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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सुकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७
    47

    गि॒रा वज्रो॒ न संभृ॑तः॒ सब॑लो॒ अन॑पच्युतः। व॑व॒क्ष ऋ॒ष्वो अस्तृ॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गि॒रा । वज्र॑: । न । सम्ऽभृ॑त: । सऽब॑ल: । अन॑पऽच्युत: ॥ व॒व॒क्षे । ऋ॒ष्व: । अस्तृ॑त: ॥४७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गिरा वज्रो न संभृतः सबलो अनपच्युतः। ववक्ष ऋष्वो अस्तृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गिरा । वज्र: । न । सम्ऽभृत: । सऽबल: । अनपऽच्युत: ॥ ववक्षे । ऋष्व: । अस्तृत: ॥४७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गिरा) वाणी से (संभृतः) पुष्ट किया गया, (सबलः) सबल, (अनपच्युतः) न गिरने योग्य, (ऋष्वः) गतिवाला, और (अस्तृतः) बे-रोक सेनापति (वज्रः न) बिजुली के समान (ववक्षे) रिस होवे ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य अपनी बात में सच्चा, महाबली हो, वह सेनानी होकर शत्रुओं पर बिजुली के समान क्रोध करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(गिरा) वाण्या (वज्रः) विद्युत् (न) यथा (संभृतः) सम्यक् पोषितः (सबलः) बलसहितः (अनपच्युतः) परैरपरिच्युतः। अनभिगतः (ववक्षे) अ० २०।३।९। लेडर्थे लिट्। रोषं कुर्यात् (ऋष्वः) अशूप्रुषिलटि०। उ० १।११। ऋषी गतौ-क्वन्। गतिमान्। महान्-निघ० ३।३। (अस्तृतः) अहिंसितः। अनिवारितः ॥

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    विषय

    सबल: अनपच्युतः

    पदार्थ

    १. (गिरा) = ज्ञानपूर्वक उच्चरित स्तुतिवाणियों के द्वारा (सम्भृत:) = हृदय में सम्यक् धारण किये गये प्रभु (वज्रः न) = वन के समान होते हैं। स्तोता के सब काम-क्रोध आदि शत्रुओं का वे संहार करनेवाले होते हैं। (सबल:) = वे प्रभु सदा बल के साथ वर्तमान हैं। (अनपच्युत:) = किन्हीं भी शत्रुओं से स्थान-भ्रष्ट नहीं किये जा सकते। २. वे प्रभु (ऋष्व:) = महान् है (अस्तृत:) = अहिंसित हैं। किन्हीं भी शत्रुओं से प्रभु के हिंसित होने का सम्भव नहीं। ये प्रभु (ववक्षे) = उपासक के लिए सब आवश्यक धन आदि पदार्थों के प्राप्त कराने की कामनावाले होते है।

    भावार्थ

    हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमारे लिए वज्र के समान होकर शत्रुओं का संहार करेंगे। वे हमें सब आवश्यक धनों को प्राप्त कराते हैं। अगले तीन मन्त्रों के ऋषि 'मधुच्छन्दा: है -

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    भाषार्थ

    (वज्रः न) जैसे वज्र शत्रुओं का विनाश करता है, वैसे परमेश्वर हमारे पाप-शत्रुओं का विनाश करता है, वह (गिरा) स्तुति-प्रार्थना की वाणियों द्वारा (संभृतः) प्राप्त किया जाता है, (सबलः अनपच्युतः) बलशाली और अटल-कूटस्थ है, (ऋष्वः) महान् है, (अस्तृतः) अनश्वर अविनाशी है, (ववक्षे) संसार भार का वहन कर रहा है।

    टिप्पणी

    [ऋष्वः=महान् (निघं০ ३.३)।]

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    विषय

    ईश्वर।

    भावार्थ

    जो (गिरा) वाणी से मानो (वज्रः न) वज्र, बिजुली की कड़क के समान अति भयंकर, (संमृतः) समस्त ऐश्वर्यों और शक्तियों से सम्पन्न, (सबलः) बलवान् (अनपच्युतः) कभी पराजित न होने वाला (अस्तृतः) कभी न मारा जाने वाला नित्य अविनाशी (ऋष्वः) सब शत्रुओं का नाशक होकर (ववक्षे) जगत् और राष्ट्र के भार को धारण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ सुकक्षः। ४–६, १०-१२ मधुच्छन्दाः। ७-९ इरिम्बिठिः। १३-२१ प्रस्कण्वः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। एकविंशतृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Held in and by the voice of divinity like the roar of thunder and like the flood of sun-rays, it is powerful, unfallen, irrepressible and lofty with thought, so let it express itself freely.

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    Translation

    He is endowed with all powers like the bolt accompanied by thundering voice. He is vigorous, invineible, imperishable and propellant force. He holds the world.

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    Translation

    He is endowed with all powers like the bolt accompanied by thundering voice. He is vigorous, invincible, imperishable and propellant force. He holds the world.

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    Translation

    He is equipped with energy and glory like the thunderbolt through the /edic verses He is the Almighty, Invincible, Indestructible, the smasher of evil forces and bears the universe.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(गिरा) वाण्या (वज्रः) विद्युत् (न) यथा (संभृतः) सम्यक् पोषितः (सबलः) बलसहितः (अनपच्युतः) परैरपरिच्युतः। अनभिगतः (ववक्षे) अ० २०।३।९। लेडर्थे लिट्। रोषं कुर्यात् (ऋष्वः) अशूप्रुषिलटि०। उ० १।११। ऋषी गतौ-क्वन्। गतिमान्। महान्-निघ० ३।३। (अस्तृतः) अहिंसितः। अनिवारितः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গিরা) বাণী দ্বারা (সম্ভৃতঃ) সম্যক পোষিত, (সবলঃ) সবল, (অনপচ্যুতঃ) অচ্যুত, (ঋষ্বঃ) গতিমান, ও (অস্তৃতঃ) অপ্রতিরোধ্য সেনাপতি (বজ্রঃ ন) বিদ্যুতের ন্যায় (ববক্ষে) ক্রোধী হবেন/হোক॥৩॥

    भावार्थ

    যে মনুষ্য নিজের কথাতে সঠিক, মহাবলী হন, তিনি সেনানী হয়ে শত্রুদের উপর বিদ্যুতের ন্যায় ক্রোধ করেন/ক্রোধী হোক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (বজ্রঃ ন) যেমন বজ্র শত্রুদের বিনাশ করে, তেমনই পরমেশ্বর আমাদের পাপ-শত্রুর বিনাশ করেন, তিনি (গিরা) স্তুতি-প্রার্থনার বাণী দ্বারা (সম্ভৃতঃ) প্রাপ্ত হন, (সবলঃ অনপচ্যুতঃ) বলশালী এবং অটল-কূটস্থ, (ঋষ্বঃ) মহান্, (অস্তৃতঃ) অনশ্বর অবিনাশী, (ববক্ষে) সংসার ভার বহন করছেন।

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