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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२०
    75

    इन्द्र॑श्च मृ॒लया॑ति नो॒ न नः॑ प॒श्चाद॒घं न॑शत्। भ॒द्रं भ॑वाति नः पु॒रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । च॒ । मृ॒लया॑ति । न॒: । न । न॒: । प॒श्चात् । अ॒घम् । न॒श॒त् ॥ भ॒द्रम् । भ॒वा॒ति॒ । न॒: । पु॒र: ॥२०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रश्च मृलयाति नो न नः पश्चादघं नशत्। भद्रं भवाति नः पुरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । च । मृलयाति । न: । न । न: । पश्चात् । अघम् । नशत् ॥ भद्रम् । भवाति । न: । पुर: ॥२०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 20; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (च) निश्चय करके (नः) हमें (मृलयाति) सुखी करे, (अघम्) पाप (नः) हमको (पश्चात्) पीछे (न)(नशत्) नाश करे। (भद्रम्) कल्याण (नः) हमारे लिये (पुरस्तात्) आगे (भवाति) होवे ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि धर्मात्मा राजा के प्रबन्ध में रहकर पापों से बचकर सुख भोगें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (च) अवधारणे (मृलयाति) डस्य लः। मृडयाति सुखयेत् (नः) अस्मान् (न) निषेधे (नः) अस्मान् (पश्चात्) पश्चात् काले (अघम्) पापम् (नशत्) नाशयेत् (भद्रम्) कल्याणम् (भवाति) भूयात् (नः) अस्मभ्यम् (पुरः) पुरस्तात् (अग्रे) ॥

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    विषय

    पाप-विनाश व कल्याण-प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (च) = [चेत्] यदि (इन्द्रः) = वे सर्वशक्तिमान् प्रभु (न: मृडयाति) = हमें अनुगृहीत करते हैं तो (अधम्) = पाप व दु:ख (न: पश्चात्) = हमारे पीछे (न नशत्) = नहीं प्राप्त होता। प्रभु का अनुग्रह होने पर पाप हमारे पीछे आ ही नहीं पाता। २. उस समय (नः पुर:) = हमारे सामने (भद्रं भवाति) = कल्याण ही-कल्याण होता है।

    भावार्थ

    प्रभु के अनुग्रह से पाप नष्ट होता है और कल्याण प्राप्त होता है।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) परमेश्वर (नः) हमें जब (मृलयाति) सुखी कर देता है, आनन्दरस द्वारा आनन्दित कर देता है, (पश्चात्) तत्पश्चात् (नः) हमें (अघम्) पाप (न नशत्) नहीं प्राप्त होता। क्योंकि (नः) हमारे (पुरः) सामने वह परमेश्वर (भद्रं भवाति) सदा सुखदायी और कल्याणकारी रूप में रहता है।

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    विषय

    परमेश्वर से प्रार्थना और सेनापति और राजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (इन्द्रः च) इन्द्र राजा और परमेश्वर ही (नः) हमें (मृलयाति) सुखी करे, हम पर कृपा करे। (नः पश्चात्) हमारे पीछे (अघं) पाप या दुःख (न नशत्) न लगे। (नः पुरः) हमारे आगे सदा (भद्रं भवाति) कल्याण और सुख सदा हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-४ विश्वामित्रः। ५-७ गृत्समदः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    May Indra, lord omnipotent, and the sun bless us with peace and comfort, and may sin and evil, we pray, never touch us either before or after, and may good alone be our share and fortune for all time.

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    Translation

    Let mighty ruler make us happy, let not evil and offences follow after us and let there be grace in our front.

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    Translation

    Let mighty ruler make us happy, let not evil and offences follow after us and let there be grace in our front.

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    Translation

    The Adorable God blesses us with peace and happiness. Let no evil and trouble assail us from behind. Let there be peace and well-being in our front.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (च) अवधारणे (मृलयाति) डस्य लः। मृडयाति सुखयेत् (नः) अस्मान् (न) निषेधे (नः) अस्मान् (पश्चात्) पश्चात् काले (अघम्) पापम् (नशत्) नाशयेत् (भद्रम्) कल्याणम् (भवाति) भूयात् (नः) अस्मभ्यम् (पुरः) पुरस्तात् (अग्रे) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান্ রাজন্] (চ) নিশ্চিতরূপে (নঃ) আমাদের (মৃলয়াতি) সুখী করে/করুক, (অঘম্) পাপ যেন (নঃ) আমাদের (পশ্চাৎ) পেছনে (ন) না (নশৎ) নাশ করে। (ভদ্রম্) কল্যাণ (নঃ) আমাদের জন্য (পুরস্তাৎ) সামনে (ভবাতি) হোক।।৬।।

    भावार्थ

    মনুষ্যদের উচিৎ, ধর্মাত্মা রাজার নিয়ন্ত্রাধীন ব্যবস্থায় থেকে পাপ থেকে রক্ষা পেয়ে/দূরে থেকে সুখ ভোগ করা।।৬।।

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) পরমেশ্বর (নঃ) আমাদের যখন (মৃলয়াতি) সুখী করেন, আনন্দরস দ্বারা আনন্দিত করেন, (পশ্চাৎ) তৎপশ্চাৎ (নঃ) আমাদের (অঘম্) পাপ (ন নশৎ) না প্রাপ্ত হয়। কেননা/কারণ (নঃ) আমাদের (পুরঃ) সামনে সেই পরমেশ্বর (ভদ্রং ভবাতি) সদা সুখদায়ী এবং কল্যাণকারী রূপে থাকে।

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