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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भृगुः देवता - वनस्पतिः, प्रजापतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - समृद्धि प्राप्ति सूक्त
    78

    उ॑पो॒हश्च॑ समू॒हश्च॑ क्ष॒त्तारौ॑ ते प्रजापते। तावि॒हा व॑हतां स्फा॒तिं ब॒हुं भू॒मान॒मक्षि॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ऽऊ॒ह: । च॒ । स॒म्ऽऊ॒ह: । च॒ । क्ष॒त्तारौ॑ । ते॒ । प्र॒जा॒ऽप॒ते॒ । तौ । इ॒ह । आ । व॒ह॒ता॒म् । स्फा॒तिम् । ब॒हुम् । भू॒मान॑म् । अक्षि॑तम् ॥२४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपोहश्च समूहश्च क्षत्तारौ ते प्रजापते। ताविहा वहतां स्फातिं बहुं भूमानमक्षितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽऊह: । च । सम्ऽऊह: । च । क्षत्तारौ । ते । प्रजाऽपते । तौ । इह । आ । वहताम् । स्फातिम् । बहुम् । भूमानम् । अक्षितम् ॥२४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 24; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    धान्य बढ़ाने के कर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रजापते) हे प्रजापालक गृहस्थ ! (उपोहः) योग [प्राप्ति] (च) और (समूहः) संग्रह [क्षेम वा रक्षा] दोनों (च) निश्चय करके (ते) तेरे (क्षत्तारौ) क्षत्रिय [क्षति वा हानि से बचानेवाले] हैं। (तौ) वे दोनों (इह) यहाँ पर (स्फातिम्) बढ़ती और (बहुम्) बहुत (अक्षितम्) अचूक (भूमानम्) अधिकाई (आ वहताम्) लावें ॥७॥

    भावार्थ

    गृहस्थ लोग पुरुषार्थ करके विद्या, धन, धान्य आदि जीवन सामग्री की १-प्राप्ति, २-रक्षा और ३-वृद्धि वा ऋद्धि सिद्धि करके आनन्द भोगें ॥७॥ यजुर्वेद में आया हैः−योगक्षे॒मो नः॑ कल्पताम् ॥ य० २२।२२ ॥ (नः) हमारा (योगक्षेमः) योग-अप्राप्त वस्तु का लाभ, और क्षेम-प्राप्त पदार्थ की रक्षा (कल्पताम्) समर्थ अर्थात् पर्याप्त होवे ॥

    टिप्पणी

    ७−(उपोहः) उप+ऊह वितर्के-घञ्। योगः। अलब्धलाभः। (समूहः) सम्+ऊह-घञ्। समुदायः। क्षेमः। लब्धस्य रक्षणम् (क्षत्तारौ) क्षणु वधे-क्विप्, इति क्षात्। तॄ तरणे, णिच्-अच्। तारयतीति तारः। क्षतः क्षतात् रक्षकौ। क्षत्रियौ। (ते) तव। (प्रजापते) हे सन्तानपालक गृहस्थ। (तौ) तादृशौ। उपोहसमूहौ। (आ वहताम्) आनयताम् (स्फातिम्) म० ४। समृद्धिम् (बहुम्) विपुलम् (भूमानम्) बहु-इमनिच्। बहोर्लोपो भू च बहोः। पा० ६।४।१५८। इति इमनिच् इकारलोपो बहोर्भूभावश्च। धनधान्यविषयं बहुभावम्। (अक्षितम्) क्षयरहितम् ॥

