अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 4
आदङ्गि॑राः प्रथ॒मं द॑धिरे॒ वय॑ इ॒द्धाग्न॑यः॒ शम्या॒ ये सु॑कृ॒त्यया॑। सर्वं॑ प॒णेः सम॑विन्दन्त॒ भोज॑न॒मश्वा॑वन्तं॒ गोम॑न्त॒मा प॒शुं नरः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआत् । अङ्गि॑रा: । प्र॒थ॒मम् । द॒धि॒रे॒ । वय॑: । इ॒द्धऽअ॑ग्नय: । शम्या॑ । ये । सु॒ऽकृ॒त्यया॑ ॥ सर्व॑म् । प॒णे: । सम् । अ॒वि॒न्द॒न्त॒ । भोज॑नम् । अश्व॑ऽवन्तम् । गोऽम॑न्तम् । आ । प॒शुम् । नर॑: ॥२५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
आदङ्गिराः प्रथमं दधिरे वय इद्धाग्नयः शम्या ये सुकृत्यया। सर्वं पणेः समविन्दन्त भोजनमश्वावन्तं गोमन्तमा पशुं नरः ॥
स्वर रहित पद पाठआत् । अङ्गिरा: । प्रथमम् । दधिरे । वय: । इद्धऽअग्नय: । शम्या । ये । सुऽकृत्यया ॥ सर्वम् । पणे: । सम् । अविन्दन्त । भोजनम् । अश्वऽवन्तम् । गोऽमन्तम् । आ । पशुम् । नर: ॥२५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(ये) जिन (इद्धाग्नयः) अग्नि के प्रकाश करनेवाले (अङ्गिराः) अङ्गिराओं [ज्ञानी ऋषियों] ने (प्रथमम्) श्रेष्ठ (वयः) जीवन को (सुकृत्यया) सुन्दर रीति से करने योग्य (शम्या) शान्तिदायक कर्म से (दधिरे) धारण किया था, (आत्) तब ही (नरः) उन नेताओं ने (पणेः) उद्यम से (सर्वम्) सब (भोजनम्) भोजन [पालन साधन धन अन्न आदि], (अश्वावन्तम्) उत्तम घोड़ोंवाले (आ) और (गोमन्तम्) उत्तम गौओंवाले (पशुम्) पशुसमूह को (सम्) अच्छे प्रकार (अविन्दन्त) पाया है ॥४॥
भावार्थ
जो अग्निविद्या में कुशल, पुरुषार्थी, विज्ञानी लोग धार्मिक कर्म करके उत्तम जीवन बनाते हैं, वे ही उद्योग करके सब प्रकार से सुख पाते हैं ॥४॥
टिप्पणी
४−(आत्) अनन्तरम् (अङ्गिराः) अ० १९।३४।। अगि गतौ-किरच् नित्। विज्ञानिनः। ऋषयः (प्रथमम्) श्रेष्ठम् (दधिरे) धारितवन्तः (वयः) जीवनम् (इद्धाग्नयः) प्रकाशिताग्नयः। अग्निविद्याकुशलाः (शम्या) शमु उपशमे-इन्, ङीप्। शान्तिप्रदेन कर्मणा-निघ० २।१ (ये) (सुकृत्यया) शोभनकर्तव्ययुक्तया (सर्वम्) (पणेः) पण व्यवहारे स्तुतौ च-इन्। उद्योगात् (सम्) सम्यक् (अविन्दन्त) अलभन्त (भोजनम्) धननाम-निघ० २।१०। भोजनसाधनं धनान्नादिकम् (अश्वावन्तम्) म० १। प्रशस्ततुरङ्गयुक्तम् (गोमन्तम्) उत्तमधेनुयुक्तम् (आ) समुच्चये (पशुम्) पशुसमूहम् (नरः) नेतारः ॥
विषय
सुकृत्यया शम्या
पदार्थ
१. (आत्) = गतमन्त्र के अनुसार ज्ञान व कर्मरूप भित्तियों पर भक्तिरूप छत के धारण करने के बाद [आत् अनन्तरमेव] ही (ये अङ्गिरा:) = जो ये गतिशील पुरुष [अगि गतौ] थे, वे (सुकृत्यया) = उत्तम रीति से किये जानेवाले (शम्या) = कों से (इद्धाग्नयः) = दीप्त अग्निवाले बनकर यज्ञ आदि कर्मों को करनेवाले होकर प्(रथमं वयः दधिरे) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करते थे। २. ये अङ्गिरा लोग (पणे:) = [पण व्यवहारे] उत्तम व्यवहारों के द्वारा सर्व भोजन-सम्पूर्ण पालन व पोषण के लिए अवश्यक सामग्री को समविन्दन्त प्राप्त करते थे। यह भोजन (अश्वावन्तम्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला व (गोमन्तम्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियोंवाला हुआ और इस सात्विक भोजन का सेवन करते हुए (नरः) = इस उन्नति-पथ पर चलनेवाले लोगों में (आ पशुम्) = सब ओर उस सर्वद्रष्टा प्रभु को पाया-ये सर्वत्र प्रभु की महिमा को देखनेवाले बनें।
