Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 10 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - जातवेदाः, पशुसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रायस्पोषप्राप्ति सूक्त
    78

    इडा॑यास्प॒दं घृ॒तव॑त्सरीसृ॒पं जात॑वेदः॒ प्रति॑ ह॒व्या गृ॑भाय। ये ग्रा॒म्याः प॒शवो॑ वि॒श्वरू॑पा॒स्तेषां॑ सप्ता॒नां मयि॒ रन्ति॑रस्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडा॑या: । प॒दम् । घृतऽव॑त् । स॒री॒सृ॒पम् । जात॑ऽवेद: । प्रति॑ । ह॒व्या । गृ॒भा॒य॒ । ये । ग्रा॒म्या: । प॒शव॑: । वि॒श्वऽरू॑पा: । तेषा॑म् । स॒प्ता॒नाम् । मयि॑ । रन्ति॑: । अ॒स्तु॒ ॥१०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडायास्पदं घृतवत्सरीसृपं जातवेदः प्रति हव्या गृभाय। ये ग्राम्याः पशवो विश्वरूपास्तेषां सप्तानां मयि रन्तिरस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इडाया: । पदम् । घृतऽवत् । सरीसृपम् । जातऽवेद: । प्रति । हव्या । गृभाय । ये । ग्राम्या: । पशव: । विश्वऽरूपा: । तेषाम् । सप्तानाम् । मयि । रन्ति: । अस्तु ॥१०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 10; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुष्टि बढ़ाने के लिये प्रकृति का वर्णन।

    पदार्थ

    (जातवेदः) हे उत्पन्न पदार्थों के ज्ञानवाले पुरुष ! (इडायाः) प्राप्ति योग्य [प्रकृति] के (घृतवत्) सारयुक्त और (सरीसृपम्) अत्यन्त रेंगते हुए (पदम् प्रति) पद से (हव्या=हव्यानि) देने-लेने योग्य वस्तुओं को (गृभाय) ग्रहण कर। (ये) जो (ग्राम्याः) ग्राम निवासी, (विश्वरूपाः) नानारूपवाले (पशवः) व्यक्त और अव्यक्त वाणीवाले जीव हैं। (तेषाम्) उन सब (सप्तानाम्) आपस में मिले हुए प्राणियों की (रन्तिः) प्रीति वा क्रीड़ा (मयि) मुझमें (अस्तु) होवे ॥६॥

    भावार्थ

    सृष्टिविद्या में निपुण पुरुष संसार के पदार्थों से विज्ञान द्वारा उपकार लेकर सब प्राणियों को सुखी रखकर आप सुखी रहते हैं ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(इडायाः)। इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति इल स्वप्नगतिक्षेपणेषु-क, लस्य डः। यद्वा। ईड स्तुतौ-धङ्, ईकारस्य ह्रस्वत्वम्। टाप्। इला, पृथिवी-निघ० १।१। वाक्। ३।११। अन्नम्-२।७। गौः-२।११। प्राप्तव्यायाः स्तुत्यायाः प्रकृतेः। (पदम्)। पद स्थैर्ये गतौ च-पचाद्यच्। स्थानम्। गतिः। पादचिह्नम्। (घृतवत्)। सारोपेतम्। (सरीसृपम्)। सृपेर्यङ्लुगन्तात्-पचाद्यच्। अत्यर्थं सर्पत् गच्छत्। (जातवेदः)। अ० १।७।२। हे जातप्रज्ञान ! (प्रति)। प्रथ ख्यातौ-डति। व्याप्य। (हव्या)। हु दानादानादनेषु-यत्। शेर्लोपः। हव्यानि। दातव्यानि ग्राह्याणि वा वस्तूनि। दैवान्नानि। (गृभाय)। छन्दसि शायजपि। पा० ३।१।८४। इति ग्रहेर्लोटि श्नः शायच्। तत्रैव वार्त्तिकं सिद्धान्तकौमुद्याम्। हृग्रहोर्भश्छन्दसि। इति हस्य भः। गृहाण। (ये)। (ग्राम्याः)। अ० २।३४।४। ग्रामीणाः। (पशवः)। व्याख्यातम्-अ० २।२६।१। व्यक्तवचनाश्चाव्यक्तवचनाश्च मनुष्यगवादिप्राणिनः। (विश्वरूपाः)। नानाकाराः। (तेषाम्)। (सप्तानाम्)। अ० १।१।१। षप समवाये-क्त। समवेतानां परस्परसंबद्धानां संयुक्तानाम्। (मयि)। गृहस्वामिनि। (रन्तिः)। रमेः क्तिन्, अनुनासिकलोपाभावः। रतिः। रमणम्। प्रीतिः। (अस्तु)। भवतु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्वाध्याय+यज्ञ

