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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 6
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुषी गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    32

    क्वाह॑तं॒ परा॑स्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व । आह॑त॒म् । परा॑स्य: ॥१२९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्वाहतं परास्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व । आहतम् । परास्य: ॥१२९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (साधुम्) साधु [कार्य साधनेवाले], (हिरण्ययम्) तेजोमय (पुत्रम्) पुत्र [सन्तान] को (क्व) कहाँ (आहतम्) ताडा हुआ (परास्यः) तूने दूर फेंक दिया है ॥, ६॥

    भावार्थ

    सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावें ॥३-६॥

    टिप्पणी

    ६−(क्व) कुत्र (आहतम्) ताडितम् (परास्यः) असु क्षेपणे। परा दूरे आस्यः अक्षिपः ॥

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    विषय

    तीन शपथें

    पदार्थ

    साधक गतमन्त्र में वर्णित अपनी हरिक्निका नामक चित्तवृत्ति से ही पूछता है कि तू (तम्) = उस प्रभु को (क्व आह) = कहाँ कहती है? वे प्रभु कहाँ हैं? २. साधक ही (पुन:) = कहता है कि क्या तू यह कहती है कि (स्य:) = वे प्रभु (परा) = परे व दूर है। वहाँ (यत्र) = जहाँ कि (अमू:) = वे (तिस्त्र:) = तीन (शिशपा:) = [शि-good fortune; tranquiling: Shiva; शिव । शप्-take an oath] शपथें ली जाती हैं कि हम [क] सुपथ से धन कमाएँगे, [ख] जीवन को शान्त रखेंगे, और [ग] प्रभु-प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाएँगे।

    भावार्थ

    प्रभु का निवास उस व्यक्ति में होता है जो [क] सुपथ से धन कमाता है [ख] शान्तवृत्ति का बनता है और [ग] प्रभु-प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है।

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    भाषार्थ

    (परास्यः) जीवात्मा को पराङ्मुख कर उसे विषयों में फैंकनेवाली राजसिक और तामसिक चित्तवृत्तियो! तुमने (क्व) कहाँ (आहतम्) आघात किया, प्रहार किया है?

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    विषय

    वीर सेना और गृहस्थ में स्त्री का वर्णन।

    भावार्थ

    सेना उत्तर देती है—(साधुं) शत्रुओं को वश करने में समर्थ (पुत्रम्) पुरुषों की रक्षा करने हारे, दुःखों से बचाने वाले (हिरण्ययम्) तेजस्वी पुरुष को चाहती हूं॥ ५ सेनापक्ष में—(ह) निश्चय से (क्व) कहां तू (तम्) उसको (परा अस्यः) दूर फेंक सकती है। अथवा (अहतं क्वव परास्यः) बलपूर्वक अघात खाये हुए बाण को तू दूर कहां फेंकती है ?॥ ६॥ स्त्री के पक्ष में—स्त्री कहती है-(साधुं हिरण्ययं पुत्रम्) उत्तम, तेजस्वी पुत्र को चाहती हूं। पुनः पति पूछता है—हे स्त्रि ! तू निश्चय से (तं) उस बालक को (क्व) कहां (परास्यः) दूर करेगी, कहां छोड़ेगी ?

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथ ऐतशप्रलापः॥ ऐतश ऋषिः। अग्नेरायुर्निरूपणम्॥ अग्नेरायुर्यज्ञस्यायात यामं वा षट्सप्ततिसंख्याकपदात्मकं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Where is the hit, that which ought to be hit and rejected?

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    Translation

    Where do now you leave him?

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    Translation

    Where do now you leave him ?

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    Translation

    All the three are full powerful.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(क्व) कुत्र (आहतम्) ताडितम् (परास्यः) असु क्षेपणे। परा दूरे आस्यः अक्षिपः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সাধুম্) সাধু [কার্য সাধনকারী], (হিরণ্যযম্) তেজোময় (পুত্রম্) পুত্রকে [সন্তানকে] (ক্ব) কোথায় (আহতম্) তাড়িত করে (পরাস্যঃ) তুমি দূরে নিক্ষেপ করেছো॥৫, ৬॥

    भावार्थ

    সৃষ্টির মাঝে মা নিজের পুরুষের প্রতি প্রীতিপূর্বক সন্তান উৎপন্ন করে, সেই সন্তানকে কুমার্গ থেকে রক্ষা করে তেজস্বী ও সদাচারী করুক ॥৩-৬॥

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    भाषार्थ

    (পরাস্যঃ) জীবাত্মাকে পরাঙ্মুখ করে তাকে বিষয়-সমূহের দিকে প্রেরণকারী/নিক্ষেপকারী রাজসিক এবং তামসিক চিত্তবৃত্তি-সমূহ! তোমরা (ক্ব) কোথায় (আহতম্) আঘাত করেছো, প্রহার করেছো?

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