भावार्थ
हम यज्ञादि कर्मों को करते हुए उत्तम जीवनवाले बनें। उत्तम व्यवहारों से सात्विक भोजनों को प्राप्त करके प्रशस्तेन्द्रिय बनें। उन्नति-पथ पर चलते हुए हम सर्वत्र प्रभु की महिमा को देखें।
भाषार्थ
(आत्) तदनन्तर अर्थात् सुखदायिनी और कल्याणकारिणी शक्ति को प्राप्त करके (अङ्गिराः) प्राणायामाभ्यासी (नरः) उपासक-नेताओं ने (प्रथमं वयः) सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक अन्न अर्थात् परमेश्वर को (दधिरे) योगविधि द्वारा धारण किया। (ये) जिन्होंने कि (शम्या सुकृत्यया) योगविधि की शान्तिप्रद उत्तम क्रियाओं द्वारा (इद्धाग्नयः) परमेश्वरीय-ज्योति को प्रदीप्त किया। मानो उन अभ्यासियों ने (पणेः) वेदवक्ता परमेश्वर से (सर्वं भोजनम्) सब प्रकार के भोजन (अश्वावन्तम्) अश्वों समेत तथा (गोमन्तम्) गौओं समेत, और (पशुम्) सब प्रकार की पशु-सम्पत्ति को (सम् अविन्दन्त) प्राप्त कर लिया। अर्थात् परमेश्वरीय ज्योति प्राप्त होने पर सब कुछ प्राप्त हो गया।
टिप्पणी
[वयः=अन्नम् (निघं০ २.७)। परमेश्वर आध्यात्मिक अन्न है, जिसे पाकर आत्मा तृप्त हो जाती है। कहा है कि ‘अहमन्नम्, अहमन्नादः’ (तै০ उप০ ३.१०.६), परमेश्वर कहता है कि ‘मैं अन्न हूँ, और मैं अन्नाद भी हूँ। उपासकों के लिए परमेश्वर ‘अन्न’ है। प्रलय में सबको अन्तर्लीन कर लेने पर वह ‘अन्नाद’ है। इसी प्रकार वेदान्त में परमेश्वर को ‘अत्ता’ कहा है। अत्ता चराचरग्रहणात् (वेदान्त १.२.९)। पणेः=पण स्तुतौ। प्रथमं वयः=अथवा वे सर्वश्रेष्ठ जीवन को धारण करते हैं।]
विषय
राजा का कर्त्तव्य।
भावार्थ
मनुष्य जिस प्रकार (शम्या) शमी वृक्ष की लकड़ी से (इद्धाग्नयः) अग्नि प्रदीप्त करते हैं उसी प्रकार (ये) जो (सुकृत्यया) अपनी उत्तम धर्मानुकूल क्रिया या आचरण द्वारा (इद्धाग्नयः) अपने अग्निहोत्रादि की अग्नियों और नेताओं को प्रज्वलित करते हैं वे (अंगिराः) ज्ञानवान् पुरुष (प्रथमम्) सबसे उत्कृष्ट (वयः) अन्न ज्ञान और बल को (दधिरे) धारण करते हैं। वे ही लोग (पणेः) व्यवहारशील लोगों के लिये (सर्वं भोजनम्) समस्त भोगों को (सम् अविन्दन्त) प्राप्त करते हैं वे (नरः) पुरुष ही (अश्वावन्तं गोमन्तं पशुम्) घोड़ों और गौओं से समृद्ध पशु धन को भी (सम् अविन्दन्त) प्राप्त करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-६ गोतमो राहूगण ऋषिः। ७ अष्टको वैश्वामित्रः। १-६ जगत्यः। ७ त्रिष्टुप् षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Self-integration
Meaning
And then the scientists of fire and energy, leaders of mankind who light the fires and who first offer the libations into the fire with holy acts of love and peace, win their share of praise and fame with the reward of horses, speed and motion, wealth of cows, sensitivity of mind and senses and the joy of life and celestial vision.
Translation
The men knowing the science of fire and air who enkindle fire (of Yajna) through their good deeds first attain the vital power and then these leaders find wealth (Bhojana) enriched with horses, with cows and cattle which is the means of hoarding and trading.
