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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
    ऋषिः - भृगुः देवता - वनस्पतिः, प्रजापतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - समृद्धि प्राप्ति सूक्त
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    ति॒स्रो मात्रा॑ गन्ध॒र्वाणां॒ चत॑स्रो गृ॒हप॑त्न्याः। तासां॒ या स्फा॒ति॒मत्त॑मा॒ तया॑ त्वा॒भि मृ॑शामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ति॒स्र: । मात्रा॑: । ग॒न्ध॒र्वाणा॑म् । चत॑स्र: । गृ॒हऽप॑त्न्या: । तासा॑म् । या । स्फा॒ति॒मत्ऽत॑मा । तया॑ । त्वा॒ । अ॒भि । मृ॒शा॒म॒सि॒ ॥२४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तिस्रो मात्रा गन्धर्वाणां चतस्रो गृहपत्न्याः। तासां या स्फातिमत्तमा तया त्वाभि मृशामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तिस्र: । मात्रा: । गन्धर्वाणाम् । चतस्र: । गृहऽपत्न्या: । तासाम् । या । स्फातिमत्ऽतमा । तया । त्वा । अभि । मृशामसि ॥२४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 24; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    धान्य बढ़ाने के कर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (तिस्रः) तीन (मात्राः) मात्रायें [भाग] (गन्धर्वाणाम्) विद्या वा पृथिवी धारण करनेवालों की, और (चतस्रः) चार (गृहपत्न्याः) गृहपत्नी [घर की पालन शक्ति] की [होवें], (तासाम्) उन सब [मात्राओं] में से (या) जो (स्फातिमत्तमा) अत्यन्त समृद्धिवाली है, (तया) उस [मात्रा] से (त्वा) तुझको (अभि) सब ओर से (मृशामसि=०-मः) हम छूते [संयुक्त करते] हैं ॥६॥

    भावार्थ

    सब कुटुम्बी लोग जो धन धान्य कमावें, उसमें से उत्तम अधिकांश अनदेखे विपत्ति समय के लिए प्रधान पुरुष को सौपें, और शेष के सात भाग करके तीन भाग विद्यावृद्धि और राजप्रबन्ध आदि और चार भाग सामान्य निर्वाह खान पान वस्त्र आदि में व्यय करें। यह वैदिक शिक्षा सब मनुष्यों के सुख का मूल है ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (मात्राः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। इति माङ् माने-त्रन्, टाप्। परिमाणानि (गन्धर्वाणाम्) अ० २।१।२। गो+धृञ्-व। गोर्विद्यायाः पृथिव्या वा धारकाणाम्। (चतस्रः) (गृहपत्न्याः) गृहपालनशक्तेः। (तासाम्) सर्वमात्राणाम् (स्फातिमत्तमा) स्फाति+मतुप्+तमप्+टाप्। अतिशयेन समृद्धियुक्ता। (त्वा) प्रधानम् (अभि) सर्वतः (मृशामसि) मृशामः। स्पृशामः। संयोजयामः ॥

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    विषय

    तीन-चार+एक

    पदार्थ

    १. अर्जित धन-धान्य में से (तिस्त्रः मात्रा) = तीन अंश (गन्धर्वाणाम्) = ज्ञान को धारण करनेवाले के हों, अर्थात् धन के तीन अंश ज्ञान-प्राप्ति में व्ययित [खर्च] हों। बच्चों के शिक्षण, पुस्तकों के संग्रह व पाठशाला के लिए दान आदि कार्यों में धन के तीन अंशों का विनियोग किया जाए २. (चतस्त्र:) = धन की चार मात्राएँ (गृहपल्या:) = गृहपत्नी की हों। इन्हें वह घर के आवश्यक अन्न-वस्त्र आदि के जुटाने में प्रयुक्त करेगी। ३. (तासाम्) = उन मात्राओं में या जो (स्फातिमत्तमा) = अतिशयेन वृद्धि से युक्त है-राष्ट्र-वृद्धि का कारण बनती है (तया) = उस कला से (त्वा अभिमशामसि) = तुझे छूते हैं। धन की इस आठवीं कला को राजा के लिए देते हैं, जिसके द्वारा वह राष्ट्रवृद्धि के कार्यों को करनेवाला होता है।