    पदार्थ

    १. (इडाया:) = इस वेदवाणी का (पदम्) = शब्द (घृतवत्) = मेरे लिए ज्ञान की दीप्सिवाला हो तथा (सरीसृपम्) = मुझे खूब ही क्रियाशील बनाए। हे (जातवेदः) = अग्ने ! तू (हव्या) = हव्यों को (प्रतिगृभाय) = प्रतिदिन ग्रहण करनेवाला हो, अर्थात् मैं प्रतिदिन अग्निहोत्र करनेवाला बनूं। स्वाध्याय के द्वारा मैं अपने ज्ञान को बढ़ाऊँ, उस ज्ञान के अनुसार गतिवाला होऊँ तथा यज्ञशील बनें। २. (ये) = जो भी (विश्वरूपा:) = नानारूपोंवाले (ग्राम्या: पशव:) = ग्रामवासी प्राणी हैं, (तेषाम्) = उन (समानाम्) = सर्पणशील प्राणियों की (मयि) = मुझमें (रन्ति) = प्रीति (अस्तु) = हो।

    भावार्थ

    हम स्वाध्याय व यज्ञ को अपनाएँ। हम सब प्राणियों के प्रिय हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (इडाया:१) स्तुत्या [एकाष्टका को] (पद्म२) गति (घृतवत्३ सरीसृपम्४) पिघले घृत के सदृश अति सर्पणवाली है, (जातवेदः) हे जातप्रज्ञ परमेश्वर ! तू (हव्या=हवींषि) हमारी प्रदत्त हव्या को (प्रतिगृभाय) ग्रहण कर। (ये) जो (विश्वरूपाः) नानारूपाकृतियोंवाले (ग्राम्याः पशवः) ग्राम के पशु हैं, (तेषाम्, सप्तानाम्) उन सात का (रन्तिः) रमण (मयि अस्तु) मुझमें हो [यह प्रार्थना की गई है।]

    टिप्पणी

    [प्रकरण के अनुसार इडा का अर्थ एकाष्टका प्रतीत होता है (मन्त्र ५)। एकाष्टका की गति अति-सर्पणशील है। परमेश्वर के प्रति प्रकृतिजन्य हवियों को समर्पित कर, उसे ग्रहण करने की प्रार्थना की है। ग्राम के सात पशु हैं गौ, अश्व, अजा, अवि, पुरुष, गर्दभ अौर उष्ट्र (सायण)। फलरूप में इनका रमण चाहा है। एकाष्टका है माघकृष्णाष्टमी (सायण), (अथर्व० १०।५।१)] [१. इडा= ईड स्तुतौ, दीर्घ ईकार का ह्रस्वत्व छान्दस है। २. पद्म= पद गतौ अर्थात् गति, विचलन। ३. घुतवत्= घृतम् उदकनाम (निघं० १।१२)। ४. सरीसृपम्= उदकवत् अति सर्पणशील; यङ्लुगन्तरूप। ज्योतिष सिद्धान्तानुसार भूमध्यरेखा तथा क्रान्तिवृत्त के मेल अर्थात् परस्पर कटाव के बिन्दुओं का जब संक्रमण होता है तो यह संक्रमण शनैः-शनै: इन बिन्दुओं पर पूर्वापेक्षया कुछ शीघ्र पहुँच जाता है। इसे "Precession of equinoxes" कहते हैं। Equinoxes का अर्थ है "दिन और रात का बराबर हो जाना।" यह बराबर होना राशिचक्र में पश्चिम से पूर्व की ओर होता रहता है। राशियों का क्रम है, मेष, वृष, मिथुन आदि, और इनका विपरीत क्रम है, मीन, कुम्भ, मकर बादि। Equinoxes की गति इस विपरीत क्रम में होती रहती है। इस गति का प्रभाव एकाष्टका पर भी होता है। इसे "सरीसृपम्" द्वारा निर्दिष्ट किया है। एकाष्टका = माघकृष्णाष्टमी (सायण)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अष्टका रूप से नववधू के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    (इडायाः) गौ का (सरीसृपं) निरन्तर गमन करने वाला (पदं) स्वरूप या चरण (घृतवत्) घृतादि पुष्टिकारक पदार्थ से युक्त होता है । हे (जातवेदः) अग्ने ! परमेश्वर ! (प्रति) प्रतिदिन (हव्या) हवन करने योग्य पदार्थों और प्रेमपूर्वक पढ़ी गई स्तुतियों को (गृभाय) स्वीकार करो ! (ये) जो (ग्राम्याः) ग्राम में पालन करने योग्य पुरुषों के संघ में रहने के स्वभाव वाले (विश्वरूपाः) नाना प्रकार के (पशवः) पशु हैं (तेषां) उन सब (सप्तानां) सातों प्रकारों के पशुओं की (रन्तिः) आनन्द बहार (मयि) मेरे पास (अस्तु) हो। गृहस्थी पुरुष गोपालन करे, उससे दूध, दही, मक्खन प्राप्त करे, प्रतिदिन यज्ञ करे, उपासना करे । गो-पालन, पशु-पालन करे और जीवन का आनन्द प्राप्त करे । गौ, बकरी, भेड़, हाथी, गधा, अश्व और ऊंट ये सात पशु हैं।