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    विषय

    उपोह+समूह

    पदार्थ

    १. (उपोहः) = [उप समीपं अहति प्रापयति] अप्राप्त धान्य आदि को प्राप्त करना, अर्थात् योग (च) = और (समूहः) = [प्रासं समूहति अभिवर्धयति] प्राप्त धन-धान्य का अभिवर्धन व रक्षण, अर्थात् क्षेम (च) = निश्चय से (ते) = तेरे (क्षत्तारौ) = क्षतों से त्राण करनेवाले हैं। ये योग-क्षेम हे (प्रजापते) = परिवार का पालन करनेवाले सद्गृहस्थ ! तेरे रक्षक हैं। (तौ) = वे योग और क्षेम (इह) = यहाँ-इस घर में (बहुं स्फातिम्) = खूब ही वृद्धि को (आवहताम्) = प्रास कराएँ, जो वृद्धि (भूमानम्) = घर की सत्ता का कारण बनती है। [भू सत्तायाम्] तथा (अक्षितम्) = घर को विनाश से बचाती है।

    भावार्थ

    एक गृहस्थ योग-क्षेम का ध्यान करे । ये ही घर की स्थिति या विनाश का करण बनते हैं। अगले सूक्त का ऋषि भी 'भृगु' ही है |

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    भाषार्थ

    (प्रजापते) उत्पन्न सन्तानों के रक्षक! [हे सद्गृहस्थ] (उपोह:) धन की प्राप्ति (च) और (समूहः) उसका समूहीकरण अर्थात् बढ़ाना, (ते) तेरे लिए, (क्षत्तारौ) क्षतिनद से तैरानेवाले हैं; (तौ) वे दोनों (इह) इस गृहस्थ में (स्फातिम्) समृद्धि को, (अक्षितम्) तथा न क्षीण होनेवाले (बहुम्) बहुत प्रकार की (भूमानम्) बहुतायत को (आ वहताम्) प्राप्त कराएँ,

    टिप्पणी

    [वह प्रापणे]। [उपोह:=उप+ वह प्राप्तौ (भ्वादिः)। समूहः=सम्+ वह प्राप्तौ। क्षत्तारौ=क्षत् तृ संतरणे (भ्वादिः)।]

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    विषय

    उत्तम धान्य और औषधियों के संग्रह का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे प्रजापते ! प्रजा के स्वामिन् ! (उपोहः च) उपोह और (समूहः च) समूह ये दोनों (ते क्षत्तारौ) तेरे क्षत्ता=मन्त्री हैं (ते) वे दोनों (इह) इस लोक में (बहुम्) संख्या में अधिक और (भूमानम्) परिमाण में भी अधिक (अक्षितं) अक्षय (स्फातिम्) अन्न समृद्धि को (वहतां) प्राप्त करावें । धान्य फसल को खेत में प्राप्त कराने और पुनः उसका उत्तम रीति से संग्रह करने वाली शक्तियां उपोह और समूह, दो शब्दों से बतलाई गई हैं। राजा के पास दो शक्तियां हैं (१) धान्य के समान राष्ट्र को फटक २ कर साफ करना (२) सब क्षेत्रों से धनको एकत्र संग्रह करना ।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘वहतम्’ इति क्वचित् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। वनस्पतिएत प्रजापतिर्देवता। १, ३-७ अनुष्टुभः। २ निचृत्पथ्या पंक्तिः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Samrddhi, Abundance

    Meaning

    O Prajapati, supreme ruler and protector of the earth and her children, Upoha and Samuha, Yoga and Kshema, collection and managemant, income and expenditure including reserve and disbursement, these two are the main departments of governance and administration. May these two bring you great, abundant and undiminishing value and return for the nation’s economy and progress.

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    Translation

    O Lord of creatures, the aqcuisition (of wealth) (upoha) and (its) accumulation (Samūha) are your two attendants. May both of them bring here prosperity of all sorts, abundant and never diminishing.

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    Translation

    O house-holding man, addition and collection are the two attendants of yours. Let these two bring great, abundant and inexhaustible increase.

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    Translation

    O householder, collection and preservation, these two traits of thine are thy saviors from ruin. May they bring hither increase, wealth abundant and inexhaustible.

