अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 8
सीते॒ वन्दा॑महे त्वा॒र्वाची॑ सुभगे भव। यथा॑ नः सु॒मना॒ असो॒ यथा॑ नः सुफ॒ला भुवः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसीते॑ । वन्दा॑महे । त्वा॒ । अर्वाची॑ । सु॒ऽभ॒गे॒ । भ॒व॒ । यथा॑ । न॒: । सु॒ऽमना॑: । अस॑: । यथा॑ । न॒: । सु॒ऽफ॒ला । भुव॑: ॥१७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
सीते वन्दामहे त्वार्वाची सुभगे भव। यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भुवः ॥
स्वर रहित पद पाठसीते । वन्दामहे । त्वा । अर्वाची । सुऽभगे । भव । यथा । न: । सुऽमना: । अस: । यथा । न: । सुऽफला । भुव: ॥१७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
खेती की विद्या का उपदेश।
पदार्थ
(सीते) हे जुती धरती ! [लक्ष्मी, खेती] (त्वा) तेरी (वन्दामहे) हम वन्दना करते हैं, (सुभगे) हे सौभाग्यवती [बड़े ऐश्वर्यवाली] (अर्वाची) हमारे सन्मुख (भव) रह, (यथा) जिससे तू (नः) हमारे लिए (सुमनाः) प्रसन्न मनवाली (असः) होवे, और (यथा) जिससे (नः) हमारे लिए (सुफला) सुन्दर फलवाली (भुवः) होवे ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य खेती को मन लगा करके चौकसी रक्खे, जिससे अन्नवान् और धनवान् होकर सदा आनन्द भोगे ॥८॥
टिप्पणी
८−(सीते) म० ४। लाङ्गलपद्धतिरूपा कृषिक्रिया लक्ष्मीः। तत्सम्बुद्धौ। (वन्दामहे) वदि अभिवादनस्तुत्योः। अभिवादयामः। स्तुमः। (त्वा) त्वाम्। (अर्वाची) अवर+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्, ङीप्। अर्वादेशः। निकटस्था। अभिमुखी। (सुभगे) हे सौभाग्ययुक्ते। ऐश्वर्यवति। (नः) अस्मभ्यम्। (सुमनाः) प्रसन्नमनस्का। (असः) लेट्। त्वं स्याः। (सुफला) शोभनफलोपेता। (भुवः) लेट्। त्वं भवेः ॥
विषय
सु मनाः सु फला
पदार्थ
१. हे (सीते) = लागलपद्धति-जुती हुई भूमे। हम (त्वा) = वन्दामहे तेरा स्तवन करते हैं। हे (सुभगे) = उत्तम ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाली सीते! तू (अर्वाची भव) = हमारे अभिमुख हो। २. इस प्रकार तू हमारे अभिमुख हो (यथा) = जिससे (न:) = हमारे लिए (सुमना:) = उत्तम मन को प्राप्त करानेवाली (अस:) = हो और (यथा) = जिससे (न:) = हमारे लिए सुफला उत्तम फलों को देनेवाली (भुव:) = हो।
भावार्थ
लाङ्गपद्धति हमारे लिए उत्तम ऐश्वर्य को प्राप्त कराती हुई हमें उत्तम [प्रसन्न] मनवाला करे और उत्तम फलों को प्रदान करे।
भाषार्थ
(सीते) हल द्वारा कृष्ट हे भूभाग! (त्वा वन्दामहे) तेरी हम स्तुति करते हैं, तेरे गुणों का कथन करते हैं, (सुभगे) हे उत्तम ऐश्वर्य देनेवाली भूमि! (अर्वाची भव) हमारे अभिमुखी तू हो। (यथा) जिस प्रकार कि (न:) हमारे (सुमनाः) मनों को प्रसन्न करनेवाली (असः) तू हो, (यथा) जिस प्रकार कि (न:) हमें (सुफला) उत्तम फल देनेवाली (भुवः) तू हो।
टिप्पणी
[वन्दामहे=वदि अभिवादनस्तुत्योः (भ्वादिः), स्तुति अर्थ अभिप्रेत है। सीता अन्नोत्पादन द्वारा सब प्राणियों का पालन करती है—यह उसकी स्तुति है, गुणों का कथन है। अर्वाची का अभिप्राय है हमारे प्रति फलोन्मुखी होना। उत्तम-ऐश्वर्य है अन्न और तदद्वारा प्राप्त अन्य पदार्थ। उत्तम फल है कृषिजन्य अन्न।]
विषय
कृषि और अध्यात्म योग का उपदेश ।
भावार्थ
हे (सीते) हल के अग्रभाग के समान समस्त देहरूप क्षेत्र को खनन करने एवं उपयोगी बनाने वाली चिति शक्ते ! (त्वा) तुझ को (वन्दामहे) हम नमस्कार करते हैं, तेरे यथार्थ रूप का वर्णन करते हैं। हे (सुभगे) उत्तम पुष्टिकारक ! तू (अर्वाची) साक्षात् हमें प्रत्यक्ष (भव) हो (यथा) जिस प्रकार (नः) हमारे लिये तू (सुमनाः) शोभन मनन, ज्ञान वाली (असः) हो और (यथा) जिस प्रकार (नः) हमारे लिये (सुफलाः) उत्तम मोक्ष सुखरूप फल से युक्त (भुवः) हो । जिस प्रकार हल की फाली से सब समृद्धि प्राप्त होती है और फसल भी उत्कृष्ट होती है उस प्रकार चिति शक्ति के साक्षात्कार से योगी को परम आनन्द प्राप्त होता है ।
टिप्पणी
‘प्रथमद्वितीयपादयोव्यत्ययः’ इति ऋ०, (तृ०) ‘यथा नः सुभगाससि यथा नः सुफलाससि’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः सीता देवता । १ आर्षी गायत्री, २, ५, ९ त्रिष्टुभः । ३ पथ्या-पंक्तिः । ७ विराट् पुरोष्णिक् । ८, निचृत् । ३, ४, ६ अनुष्टुभः । नवर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Farming
Meaning
O charming furrow, be straight and deeply well drawn, promising and productive. We love and celebrate you so that you may be good to us, bring us good fortune and bring us the best fruit of our labour and endevour.