Translation
The men knowing, the science of fire and air who enkindle fire (of Yajna) through their good deeds first attain the vital power and then these leaders find wealth (Bhojana) enriched with horses, with cows and cattle which is the means of hoarding and trading.
Translation
The learned persons, who kindle the sacrificial fires and impell their leaders to shed the light of knowledge and prosperity by their noble actions, just as the people light their fires with the wood ofthe shami-tree, obtain food, knowledge and power of the best quality. They fully get all sorts of means of subsistences fit for the people of good behaviour. Such people get plenteous wealth of cattle in the form of horses and milch cows etc.
Footnote
Pani- is no demon, but a person, well-versed in good behaviour of the world.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(आत्) अनन्तरम् (अङ्गिराः) अ० १९।३४।। अगि गतौ-किरच् नित्। विज्ञानिनः। ऋषयः (प्रथमम्) श्रेष्ठम् (दधिरे) धारितवन्तः (वयः) जीवनम् (इद्धाग्नयः) प्रकाशिताग्नयः। अग्निविद्याकुशलाः (शम्या) शमु उपशमे-इन्, ङीप्। शान्तिप्रदेन कर्मणा-निघ० २।१ (ये) (सुकृत्यया) शोभनकर्तव्ययुक्तया (सर्वम्) (पणेः) पण व्यवहारे स्तुतौ च-इन्। उद्योगात् (सम्) सम्यक् (अविन्दन्त) अलभन्त (भोजनम्) धननाम-निघ० २।१०। भोजनसाधनं धनान्नादिकम् (अश्वावन्तम्) म० १। प्रशस्ततुरङ्गयुक्तम् (गोमन्तम्) उत्तमधेनुयुक्तम् (आ) समुच्चये (पशुम्) पशुसमूहम् (नरः) नेतारः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
বিদ্বৎকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(যে) যে (ইদ্ধাগ্নয়ঃ) অগ্নিবিদ্যাকুশল (অঙ্গিরাঃ) অঙ্গিরাগণ [জ্ঞানী ঋষিগণ] (প্রথমম্) শ্রেষ্ঠ (বয়ঃ) জীবনকে (সুকৃত্যয়া) সুন্দর রীতিতে করার যোগ্য (শম্যা) শান্তিদায়ক কর্ম দ্বারা (দধিরে) ধারণ করেছিলেন, (আৎ) তখনই (নরঃ) সেই নেতাগন (পণেঃ) উদ্যমের সাথে (সর্বম্) সকল (ভোজনম্) ভোজন [পালন সাধন ধন অন্নাদি], (অশ্বাবন্তম্) উত্তম ঘোড়াযুক্ত (আ) ও (গোমন্তম্) উত্তম গোযুক্ত (পশুম্) পশুসমূহকে (সম্) ভালোভাবে (অবিন্দন্ত) প্রাপ্ত করেছেন ॥৪॥
भावार्थ
যে অগ্নিবিদ্যায় কুশল, পুরুষার্থী, বিজ্ঞানীগন ধার্মিক কর্ম করে উত্তম জীবন সম্পাদন করে, তিনিই উদ্যোগ করে সকল প্রকারে সুখ প্রাপ্ত হন ॥৪॥
भाषार्थ
(আৎ) তদনন্তর অর্থাৎ সুখদায়িনী এবং কল্যাণকারিণী শক্তি প্রাপ্ত করে (অঙ্গিরাঃ) প্রাণায়ামাভ্যাসী (নরঃ) উপাসক-নেতারা (প্রথমং বয়ঃ) সর্বশ্রেষ্ঠ আধ্যাত্মিক অন্ন অর্থাৎ পরমেশ্বরকে (দধিরে) যোগবিধি দ্বারা ধারণ করেছে। (যে) যারা (শম্যা সুকৃত্যযা) যোগবিধির শান্তিপ্রদ উত্তম ক্রিয়া দ্বারা (ইদ্ধাগ্নয়ঃ) পরমেশ্বরীয়-জ্যোতি প্রদীপ্ত করেছে। মানো সেই অভ্যাসীরা (পণেঃ) বেদবক্তা পরমেশ্বর হতে/দ্বারা (সর্বং ভোজনম্) সকল প্রকারের ভোজন (অশ্বাবন্তম্) অশ্ব সমেত তথা (গোমন্তম্) গাভী সমেত, এবং (পশুম্) সব প্রকারের পশু-সম্পত্তি (সম্ অবিন্দন্ত) প্রাপ্ত করেছে। অর্থাৎ পরমেশ্বরীয় জ্যোতি প্রাপ্তির মাধ্যমে সর্বস্ব প্রাপ্তি হয়েছে।
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