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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 11
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७
    62

    यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒ काम्या॒ हरी॒ विप॑क्षसा॒ रथे॑। शोणा॑ धृ॒ष्णू नृ॒वाह॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जन्ति॑ । अ॒स्य॒ । काम्या॑ । हरी॒ इति॑ । विऽप॑क्षसा । रथे॑ ॥ शोणा । धृ॒ष्णू इति॑ । नृ॒ऽवाह॑सा ॥४७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे। शोणा धृष्णू नृवाहसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जन्ति । अस्य । काम्या । हरी इति । विऽपक्षसा । रथे ॥ शोणा । धृष्णू इति । नृऽवाहसा ॥४७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १०-१२-परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अस्य) इस [परमात्मा-मन्त्र १०] के (काम्या) चाहने योग्य, (विपक्षसा) विविध प्रकार ग्रहण करनेवाले, (शोणा) व्यापक (धृष्णू) निर्भय, (नृवाहसा) नेताओं [दूसरों के चलानेवाले सूर्य आदि लोकों] के चलानेवाले (हरी) दोनों धारण-आकर्षण गुणों को (रथे) रमणीय जगत् के बीच (युञ्जन्ति) वे [प्रकाशमान पदार्थ-मन्त्र १०] ध्यान में रखते हैं ॥११॥

    भावार्थ

    जिस परमात्मा के धारण-आकर्षण सामर्थ्य में सूर्य आदि पिण्ड ठहरकर अन्य लोकों और प्राणियों को चलाते हैं, मनुष्य उन सब पदार्थों से उपकार लेकर उस ईश्वर को धन्यवाद दें ॥११॥

    टिप्पणी

    १०-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।२६।४-६ ॥

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    विषय

    'विपक्षसा नृवाहसा' हरी

    पदार्थ

    २. साधक लोग (रथम्) = शरीररूप रथ में (हरी) = अपने इन्द्रियाश्वों को (युञ्जन्ति) = जोतते हैं, अर्थात् इन्द्रियों को जीवन-यात्रा की पूर्ति का साधन बनाते हैं। इनको केवल चरने के लिए ही हर समय इधर-उधर भटकने से रोकते हैं। ये इन्द्रियाश्व (अस्य काम्या) = प्रभु-प्राप्ति की कामनावाले होते हैं। (विपक्षसा) = विशिष्ट परिग्रहवाले होते हैं-एक विशेष उद्देश्य को लिये हुए होते हैं। २. इस विशिष्ट उद्देश्य की ओर निरन्तर बढ़ने से ये (शोणा) = तेजस्वी तथा (धृष्ण) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले बनते हैं और (नवाहसा) = उन्नति-पथ पर चलनेवाले लोगों को लक्ष्य की ओर ले चलनेवाले होते हैं।

    भावार्थ

    हम इन्द्रियाश्नों को सदा चरने में ही न लगाएँ रक्खें। शरीर-रथ में जुतकर ये हमें आगे ले-चलें। इनके सामने एक विशिष्ट उद्देश्य हो-प्रभु-प्राप्ति की ये कामनावाले हों। तेजस्वी व शत्रुओं का धर्षण करनेवाले हों। हमें लक्ष्य की ओर ले-चलें।

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    भाषार्थ

    (काम्या=काम्यौ) योगसाधना के लिए चाही गई, (हरी) चित्त को विषयों से हरनेवाली, (विपक्षसा) सुषुम्णा नाड़ी के अलग-अलग दो पार्श्वों में लगी हुई, (शोणा) भूरे और पीले से रंगोंवाली, (धृष्णू) मजबूत (नृवाहसा) योगिजनों को उनके उद्देश्य तक पहुँचानेवाली—इडा और पिङ्गला नाड़ियों को, (अस्य) इस परमेश्वर के (रथे) रमणीय स्वरूप में, (युञ्जन्ति) योगिजन योगविधि द्वारा युक्त अर्थात् सम्बद्ध करते हैं।

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    विषय

    ईश्वर।

    भावार्थ

    (१०-१२) तीनों मन्त्रों की व्याख्या देखो का० २०। २६। ४-५॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ सुकक्षः। ४–६, १०-१२ मधुच्छन्दाः। ७-९ इरिम्बिठिः। १३-२१ प्रस्कण्वः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। एकविंशतृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Scholars of science dedicated to Indra study and meditate on the lord’s omnipotence of light, fire and wind, and harness the energy like two horses to a chariot, both beautiful, equal and complementary as positive¬ negative currents, fiery red, powerful and carriers of people.

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    Translation

    The cosmic forces harness in the Ratha, the beautiful world of the Almighty God two Hari, the electricity and Air which are splendid, wonderful, unchecked, possessed of various powers and the carriers of men and things.

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    Translation

    The cosmic forces harness in the Ratha, the beautiful world of the Almighty God two Hari, the electricity and Air which are splendid, wonderful, unchecked, possessed of various powers and the carriers of men and things.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।२६।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১০-১২-পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অস্য) এই [পরমাত্মার-ম০ ১০] (কাম্যা) কামনাযোগ্য, (বিপক্ষসা) বিবিধ প্রকার গ্রহণকারী, (শোণা) ব্যাপক, (ধৃষ্ণূ) নির্ভয়, (নৃবাহসা) নেতাগণ [সঞ্চালক সেই সূর্যাদি লোককে] চালনাকারী (হরী) দুই ধারণ আকর্ষণ গুণসমূহকে (রথে) রমণীয় জগতের মধ্যে (যুঞ্জন্তি) সেই [প্রকাশমান পদার্থ-ম০৪] স্মরণে রাখে ॥১১॥

    भावार्थ

    যে পরমাত্মার ধারণ আকর্ষণ সামর্থ্যে সূর্যাদি স্থিত হয়ে অন্য লোকসমূহ এবং প্রাণীদের চালনা করে, মনুষ্য সেই সকল পদার্থসমূহ থেকে উপকার গ্রহণ করে সেই ঈশ্বরকে ধন্যবাদ প্রদান করে/করুক ॥১১॥

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    भाषार्थ

    (কাম্যা=কাম্যৌ) যোগসাধনার জন্য কাম্য, (হরী) চিত্তকে বিষয়-সমূহ থেকে হরণকারী, (বিপক্ষসা) সুষুম্ণা নাড়ীর পৃথক-পৃথক দুই পার্শ্বে স্থিত, (শোণা) বাদামি এবং হলুদ বর্ণবিশিষ্ট, (ধৃষ্ণূ) দৃঢ় (নৃবাহসা) যোগীদের তাঁদের উদ্দেশ্য পর্যন্ত প্রেরণকারী—ইডা এবং পিঙ্গলা নাড়িকে, (অস্য) এই পরমেশ্বরের (রথে) রমণীয় স্বরূপের মধ্যে, (যুঞ্জন্তি) যোগীগণ যোগবিধি দ্বারা যুক্ত অর্থাৎ করে।

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