Translation
O site (furrow), we pay our best homage to you, may you kindly turn on this side, O you bring fortune to us, we have full support from you, May you bring good fruits for us. . (Also Rv. IV.57.6)
Translation
We praise the furrow and let it be directly favorable for us. May it be fruitful for us.
Translation
O auspicious mental force, we venerate thee, come thou near us. That thou mayest grant us knowledge and bring us the fruit of salvation.
Footnote
See Rig, 4-57-6.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(सीते) म० ४। लाङ्गलपद्धतिरूपा कृषिक्रिया लक्ष्मीः। तत्सम्बुद्धौ। (वन्दामहे) वदि अभिवादनस्तुत्योः। अभिवादयामः। स्तुमः। (त्वा) त्वाम्। (अर्वाची) अवर+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्, ङीप्। अर्वादेशः। निकटस्था। अभिमुखी। (सुभगे) हे सौभाग्ययुक्ते। ऐश्वर्यवति। (नः) अस्मभ्यम्। (सुमनाः) प्रसन्नमनस्का। (असः) लेट्। त्वं स्याः। (सुफला) शोभनफलोपेता। (भुवः) लेट्। त्वं भवेः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(সীতে) লাঙ্গল দ্বারা কৃষ্ট/কর্ষিত হে ভূভাগ ! (ত্বা বন্দামহে) তোমার আমরা স্তুতি করি, তোমার গুণের কথন করি, (সুভগে) হে উত্তম-ঐশ্বর্য প্রদানকারী ভূমি ! (অর্বাচী ভব) আমাদের অভিমুখী তুমি হও। (যথা) যেমন (নঃ) আমাদের (সুমনাঃ) মনকে প্রসন্নকারিনী (অসঃ) তুমি হও, (যথা) যেভাবে (নঃ) আমাদের (সুফলা) উত্তম ফলদাত্রী (ভুবঃ) তুমি হও।
टिप्पणी
[বন্দামহে=বদি অভিবাদনস্তুত্যোঃ (ভ্বাদিঃ), স্তুতি অর্থ অভিপ্রেত হয়েছে। সীতা অন্নোৎপাদন দ্বারা সমস্ত প্রাণীদের পালন করে- ইহা হলো তার স্তুতি, গুণসমূহের কথন। অর্বাচী-এর অভিপ্রায় হলো, আমাদের প্রতি ফলোন্মুখী হওয়া। উত্তম-ঐশ্বর্য হলো অন্ন ও তা দ্বারা প্রাপ্ত অন্য পদার্থ। উত্তম ফল হলো কৃষিজন্য অন্ন।]
मन्त्र विषय
কৃষিবিদ্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(সীতে) হে কর্ষিত জমি ! [লক্ষ্মী, জমি] (ত্বা) তোমার (বন্দামহে) আমরা বন্দনা করি, (সুভগে) হে সৌভাগ্যবতী [পরম ঐশ্বর্যবতী] (অর্বাচী) আমাদের সন্মুখে (ভব) থাকো, (যথা) যাতে তুমি (নঃ) আমাদের জন্য (সুমনাঃ) প্রসন্ন মনের (অসঃ) হও, এবং (যথা) যাতে (নঃ) আমাদের জন্য (সুফলা) সুন্দর ফলযুক্ত (ভুবঃ) হও ॥৮॥
भावार्थ
মনুষ্য কৃষিতে মনযোগ সহকারে নজরদারি রাখুক যাতে অন্নবান্ ও ধনবান্ হয়ে সদা আনন্দ ভোগ করে ॥৮॥
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