अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
ऋषिः - अथर्वा
देवता - सवंत्सरः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रायस्पोषप्राप्ति सूक्त
72
आयम॑गन्त्संवत्स॒रः पति॑रेकाष्टके॒ तव॑। सा न॒ आयु॑ष्मतीं प्र॒जां रा॒यस्पोषे॑ण॒ सं सृ॑ज ॥
स्वर सहित पद पाठआ । अ॒यम् । अ॒ग॒न् । स॒म्ऽव॒त्स॒र: । पति॑: । ए॒क॒ऽअ॒ष्ट॒के॒ । तव॑ । सा । न॑: । आयु॑ष्मतीम् । प्र॒ऽजाम् । रा॒य: । पोषे॑ण । सम् । सृ॒ज॒ ॥१०.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आयमगन्त्संवत्सरः पतिरेकाष्टके तव। सा न आयुष्मतीं प्रजां रायस्पोषेण सं सृज ॥
स्वर रहित पद पाठआ । अयम् । अगन् । सम्ऽवत्सर: । पति: । एकऽअष्टके । तव । सा । न: । आयुष्मतीम् । प्रऽजाम् । राय: । पोषेण । सम् । सृज ॥१०.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
पुष्टि बढ़ाने के लिये प्रकृति का वर्णन।
पदार्थ
(एकाष्टके) अकेली व्यापक रहनेवाली, वा अकेली भोजन स्थानशक्ति ! [प्रकृति] (अयम्) यह (संवत्सरः) यथावत् निवास देनेवाला, (तव) तेरा (पतिः) पति वा रक्षक [परमेश्वर] (आ अगन्) प्राप्त हुआ है। (सा) लक्ष्मी तू (नः) हमारेलिए (आयुष्मतीम्) बड़ी आयुवाली (प्रजाम्) प्रजा को (रायः) धन की (पोषेण) बढ़ती के साथ (संसृज) संयुक्त कर ॥८॥
भावार्थ
विद्वान् साक्षात् कर लेते हैं कि परमेश्वर ही प्रकृति, जगत् सामग्री का स्वामी अर्थात् उसके अंशों का संयोजक और वियोजक है और प्रकृति के यथावत् प्रयोग से मनुष्य अपनी सन्तान सहित चिरंजीवी और धनी होते हैं ॥८॥
टिप्पणी
८−(अयम्)। परिदृश्यमानः। (आ, अगत्)। गमेर्लुङ्। आगमत्। आगतः। (संवत्सरः)। म० २। सम्यक् निवासकः। (पतिः)। रक्षकः। (एकाष्टके)। म० ५। हे एकमात्रव्यापिके। एकमात्रभोजनस्थाने। (तव)। त्वदीयः। (सा नः)। इति गतं म० ॥३॥
विषय
वर्ष का प्रारम्भ
पदार्थ
१. प्रत्येक वर्ष के आरम्भ में सोकर उठने पर हमें यह धारणा करनी चाहिए कि (अयम्) = यह (संवत्सर:) = हमारे निवास को उत्तम बनानेवाला वर्ष (आ अगन्) = आया है-आज नववर्ष का आरम्भ होता है। हे (एकाष्टके) = दिन के प्रथम व मुख्य अष्टकवाली उधे! यह (तव पति:) = तेरा पति है-तु इसकी पत्नी है। तू ही वस्तुतः इसे संवत्सर-उत्तम निवासवाला बनाती है। २. (सा) = वह तू (न:) = हमारी (आयुष्मती प्रजाम्) = दीर्घजीवी सन्तानों को (रायस्पोषेण संसृजन) = धन के पोषण से युक्त कर । प्रतिदिन प्रात:काल प्रबुद्ध होती हुई हमारी सन्तानें दीर्घजीवी व धन-धान्य सम्पन्न बनें।
भावार्थ
वर्ष के प्रारम्भिक दिन हम उषा-जागरण का व्रत लें तथा निश्चय करें कि अपने जीवन को उत्तम बनाकर हम सन्तानों को दीर्घजीवी व सम्पन्न बनाने के लिए यत्नशील होंगे।
भाषार्थ
(एकाष्टके) हे एकाष्टका की रात्री! (अयम्) यह (तव पतिः) तेरा पति (संवत्सरः) सौर वर्ष (आ अगन्) आ गया है। (सा) वह तू (न: प्रजाम्) हमारी प्रजा को (आयुष्मतीम्) दीर्घायु कर और (रायस्पोषण) धन की पुष्टि के साथ (संसृज) उसका संसर्ग अर्थात् सम्बन्ध कर।
टिप्पणी
[ मंत्र (२) में रात्री को संवत्सर की पत्नी कहा है, अतः संवत्सर है उसका पति। व्याख्या के लिये देखो मन्त्र (२)।]
विषय
अष्टका रूप से नववधू के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे (एका अष्टके) एकमात्र घर को आठों प्रहर सुधारने वाली गृहपत्नी अथवा समस्त सुखों का भोग देने हारी ! तेरा (पतिः) स्वामी (अयम्) यह (संवत्सरः) संवत्सर स्वरूप, यज्ञरूप, पुरुष हैं जो सम्=भली प्रकार वत्सरः = पुत्रों का दान करने एवं लालन पालन करने में समर्थ हैं । (सा) वह तू (आयुष्मती प्रजां) दीर्घ आयु वाली प्रजा को (रायः पोषेण) धनादि पोषणकारी पदार्थों से (संसृज) युक्त कर ।
