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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४
    49

    यं क्रन्द॑सी संय॒ती वि॒ह्वये॑ते॒ परेऽव॑र उ॒भया॑ अ॒मित्राः॑। स॑मा॒नं चि॒द्रथ॑मातस्थि॒वांसा॒ नाना॑ हवेते॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । क्रन्द॑सी॒ इति॑ । सं॒य॒ती इति॑ स॒म्ऽय॒ती । वि॒ह्वये॑ते॒ इति॑ । वि॒ऽह्वये॑ते । परे॑ । अव॑रे । उ॒भया॑: । अ॒मित्रा॑: ॥ स॒मा॒नम् । चि॒त् । रथ॑म् । आ॒त॒स्थि॒ऽवांसा॑ । नाना॑ । ह॒वे॒ते॒ इति॑ । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३४.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं क्रन्दसी संयती विह्वयेते परेऽवर उभया अमित्राः। समानं चिद्रथमातस्थिवांसा नाना हवेते स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । क्रन्दसी इति । संयती इति सम्ऽयती । विह्वयेते इति । विऽह्वयेते । परे । अवरे । उभया: । अमित्रा: ॥ समानम् । चित् । रथम् । आतस्थिऽवांसा । नाना । हवेते इति । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३४.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यम्) जिसको (संयती) आपस में जुटी हुई (क्रन्दसी) ललकारती हुई दो सेनाएँ (विह्वयेते) विविध प्रकार पुकारती हैं, (परे) ऊँचे [जीतनेवाले] और (अवरे) नीचे [हारनेवाले] (उभयाः) दोनों पक्ष (अमित्राः) शत्रुदल [पुकारते हैं]। और [जिसको] (समानम्) एक (चित्) ही (रथम्) रथ में (आतस्थिवांसा) चढ़े हुए दोनों [योधा और सारथी] (नाना) बहुत प्रकार से (हवेते) बुलाते हैं, (जनासः) हे मनुष्यो ! (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला परमेश्वर] है ॥८॥

    भावार्थ

    जिस इष्टदेव परमात्मा का स्मरण करके सब मनुष्य उत्साही होकर आगे बढ़ते हैं, उसकी उपासना सबको करनी चाहिये ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(यम्) परमेश्वरम् (क्रन्दसी) अ०२।४।३। क्रदि आह्वाने-असुन्, ङीप्, पूर्वसवर्णदीर्घः। क्रन्दस्यौ। आह्वयन्त्यौ द्वे सेने (संयती) इण् गतौ-शतृ। संगच्छमाने (विह्वयेते) विविधमाह्वयतः प्रतिभटान् (परे) प्रकृष्टाः। जेतारः (अवरे) निकृष्टाः। पराजिताः (उभयाः) उभयपक्षाः (अमित्राः) शत्रवः (समानम्) एकम् (चित्) एव (रथम्) यानम् (आतस्थिवांसा) अधितिष्ठन्तौ (नाना) अनेकधा (हवेते) आह्वयतः। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    सर्वाराध्य प्रभु

    पदार्थ

    १. हे (जनास:) = लोगो! (इन्द्रः सः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु वे हैं, (यम्) = जिनको (संयती) = सम्यक् गति करते हुए (क्रन्दसी) = परस्पर आह्वान सा करनेवाने ये द्यावापृथिवी (विह्वयेते) = विविध रूपों में पुकारते हैं। द्युलोक से पृथिवीलोक तक निवास करनेवाले सब प्राणी प्रभु को ही पुकारते हैं। २. (परे) = उत्कृष्ट मोक्षमार्ग पर चलनेवाले निष्काम कर्मयोगी भी प्रभु का आराधन करते हैं और (अवरे) = सकाम कर्म-मार्ग पर चलनेवाले ये निचली श्रेणी के व्यक्ति भी प्रभु को ही पुकारते हैं। ३. (उभयाः अमित्रा:) = रणाङ्गण में एक-दूसरे के विरुद्ध मोर्चों को लगाये हुए ये दोनों शत्रु-सैन्य भी विजय के लिए उस प्रभु को ही पुकराते हैं। ४. (चित्) = निश्चय से (समानं रथम) = समान ही गृहस्थरूप रथ पर (आतस्थिवांसा) = स्थित पति-पत्नी भी (नाना हवेते) = भिन्न-भिन्न रूपों में उस प्रभु का ही आराधन करते हैं। पति उचित धन के लिए आराधन करता है तो पत्नी गृह को सुचारुरूपेण चला सकने के लिए याचना करती है।

    भावार्थ

    सब संसार प्रभु का ही आराधन करता है। प्रभु से ही उस-उस कामना को प्रात करता है लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान् ।