    Footnote

    They refer to two traits. A householder should grow more food, collect corn, and preserve it for use when need. In this way he will be saved from ruin or loss.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(उपोहः) उप+ऊह वितर्के-घञ्। योगः। अलब्धलाभः। (समूहः) सम्+ऊह-घञ्। समुदायः। क्षेमः। लब्धस्य रक्षणम् (क्षत्तारौ) क्षणु वधे-क्विप्, इति क्षात्। तॄ तरणे, णिच्-अच्। तारयतीति तारः। क्षतः क्षतात् रक्षकौ। क्षत्रियौ। (ते) तव। (प्रजापते) हे सन्तानपालक गृहस्थ। (तौ) तादृशौ। उपोहसमूहौ। (आ वहताम्) आनयताम् (स्फातिम्) म० ४। समृद्धिम् (बहुम्) विपुलम् (भूमानम्) बहु-इमनिच्। बहोर्लोपो भू च बहोः। पा० ६।४।१५८। इति इमनिच् इकारलोपो बहोर्भूभावश्च। धनधान्यविषयं बहुभावम्। (अक्षितम्) क्षयरहितम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (প্রজাপতৈ) উৎপন্ন/জাত সন্তানদের রক্ষক! [হে সদগৃহস্থ] (উপোহঃ) সম্পদের প্রাপ্তি (চ) এবং (সমূহঃ) এর সমূহীকরণ অর্থাৎ বৃদ্ধি করা, (তে) তোমার জন্য, (ক্ষতারৌ) ক্ষতিনদ থেকে ত্রাণকারী; (তৌ) সেই দুজন (ইহ) এই গৃহস্থে (স্ফাতিম্) সমৃদ্ধিকে (অক্ষিতম) এবং না ক্ষীণ হওয়া (বহুম্) বহু ধরণের (ভূমানম্) প্রাচুর্য্যকে (আ বহতাম্) নিয়ে আসুক। (বহ প্রাপণে)

    टिप्पणी

    [উপোহঃ = উপ+বহ প্রাপ্তৌ (ভ্বাদিঃ)। সমূহঃ = সম্+বহ প্রাপ্তৌ। ক্ষত্তারৌ = ক্ষত + তৄ সন্তরণে (ভ্বাদিঃ)।]

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    मन्त्र विषय

    ধান্যসমৃদ্ধিকর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (প্রজাপতে) হে প্রজাপালক গৃহস্থ ! (উপোহঃ) যোগ [প্রাপ্তি] (চ) এবং (সমূহঃ) সংগ্রহ [ক্ষেম বা রক্ষা] উভয়ই (চ) নিশ্চিতরূপে (তে) তোমার (ক্ষত্তারৌ) ক্ষত্রিয় [ক্ষতি বা হানি থেকে রক্ষাকারী]। (তৌ) এই দুই (ইহ) এখানে (স্ফাতিম্) বৃদ্ধি/সমৃদ্ধি এবং (বহুম্) বহু (অক্ষিতম্) ক্ষয়রহিত (ভূমানম্) অধিকাংশই (আ বহতাম্) নিয়ে আসুক ॥৭॥

    भावार्थ

    গৃহস্থরা পুরুষার্থ করে বিদ্যা, ধন, ধান্য আদি জীবন সামগ্রীর ১-প্রাপ্তি, ২-রক্ষা এবং ৩-বৃদ্ধি বা ঋদ্ধি সিদ্ধি করে আনন্দ ভোগ করুক ॥৭॥ যজুর্বেদে রয়েছে- যোগক্ষে॒মো নঃ॑ কল্পতাম্ ॥ য০ ২২।২২ ॥ (নঃ) আমাদের (যোগক্ষেমঃ) যোগ-অপ্রাপ্ত বস্তু এর লাভ, এবং ক্ষেম-প্রাপ্ত পদার্থের রক্ষা (কল্পতাম্) সমর্থ অর্থাৎ পর্যাপ্ত হোক ॥

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