टिप्पणी
(तृ० च०) ‘तस्मै जुहोमि । हविषा घृतेन शौनः शर्म यच्छतु’ इति पैप्प० सं० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अष्टका देवताः । ४, ५, ६, १२ त्रिष्टुभः । ७ अवसाना अष्टपदा विराड् गर्भा जगती । १, ३, ८-११, १३ अनुष्टुभः। त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Kalayajna for Growth and Prosperity
Meaning
O Ekashtake, sole mother of existence, pray create and bring us, for all, noble progeny with good health and full age, bless us with wealth, honour and excellence in harmony with the environment. And then, through you, may come into our vision and experience your lord and master, the Only God of Time-Space continuum who pervades and superintends your constancy through mutability: Satyam and Rtam both.
Translation
O Ekastaka (eighth night of the moonless fort-night of Maghā month), here has come the year, your husband. As such, may you unite for our long-living progeny with riches and nourishment.
Translation
May the night come with nourishment and prosperity for us, may we remain in good company and advice of the learned persons. Let the ladle (the large spoon) fully filled with ghee drop oblation in fire of Yajna and let it do so frequently. Let it serving all the Yajnas bring to us knowledge, strength and grain.
Translation
O wife, the sole, constant reformer of the house, this husband of thine is an embodiment of sacrifice, Who is efficient in nicely bringing up the children. Vouchsafe us children long to live, bless them with increase of wealth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(अयम्)। परिदृश्यमानः। (आ, अगत्)। गमेर्लुङ्। आगमत्। आगतः। (संवत्सरः)। म० २। सम्यक् निवासकः। (पतिः)। रक्षकः। (एकाष्टके)। म० ५। हे एकमात्रव्यापिके। एकमात्रभोजनस्थाने। (तव)। त्वदीयः। (सा नः)। इति गतं म० ॥३॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(একাষ্টকে) হে একাষ্টকা-এর রাত্রী ! (অয়ম্) এই (তব পতিঃ) তোমার পতি (সংবৎসরঃ) সৌরবর্ষ (আ অগন্) এসে গেছে। (সা) সেই তুমি (নঃ প্রজাম্) আমাদের প্রজাদের (আয়ুষ্মতী) দীর্ঘায়ু করো এবং (রায়স্পোষেণ) সম্পদের পূর্ণতার সাথে (সংসৃজ) তার সংসর্গ অর্থাৎ সম্বন্ধ করো।
टिप्पणी
[মন্ত্রে (২) এ রাত্রিকে সংবৎসরের পত্নী বলা হয়েছে, অতঃপর সংবৎসর হলো তার পতি। ব্যাখ্যার জন্য দেখো মন্ত্র (২)।]
मन्त्र विषय
পুষ্টিবর্ধনায় প্রকৃতিবর্ণনম্
भाषार्थ
(একাষ্টকে) একাকী ব্যাপক, বা একাকী ভোজন স্থানশক্তি ! [প্রকৃতি] (অয়ম্) এই (সংবৎসরঃ) যথাবৎ নিবাস প্রদাত্রী, (তব) তোমার (পতিঃ) পতি বা রক্ষক [পরমেশ্বর] (আ অগন্) প্রাপ্ত হয়েছে। (সা) লক্ষ্মী তুমি (নঃ) আমাদের জন্য (আয়ুষ্মতীম্) মহৎ আয়ুসম্পন্ন (প্রজাম্) প্রজাকে (রায়ঃ) ধন-সম্পদের (পোষেণ) বৃদ্ধির সাথে (সংসৃজ) সংযুক্ত করো ॥৮॥
भावार्थ
বিদ্বান্ সাক্ষাৎ করে নেয় যে, পরমেশ্বরই প্রকৃতি, জগৎ সামগ্রী এর স্বামী অর্থাৎ তার অংশের সংযোজক ও বিয়োজক এবং প্রকৃতির যথাবৎ প্রয়োগ দ্বারা মনুষ্য নিজের সন্তান সহিত চিরঞ্জীবী এবং ধনী হয় ॥৮।।
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