    टिप्पणी

    ‘घृतवत् चराचर’ (द्वि०) ‘जातवेदो हविरिदं जुषस्व’ इति मै० ब्रा०। (च०) ‘सप्तानां इह इन्तिरस्तु’ इति तै० आ०। (च०) ‘पुष्टिरस्तु’ आ० श्रौ० सू०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अष्टका देवताः । ४, ५, ६, १२ त्रिष्टुभः । ७ अवसाना अष्टपदा विराड् गर्भा जगती । १, ३, ८-११, १३ अनुष्टुभः। त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kalayajna for Growth and Prosperity

    Meaning

    O sagely scholar of things in existence, watch, discover and then seize the successive stages of the constant evolution of divine nature in progress which is replete with the joyous beauty and grace of divinity. Study those who are organised in village and city, who are visionaries of natural knowledge and beyond, and what are the various phenomenal forms of existence. Watch the mutual relationship of these at peace in harmony, so that the peace and harmony may also exist between these of the environment and ourselves, within ourselves too.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The shrine of Ida (idāyāspadam) flows with ghrta and butter. O Jataveda (knower of all that is born, an epithet of Agni), please accept our oblations. Cattle and our other animals, of seven kinds and of numerous forms, abide with me fully contented.(Seven animals are = Cow, Horse , Goat, Sheep, Men, Donkey, and Camel).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the celebration of this Ashtaka make the wooden press-gear's ring rattle in preparing the annual oblation. May we be masters of wealth with good children and good men.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The ever-moving nature of a cow is full of butter. O God, accept our louds. Tame animals of varied from and c0lour, may all the seven abide with me contented.

    Footnote

    Seven animals are: Cow, goat, sheep, elephant, donkey, horse and camel. A cow thatmoves freely and grazes yields More butter than one who remains tied in the house.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(इडायाः)। इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः। पा० ३।१।१३५। इति इल स्वप्नगतिक्षेपणेषु-क, लस्य डः। यद्वा। ईड स्तुतौ-धङ्, ईकारस्य ह्रस्वत्वम्। टाप्। इला, पृथिवी-निघ० १।१। वाक्। ३।११। अन्नम्-२।७। गौः-२।११। प्राप्तव्यायाः स्तुत्यायाः प्रकृतेः। (पदम्)। पद स्थैर्ये गतौ च-पचाद्यच्। स्थानम्। गतिः। पादचिह्नम्। (घृतवत्)। सारोपेतम्। (सरीसृपम्)। सृपेर्यङ्लुगन्तात्-पचाद्यच्। अत्यर्थं सर्पत् गच्छत्। (जातवेदः)। अ० १।७।२। हे जातप्रज्ञान ! (प्रति)। प्रथ ख्यातौ-डति। व्याप्य। (हव्या)। हु दानादानादनेषु-यत्। शेर्लोपः। हव्यानि। दातव्यानि ग्राह्याणि वा वस्तूनि। दैवान्नानि। (गृभाय)। छन्दसि शायजपि। पा० ३।१।८४। इति ग्रहेर्लोटि श्नः शायच्। तत्रैव वार्त्तिकं सिद्धान्तकौमुद्याम्। हृग्रहोर्भश्छन्दसि। इति हस्य भः। गृहाण। (ये)। (ग्राम्याः)। अ० २।३४।४। ग्रामीणाः। (पशवः)। व्याख्यातम्-अ० २।२६।१। व्यक्तवचनाश्चाव्यक्तवचनाश्च मनुष्यगवादिप्राणिनः। (विश्वरूपाः)। नानाकाराः। (तेषाम्)। (सप्तानाम्)। अ० १।१।१। षप समवाये-क्त। समवेतानां परस्परसंबद्धानां संयुक्तानाम्। (मयि)। गृहस्वामिनि। (रन्तिः)। रमेः क्तिन्, अनुनासिकलोपाभावः। रतिः। रमणम्। प्रीतिः। (अस्तु)। भवतु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (ইডায়াঃ১) স্তুত্যা [একাষ্টকা-এর] (পদম্২) গতি (ঘৃতবৎ৩ সরীসৃপম্৪) গলিত ঘৃতের সদৃশ অতি সর্পণগতিযুক্ত হয়, (জাতবেদঃ) হে জাতপ্রজ্ঞ পরমেশ্বর! আপনি (হব্যা= হবীংষি) আমাদের প্রদত্ত হবি (প্রতিগৃভায়) গ্রহণ করুন। (যে) যা (বিশ্বরূপাঃ) নানা রূপাকৃতি সম্পন্ন (গ্রাম্যাঃ পশবঃ) গ্রামের পশু আছে, (তেষাম্, সপ্তানাম্) সেই সাতের (রন্তিঃ) রমণ (ময়ি অস্তু) আমার মধ্যে হোক [এই প্রার্থনা করা হয়েছে।]

