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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 7
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    42

    यत्रा॒मूस्तिस्रः॑ शिंश॒पाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑ । अ॒मू: । तिस्र॑: । शिंश॒पा: ॥१२९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्रामूस्तिस्रः शिंशपाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र । अमू: । तिस्र: । शिंशपा: ॥१२९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्र) जहाँ (अमूः) वे (तिस्रः) तीन [माता, पिता और आचार्य रूप प्रजाएँ] (शिंशपाः) बालक को पालनेवाली हैं ॥७॥

    भावार्थ

    जिस कुल में माता, पिता और आचार्य सुशिक्षक है, वहाँ सन्तान सदा सुखी रहते हैं, और जैसे अजगर साँप अपने श्वास से खैंचकर प्राणियों को खा जाते हैं, वैसे ही विद्वान् सन्तानों को तीनों क्लेश नहीं सताते हैं ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    ७−(यत्र) यस्मिन् कुले (अमूः) प्रसिद्धाः (तिस्रः) मातापित्राचार्यरूपाः प्रजाः (शिंशपाः) छान्दसं रूपम्। शिशुपाः। बालानां पालिकाः ॥

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    विषय

    तीन शपथें

    पदार्थ

    साधक गतमन्त्र में वर्णित अपनी हरिक्निका नामक चित्तवृत्ति से ही पूछता है कि तू (तम्) = उस प्रभु को (क्व आह) = कहाँ कहती है? वे प्रभु कहाँ हैं? २. साधक ही (पुन:) = कहता है कि क्या तू यह कहती है कि (स्य:) = वे प्रभु (परा) = परे व दूर है। वहाँ (यत्र) = जहाँ कि (अमू:) = वे (तिस्त्र:) = तीन (शिशपा:) = [शि-good fortune; tranquiling: Shiva; शिव । शप्-take an oath] शपथें ली जाती हैं कि हम [क] सुपथ से धन कमाएँगे, [ख] जीवन को शान्त रखेंगे, और [ग] प्रभु-प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाएँगे।

    भावार्थ

    प्रभु का निवास उस व्यक्ति में होता है जो [क] सुपथ से धन कमाता है [ख] शान्तवृत्ति का बनता है और [ग] प्रभु-प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है।

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    भाषार्थ

    हमने वहाँ आघात अर्थात् प्रहार किया है (यत्र) जहां कि (अमूः) वे प्रसिद्ध (तिस्रः) तीन (शिंशपाः) शापरूप वृत्तियाँ हैं, अर्थात् राजसिक, तामसिक तथा राजसिक और तामसिक मिश्रित चित्तवृत्तियाँ निवास करती हैं।

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    विषय

    वीर सेना और गृहस्थ में स्त्री का वर्णन।

    भावार्थ

    सेनापक्ष में—(यत्र) जहां (अमूः) वे दूर शत्रु सेनाएं (शिंशपाः) अति निन्दाजनक वचन कह रही हैं वहां ही मैं शस्त्रास्त्र फेंकती हूँ। स्त्री—(यत्र) जहां (अमूः) वे दूरस्थ (शिंशपाः) शिशु बालकों के पालन करने वाले माता, पिता, आचार्य अथवा पालकों के समान पालक तीनों (शिशपाः) वेदविद्याएं हों, या वाणी, मन और कर्म तीनों की पालक संस्थाएं हों, वहां मैं अपने बालक को छोड़ दूंगी।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथ ऐतशप्रलापः॥ ऐतश ऋषिः। अग्नेरायुर्निरूपणम्॥ अग्नेरायुर्यज्ञस्यायात यामं वा षट्सप्ततिसंख्याकपदात्मकं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    There where those cursed and cursing ones, three mental fluctuations reside and lurk on.

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    Translation

    There where are three upbringing personalities-the father, mother and preceptor.

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    Translation

    There where are three upbringing personalities-the father, mother and preceptor.

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    Translation

    All the three sit, lighting up the root cause (i.e., the creation of the universe or birth of a newly born).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(यत्र) यस्मिन् कुले (अमूः) प्रसिद्धाः (तिस्रः) मातापित्राचार्यरूपाः प्रजाः (शिंशपाः) छान्दसं रूपम्। शिशुपाः। बालानां पालिकाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপ্রয়ত্নোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যত্র) যেখানে (অমূঃ) তাঁরা (তিস্রঃ) তিনজন [মাতা, পিতা এবং আচার্য রূপ প্রজা] (শিংশপাঃ) বালকের পালক হয় ॥৭॥

    भावार्थ

    যে কুলে মাতা, পিতা এবং আচার্য সুশিক্ষক হয়, সেখানে সন্তান সদা সুখী থাকে, এবং অজগর সাপ যেমন নিজের শ্বাসের মাধ্যমে টেনে প্রাণীদের খেয়ে ফেলে, তেমনই বিদ্বান সন্তানদের তিনটি ক্লেশ উদ্বিগ্ন করে না॥৭-১০॥

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    भाषार्थ

    আমরা সেখানে আঘাত অর্থাৎ প্রহার করেছি (যত্র) যেখানে (অমূঃ) সেই প্রসিদ্ধ (তিস্রঃ) তীইন (শিংশপাঃ) অভিশাপরূপ বৃত্তি আছে, অর্থাৎ রাজসিক, তামসিক তথা রাজসিক এবং তামসিক মিশ্রিত চিত্তবৃত্তি নিবাস করে।

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