Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 32 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 5
    ऋषिः - काण्वः देवता - आदित्यगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृमिनाशक सूक्त
    74

    ह॒तासो॑ अस्य वे॒शसो॑ ह॒तासः॒ परि॑वेशसः। अथो॒ ये क्षु॑ल्ल॒का इ॑व॒ सर्वे॒ ते क्रिम॑यो ह॒ताः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ह॒तास॑: । अ॒स्य॒ । वे॒शस॑: । ह॒तास॑: । परि॑ऽवेशस: । अथो॒ इति॑ । ये । क्षु॒ल्ल॒का:ऽइ॑व । सर्वे॑ । ते । क्रिम॑य: । ह॒ता: ॥३२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हतासो अस्य वेशसो हतासः परिवेशसः। अथो ये क्षुल्लका इव सर्वे ते क्रिमयो हताः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हतास: । अस्य । वेशस: । हतास: । परिऽवेशस: । अथो इति । ये । क्षुल्लका:ऽइव । सर्वे । ते । क्रिमय: । हता: ॥३२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 32; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कीड़ों के समान दोषों का नाश करे, इसका उपदेश।

    पदार्थ

    (अस्य) इस [क्रिमी] के (वेशसः) मुख्य सेवक (हतासः=हताः) नष्ट हों और (परिवेशसः) साथी भी (हतासः) नष्ट हों। (अथो=अथ–उ) और भी (ये) जो (क्षुल्लकाः इव) बहुत सूक्ष्म आकारवाले से हैं, (ते) वे (सर्वे) (क्रिमयः) कीड़े (हताः) नष्ट हों ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपनी स्थूल और सूक्ष्म कुवासनाओं का और उनकी सामग्री का सर्वनाश कर दे, जैसे रोगजनक जन्तुओं को औषध आदि से नष्ट करते हैं ॥५॥

    टिप्पणी

    ५–हतासः। असुक् आगमः। हताः। वेशसः। मिथुनेऽसिः। उ० ४।२२३। इति बाहुलकाद् अमिथुनेऽपि। विश–असि प्रत्ययः। प्रवेशकाः। मुख्यसेवकाः। परिवेशसः। परितः स्थिताः। अनुचराः। अथो। अपि च क्षुल्लकाः। क्षुद्+लकाः। क्षुद्रि संपेषणे–क्विप्+लक आस्वादे, प्राप्तौ–अच्। तोर्लि। पा० ८।४।६०। इति परसवर्णः। क्षुदं क्षुद्रत्वं लाकयन्ति प्राप्नुवन्ति ते क्षुल्लकाः। सूक्ष्माकाराः क्षुद्रजन्तवः। अन्यद् व्याख्यातम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बीजोच्छेद

    पदार्थ

    १. (अस्य) = इस कृमि-कुल के (वेशस:) = निवेशनस्थानभूत मुख्य गृह ही (हतास:) = नष्ट कर दिये गये हैं। जैसे जलाकर घर को नष्ट कर दिया जाता है, उसी प्रकार कृमियों के बनाये गये घर को नष्ट कर दिया गया है। (परिवेशस:) = इस कृमिकुलगृह के चारों ओर स्थित गृह भी (हतासः) = नष्ट कर दिये गय हैं। जो त्वचा व्रणित होती है उसे तो ओषध से जलाते ही हैं, उसके आस-पास के कुछ भाग को भी जला देते हैं। २. (अथ उ) = और अब (ये) = जो (क्षुल्लाका: इव) = बीज अवस्था में सूक्ष्मरूप, दुर्लक्ष से (क्रिमय:) = कृमि हैं, (ते सर्वे) = वे सबके सब हतः नष्ट कर दिये गये हैं।

    भावार्थ

    नीरोगता के लिए आवश्यक है कि कृमियों का बीजोच्छेद ही कर दिया जाए।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अस्य) इस क्रिमि-राजा के (वेशस:) गृह में प्रविष्ट, (परिवेशसः) तथा चारों ओर के घरों में प्रविष्ट [परिचर-भृत्यादि] (हताः) मर गए हैं, या मार दिये गए हैं (अथो) तथा (ये क्षुल्लका इव) क्षुद्रसदृश हैं (ते सर्व क्रिमयः हताः) वे सब क्रिमि मर गये है, या मार दिये हैं ।

    टिप्पणी

    [क्षुल्लकाः= क्षुत् (क्षुधा)+ ला (आदाने, अदादिः), जोकि क्षुधा के कारण समीप लाए गये हैं, नौकरी के लिये लाए गये हैं।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रोगकारी क्रिमियों के नाश करने का उपदेश ।