    टिप्पणी

    [প্রকরণ অনুসারে ইডা-এর অর্থ একাষ্টকা প্রতীত হয় (মন্ত্র ৫)। একাষ্টকা-এর গতি হলো অতি-সর্পণশীল। পরমেশ্বরের প্রতি প্রকৃতিজন্য হবিকে সমর্পিত করে, তা গ্রহণ করার প্রার্থনা করেছে। গ্রামে সাতটি পশু আছে গাভী, অশ্ব, অজা, ছাগল, পুরুষ, গর্দভ ও উষ্ট্র (সায়ণ)। ফলস্বরূপ এদের রমণ কামনা করা হয়েছে। একাষ্টকা হলো মাঘ কৃষ্ণ অষ্টমী (সায়ণ), (অথর্ব০ ১০।৫।১)।] [১. ইডা=ঈড স্তুতৌ, দীর্ঘ ঈকার-এর হ্রস্বত্ব ছান্দস। ২. পদম্ =পদ গতৌ অর্থাৎ গতি, বিচলন। ৩. ঘৃতবৎ =ঘৃতম্ উদকনাম (নিঘং০ ১।১২)। ৪. সরীসৃপম্ = উদকবৎ অতি সর্পণশীল; যঙ্লুগন্তরূপ। জ্যোতিষ সিদ্ধান্তানুসারে ভূমধ্যরেখা এবং ক্রান্তিবৃত্তের মেল অর্থাৎ পরস্পর সংযোগের বিন্দুগুলির যখন সংক্রমণ হয় তখন এই সংক্রমণ ধীরে-ধীরে এই বিন্দুগুলির ওপর পূর্বাপেক্ষা কিছুটা শীঘ্রই পৌঁছে যায়। একে “Precession of equinoxes" বলা হয়। Equinoxes-এর অর্থ হলো "দিন রাত্রি সমান হয়ে যাওয়া।" ইহা সমান হওয়া রাশিচক্রে পশ্চিম থেকে পূর্বের দিকে হতে থাকে। রাশিগুলির ক্রম হলো, মেষ, বৃষ, মিথুন আদি, এবং এদের বিপরীত ক্রম হলো, মীন, কুম্ভ, মকর আদি। Equinoxes-এর গতি এই বিপরীত ক্রমে হতে থাকে। এই গতির প্রভাব একাষ্টকার ওপরেও হয়। ইহাকে "সরীসৃপম্" দ্বারা নির্দিষ্ট করা হয়েছে। একাষ্টকা= মাঘ কৃষ্ণ অষ্টমী (সায়ণ)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    পুষ্টিবর্ধনায় প্রকৃতিবর্ণনম্

    भाषार्थ

    (জাতবেদঃ) হে উৎপন্ন পদার্থের জ্ঞাতা পুরুষ ! (ইডায়াঃ) প্রাপ্তি যোগ্য [প্রকৃতি] এর (ঘৃতবৎ) সারযুক্ত এবং (সরীসৃপম্) অত্যন্ত উরোগামী হয়ে (পদম্ প্রতি) পদ দ্বারা (হব্যা=হব্যানি) দান-গ্ৰহণ যোগ্য বস্তু (গৃভায়) গ্রহণ করো। (যে) যে (গ্রাম্যঃ) গ্রাম নিবাসী, (বিশ্বরূপাঃ) নানারূপের (পশবঃ) ব্যক্ত এবং অব্যক্ত বাণীর জীব রয়েছে। (তেষাম্) সেই সকল (সপ্তানাম্) পরস্পর সাথে সম্বন্ধযুক্ত প্রাণীদের (রন্তিঃ) প্রীতি বা ক্রীড়া (ময়ি) আমার মধ্যে (অস্তু) হোক ॥৬॥

    भावार्थ

    সৃষ্টিবিদ্যায় নিপুণ পুরুষ সংসারের পদার্থ থেকে বিজ্ঞান দ্বারা উপকার গ্রহণ করে সমস্ত প্রাণীদের সুখী রেখে নিজে সুখী থাকে ॥৬॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top