধী অধর্মীদের নাশ করে এসেছে, করে এবং করবে ॥৩॥ সায়ণভাষ্যে (স্তরীতবে) এর স্থানে [তরীতবে] আছে ॥

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