अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 5
ऋषिः - भृगुः
देवता - वनस्पतिः, प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - समृद्धि प्राप्ति सूक्त
305
शत॑हस्त स॒माह॑र॒ सह॑स्रहस्त॒ सं कि॑र। कृ॒तस्य॑ का॒र्य॑स्य चे॒ह स्फा॒तिं स॒माव॑ह ॥
स्वर सहित पद पाठशत॑ऽहस्त । स॒म्ऽआह॑र । सह॑स्रऽहस्त । सम् । कि॒र॒ । कृ॒तस्य॑ । का॒र्य᳡स्य । च॒ । इ॒ह । स्फा॒तिम् । स॒म्ऽआव॑ह ॥२४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर। कृतस्य कार्यस्य चेह स्फातिं समावह ॥
स्वर रहित पद पाठशतऽहस्त । सम्ऽआहर । सहस्रऽहस्त । सम् । किर । कृतस्य । कार्यस्य । च । इह । स्फातिम् । सम्ऽआवह ॥२४.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
धान्य बढ़ाने के कर्म का उपदेश।
पदार्थ
(शतहस्त) हे सैकड़ों हाथोंवाले ! [मनुष्य !] [धान्य को-म० ४] (समाहर) बटोर कर ला, और (सहस्रहस्त) हे सहस्रों हाथोंवाले (सम्) अच्छे प्रकार से (किर) फैला। (च) और (कृतस्य) किये हुए और (कार्यस्य) कर्तव्य कर्म की (स्फातिम्) बढ़ती को (इह) यहाँ पर (समावह) मिलकर ला ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य सैकड़ों तथा सहस्रों प्रकार से कर्मकुशल होकर, और सहस्रों कर्मकुशलों से मिलकर धन धान्य एकत्र करे और उत्तम कर्मों में व्यय करके आगा पीछा सोचकर सदैव उन्नति करता रहे ॥५॥
टिप्पणी
५−(शतहस्त) हे बहुप्रकारेण हस्तक्रियाकुशल। हे बहुक्रियाकुशलपुरुषैर्युक्त मनुष्य ! (समाहर) समाहृत्य प्राप्नुहि। (सहस्रहस्त) असंख्यहस्तक्रियाकुशलपुरुषैर्युक्त ! (सम्) सम्यक्। शोभनरीत्या। (किर) कॄ विक्षेपे। ॠत इद्धातोः। पा० ७।१।१०। इति इत्त्वम्। विक्षिप। प्रयच्छ। (कृतस्य) निष्पन्नस्य। (कार्यस्य) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति कृञ्-ण्यत्। कर्त्तव्यस्य कर्मणः। (स्फातिम्) म० ४। समृद्धिम्। (समाहर) सम्यग् आनय ॥
विषय
धन-धान्य की समृद्धि व कर्त्तव्य-कर्मों की स्फाति
पदार्थ
१.हे (शतहस्त) = सैकड़ों हाथों से युक्त प्रभो! आप सैकड़ों हाथों से (समाहर) = हमारे लिए धन-धान्य प्राप्त कराईए। हे (सहस्त्रहस्त) = हज़ारों हाथोंवाले प्रभो! (संकिर) = हममें धनों को प्रेरित कीजिए [विक्षिप]।२. (च) = और इसप्रकार (इह) = इस जीवन में (कृतस्य कार्यस्य) = कर्त्तव्यभूत कार्यों की (स्फातिम्) = समृद्धि को (समावह) = दीजिए। हम धन-धान्य प्राप्त करके अपने कर्तव्य-कर्मों को ठीक रूप से करनेवाले बनें।
भावार्थ
प्रभु हमें प्रभूत धन-धान्य प्राप्त कराएँ। पोषण की चिन्ता से रहित होकर हम अपने कर्त्तव्य-कर्मों को ठीक रूप से करनेवाले बनें।
भाषार्थ
[हे कृषि करने वाले ! मन्त्र ३] (शतहस्त) सौ हाथोंवाला होकर (समाहर) धान्य आदि का संग्रह कर, और (सहस्रहस्त) हजार हाथोंवाला होकर (संकिर) सम्यक् दान कर। (इह) इस राज्य में (कृतस्य) किये दान की, (च) और (कार्यस्य) भावी काल में किये जाने वाले योग्य दान की (स्फातिम्) वृद्धि को (सम् आवह) संप्राप्त कर।
टिप्पणी
[कृषक के लिए कहा है कि तू जितना धान्य प्राप्त करता है, उससे अधिक दान देने के लिए प्रयल कर। संकिर=सम् कृ विक्षेपे (तुदादि:)। विक्षेप है फेंकना। इस द्वारा सम्पत्ति में मोह त्याग सूचित किया है।]
विषय
उत्तम धान्य और औषधियों के संग्रह का उपदेश ।
भावार्थ
हे (शतहस्त) सैकड़ो हाथों-श्रमीजनों के स्वामिन् ! और हे (सहस्र-हस्त) हजारों हाथों-श्रमीजनों के स्वामिन् ! (सं किर) खेत में एक ही समय सर्वत्र बीज बखेर और (कृतस्य) अपने किये (कार्यस्य) कृषि-कार्य की (इह) इस उपजाऊ क्षेत्र में (स्फातिं) भारी फसल को (सम् आवह) प्राप्त कर ।
टिप्पणी
(द्वि० तृ०) ‘सहस्रैव संगिरः यथेयं स्फातिरायसि’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्ऋषिः। वनस्पतिएत प्रजापतिर्देवता। १, ३-७ अनुष्टुभः। २ निचृत्पथ्या पंक्तिः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Samrddhi, Abundance
Meaning
Hundred - handed, bring in, collect. Thousand¬ handed, pour out, distribute, give. Of the done, and of what is to be done, of actual and potential, current and possible, create overflowing abundance.