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    भाषार्थ

    (क्रन्दसी) जिनमें आक्रन्दन हो रहा है, ऐसे द्युलोक और भुलोक (संयती) परस्पर जुटे हुए होकर, आत्मरक्षार्थ (यम्) जिसका (विह्वयेते) आह्वान करते हैं, तथा (परेऽवरे) दूर के और समीप के (अमित्राः) अमित्र राष्ट्र (उभया) ये दोनों सहायता के लिए जिसका आह्वान करते हैं, (समानं चिद्) एक जैसे (रथम्) रथों में (आतस्थिवांसा) स्थित हुए योद्धा (नाना) नानारूपों में जिसका (हवेते) आह्वान करते हैं—(जनासः) हे प्रजाजनो! (सः इन्द्रः) वह परमेश्वर है।

    टिप्पणी

    [क्रन्दसी=द्यावापृथिव्यौ।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Whom the heaven and earth wheeling, whirling, humming the celestial music of the spheres together and vying each other in homage, invoke, whom the highest and farthest as well as lowest and nearest, all, friends and non-friends, worship alike as riding the same chariot, invoke and worship in various ways: that, O people of the world, is Indra, lord of power over all.

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    Translation

    He—to whom both the parties in close encounter cry; to whom cry foe against foe, the weaker and stronger, whom two men mounting on the same charitt invoke and whom each invokes in his favour—O men, is Indra.

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    Translation

    He—to whom both the parties in close encounter cry, to whom cry foe against foe, the weaker and stronger, whom two men mounting on the same charitt invoke and whom each invokes in his favor—O men, is Indra.

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    Translation

    O people, He is the All-Powerful God, Whom the well-disciplined heavens and the earth and the people thereof, the couple or the teacher and the taught call for help in their praise-songs; Whom the high and the low and both the adversaries call for help in many ways; Whom the passengers, sitting in the same means of transport remember in various ways.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(यम्) परमेश्वरम् (क्रन्दसी) अ०२।४।३। क्रदि आह्वाने-असुन्, ङीप्, पूर्वसवर्णदीर्घः। क्रन्दस्यौ। आह्वयन्त्यौ द्वे सेने (संयती) इण् गतौ-शतृ। संगच्छमाने (विह्वयेते) विविधमाह्वयतः प्रतिभटान् (परे) प्रकृष्टाः। जेतारः (अवरे) निकृष्टाः। पराजिताः (उभयाः) उभयपक्षाः (अमित्राः) शत्रवः (समानम्) एकम् (चित्) एव (रथम्) यानम् (आतस्थिवांसा) अधितिष्ठन्तौ (नाना) अनेकधा (हवेते) आह्वयतः। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যম্) যাকে (সংয়তী) পরস্পর একত্রিত (ক্রন্দসী) চিৎকার করে দুই সেনাদল (বিহ্বয়েতে) নানা প্রকারে আহ্বান করে, (পরে) উচ্চ [বিজয়ী] এবং (অবরে) নীচে [পরাজিত] (উভয়াঃ) উভয় পক্ষ (অমিত্রাঃ) শত্রুদল [আহ্বান করে]। এবং [যাকে] (সমানম্) এক (চিৎ)(রথম্) রথে (আতস্থিবাংসা) আরোহিত উভয় [যোদ্ধা ও সারথী] (নানা) নানাভাবে (হবেতে) আহ্বান করে, (জনাসঃ) হে মনুষ্যগণ! (সঃ) তিনিই (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমেশ্বর] ॥৮॥

    भावार्थ

    যে ইষ্টদেব পরমাত্মার স্মরণ করে সকল মনুষ্য উৎসাহী হয়ে সামনে অগ্রসর হয়, সেই পরমেশ্বরের উপাসনা সকলেরই করা উচিত ॥৮॥

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    भाषार्थ

    (ক্রন্দসী) যার মধ্যে আক্রন্দন হচ্ছে, এমন/এরূপ দ্যুলোক এবং ভুলোক (সংযতী) পরস্পর যুক্ত হয়ে, আত্মরক্ষার্থে (যম্) যার (বিহ্বয়েতে) আহ্বান করে, তথা (পরেঽবরে) দূরের এবং সমীপের (অমিত্রাঃ) অমিত্র রাষ্ট্র (উভয়া) এই উভয়ের সহায়তার জন্য যার আহ্বান করে, (সমানং চিদ্) একরকম/সমান (রথম্) রথে (আতস্থিবাংসা) স্থিত যোদ্ধা (নানা) নানারূপে যার (হবেতে) আহ্বান করে—(জনাসঃ) হে প্রজাগণ! (সঃ ইন্দ্রঃ) সেই পরমেশ্বর।

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