    भावार्थ

    (अस्य) इस शत्रु के जिस प्रकार (वेशसः) सेवक और भीतरी अन्तरंग पुरुषों और (परिवेशसः) बाहर के रक्षकों को मार दिया जाता है और जिस प्रकार जो (क्षुल्लकाः) उसके और छोटे मोटे सहचर हों उनको भी मार दिया जाता है उसी प्रकार (अस्य) इस विनाश करने योग्य रोग-जन्तु के (वेशसः) भीतरी आश्रय स्थानों या मुख्य जीवों को और (परिवेशसः) उनसे मिलते जुलते उस वर्ग के अन्य कीटों को भी (हतासः) मारा जाय । (अथो) और (ये) जो (क्षुल्लकाः) अत्यन्त क्षुद्र, झिल्ली के रूप में या अण्डों के रूप में उनके बीजभूत (इव) से हैं (ते सर्वे) वे सब (क्रिमयः) रोगसंक्रामक जीव (हताः) मार दिये जायँ तभी रोग दूर हो सकता है।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘क्षुल्लका’ इति नेदं पदं ‘क्षुद्रक’ पदस्य प्राकृतं रूपमपि त्वार्षम् तैत्तिरीयारण्यकगतं ‘क्षुद्रक’ पदमस्य व्याख्यानम्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कण्व ऋषिः। आदित्यो देवता। १ त्रिपदा भुरिग् गायत्री। २-५ अनुष्टुभः। चतुष्पदा निचृदुष्णिक्। षडृचं सूक्तम्।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elimination of Insects

    Meaning

    Killed are those of similar species and their vassals. Killed are their all round defences and resistances. And killed are all those which are too small and vile. Thus all those visible and invisible germs and insects are killed alike and together.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Neighbours. of this worm are killed, and killed are its acquaintances (further neighbours). Whosoever was a smaller fry, the ksullakās, all of them have been killed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Thus slain are their superiors and slain are their followers and retinices and slain are all those germs which have tiniest existence.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Slain are his ministers, and slain his followers and retinue: yea, those that seemed the tiniest things, the worms have all been put to death.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५–हतासः। असुक् आगमः। हताः। वेशसः। मिथुनेऽसिः। उ० ४।२२३। इति बाहुलकाद् अमिथुनेऽपि। विश–असि प्रत्ययः। प्रवेशकाः। मुख्यसेवकाः। परिवेशसः। परितः स्थिताः। अनुचराः। अथो। अपि च क्षुल्लकाः। क्षुद्+लकाः। क्षुद्रि संपेषणे–क्विप्+लक आस्वादे, प्राप्तौ–अच्। तोर्लि। पा० ८।४।६०। इति परसवर्णः। क्षुदं क्षुद्रत्वं लाकयन्ति प्राप्नुवन्ति ते क्षुल्लकाः। सूक्ष्माकाराः क्षुद्रजन्तवः। अन्यद् व्याख्यातम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অস্য) এই কৃমি-রাজা এর (বেশসঃ) গৃহে প্রবিষ্ট, (পরিবেশসঃ) এবং চারিদিকের ঘরে প্রবিষ্ট [পরিচর-ভৃত্যাদি] (হতাঃ) নিহত হয়েছে, বা বিনষ্ট করা হয়েছে। (অথো) এবং (যে ক্ষুল্লকা ইব) ক্ষুদ্রসদৃশ (তে সর্বে ক্রিময়ঃ হতাঃ) সেই সকল কৃমি নিহত হয়েছে, বা বিনষ্ট করে দেওয়া হয়েছে। [ক্ষুল্লকাঃ=ক্ষুৎ (ক্ষুধা)+ লা (আদানে, অদাদিঃ), যা ক্ষুধার কারণে সমীপে নিয়ে আসা হয়েছে, সেবার জন্য নিয়ে আসা হয়েছে।]

    टिप्पणी

    [ক্ষুল্লকাঃ=ক্ষুৎ (ক্ষুধা)+ লা (আদানে, অদাদিঃ), যা ক্ষুধার কারণে সন্নিকটে নিয়ে আসা হয়েছে, সেবার জন্য নিয়ে আসা হয়েছে।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    ক্রিমিতুল্যান্ দোষান্ নাশয়েৎ, ইত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অস্য) এই [কৃমির] (বেশসঃ) মুখ্য সেবক (হতাসঃ=হতাঃ) বিনষ্ট হোক এবং (পরিবেশসঃ) সাথীও (হতাসঃ) বিনষ্ট হোক। (অথো=অথ–উ) এবং (যে) যে (ক্ষুল্লকাঃ ইব) অনেক সূক্ষ্ম আকারবিশিষ্ট, (তে) সেই (সর্বে) সকল (ক্রিময়ঃ) কৃমি (হতাঃ) বিনষ্ট হোক ॥৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য নিজের স্থূল ও সূক্ষ্ম কুবাসনার এবং সেগুলোর সামগ্রীর সর্বনাশ করুক, যেমন রোগজনক জন্তুদের ঔষধ আদি দ্বারা নষ্ট করা হয় ॥৫॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top