Translation
O hundred handed, may you gather. O thousand-handed, may you distribute. And may you bring about growth of what is accomplished and what is yet to be accomplished here.
Translation
O man earn like a man who has hundreds of hands and give it to others like the, man who has thousands of hands. Attain the full fruit of your labor and skill in this world.
Translation
O man, earn money with a hundred hands, and give it away in charity with a thousand hands. Thus fulfill here your bounden duty.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(शतहस्त) हे बहुप्रकारेण हस्तक्रियाकुशल। हे बहुक्रियाकुशलपुरुषैर्युक्त मनुष्य ! (समाहर) समाहृत्य प्राप्नुहि। (सहस्रहस्त) असंख्यहस्तक्रियाकुशलपुरुषैर्युक्त ! (सम्) सम्यक्। शोभनरीत्या। (किर) कॄ विक्षेपे। ॠत इद्धातोः। पा० ७।१।१०। इति इत्त्वम्। विक्षिप। प्रयच्छ। (कृतस्य) निष्पन्नस्य। (कार्यस्य) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। इति कृञ्-ण्यत्। कर्त्तव्यस्य कर्मणः। (स्फातिम्) म० ४। समृद्धिम्। (समाहर) सम्यग् आनय ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
[হে কৃষক! মন্ত্র ৩] (শতহস্ত) শত হাতযুক্ত হয়ে (সমাহর) ধান্য-এর সংগ্রহ করো, এবং (সহস্রহস্ত) সহস্র হাতযুক্ত হয়ে (সংকির) সম্যক্ দান করো। (ইহ) এই রাজ্যে (কৃতস্য) কৃত দানের (চ) এবং (কার্যস্য) ভবিষ্যতের করার যোগ্য দানের (স্ফাতিম্) বৃদ্ধিকে (সম্ আবহ) সংপ্রাপ্ত করো।
टिप्पणी
[কৃষকের জন্য বলা হয়েছে যে, তুমি যত ধান্য করো, তার চেয়ে অধিক দান দেওয়ার জন্য চেষ্টা করো। সংকির = সম্ +কৄ বিক্ষেপে (তুদাদিঃ)।বিক্ষেপ হল নিক্ষেপ করা। এর দ্বারা সম্পত্তির থেকে মোহ ত্যাগের প্রকাশ করা হয়েছে।]
मन्त्र विषय
ধান্যসমৃদ্ধিকর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(শতহস্ত) হে শত হস্তযুক্ত ! [মনুষ্য !] [ধান্য কে-ম০ ৪] (সমাহর) একসাথে/একত্রিত করে নিয়ে এসো, এবং (সহস্রহস্ত) হে সহস্র হস্তযুক্ত (সম্) উত্তমরূপে (কির) বিস্তৃত করো। (চ) এবং (কৃতস্য) কৃত ও (কার্যস্য) কর্তব্য কর্মের (স্ফাতিম্) বৃদ্ধি/সমৃদ্ধিকে (ইহ) এখানে (সমাবহ) একসাথে নিয়ে এসো ॥৫॥
भावार्थ
মনুষ্য শত ও সহস্র প্রকারে কর্মকুশল হয়ে, এবং সহস্র কর্মকুশলদের সাথে যুক্ত হয়ে একসাথে ধন ধান্য একত্র করুক এবং উত্তম কর্মে ব্যয় করে বিচারপূর্বক সদা উন্নতি করতে থাকুক ॥৫॥
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