    भावार्थ

    धन को हम आठ भागों में बाँटें, तीन अंशों का शिक्षा व ज्ञानवृद्धि में व्यय करें, चार अंशों को घर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तथा एक अंश को राजा के लिए कर रूप में दें, जिससे राष्ट्र की वृद्धि ठीक रूप से हो सके।

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    भाषार्थ

    (गन्धर्वाणाम्) पृथिवी के धारण करनेवाले पतियों का (मात्रा) हिस्सा है (तिस्रः) तीन और (गृहपत्याः) गृहपत्नी की मात्राएँ हैं, हिस्से में चार (तासाम्) उन मात्राओं में (या) जो (स्फातिमत्तमा) अतिसमृद्धियुक्त मात्रा है, (तया) उस मात्रा के साथ (त्वा) हे गृहपत्नी ! (अभिमृशामसि) हम तेरा स्पर्श करते हैं।

    टिप्पणी

    [अभिमृशामसि द्वारा राज्याधिकारी गृहपति को आश्वासन देते हैं। गृहपत्नी जब प्राप्त सम्पत्ति की अधिकारिणी हो, तो वह गृहजीवन में स्वतन्त्रता अनुभव कर सकती है। और पति-पत्नी परस्पर के सहयोगपूर्वक अधिक सुखी रह सकते हैं ।]

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    विषय

    उत्तम धान्य और औषधियों के संग्रह का उपदेश ।

    भावार्थ

    फसल को तैयार करने के लिये (गन्धर्वाणां) गौ पृथिवी को धारण करने वाले ज़मीदार कृषकों और जल वायु और सूर्य इनकी (तिस्रः मात्राः) तीन मात्राएं हैं, तीन अंश हैं। (गृह- पत्न्याः) गृह की पत्नी पृथिवी और घर की मालकिन की भी (चतस्रःमा) चार मात्राएं हैं। चार अंश हैं। (तासां) उन सब विधियों में से जो (स्फातिमत्-तमा) सब से अधिक अन्न को समृद्ध करने वाली है (तया) उस शैली से (त्वा अभि मृशामसि) तुझे बढ़ावें और उन्नत करें। वायु, जल और सूर्य इन तीन गन्धर्वों की तीन मात्राएं हैं, रसादान, प्राणानुप्राणन और तेजी भाग का देना। पृथिवी उनकी गृहपली है इसलिये उसके चार अंश हैं। पार्थिव अंश से आश्रय देना, मूलारोपण, स्थापन, अभिवर्धन और बीजोद्गमन। इसी प्रकार अन्न को प्राप्त करने में किसान पुरुषों का कार्य है हलकर्षण, वीजवपन और सेचन, स्त्रियों के कार्य है धान्य रक्षण, काटना, झाड़ना, पिछोरना और संग्रह करना । इत्यादि ।

    टिप्पणी

    (च०) ‘मर्शामसि’। इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। वनस्पतिएत प्रजापतिर्देवता। १, ३-७ अनुष्टुभः। २ निचृत्पथ्या पंक्तिः। सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Samrddhi, Abundance

    Meaning

    Three parts of the national production and income belong to the Gandharvas, departments of earth and the environment, defence and administration, and culture and education of the nation, four parts belong to the ladies of the homes for upkeep and maintenance of the house and the family. Of these seven parts of the production, income and distribution, whatever is the best and most profitable way for the nation, we, the Executive-in-Council, provide for you.

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    Translation

    Three units (tisro-matrā), or three measures of the agriculturists (gandharva) and four units of their womenfolk are there for acquiring prosperity. Out of them, O food grain, I treat you with the one, which is most fattening for you.

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    Translation

    Three parts of the yield-crop belong to the peasants who are responsible for the peasantry. Four parts go to household wife, the land-lady and what is the most abundant part we therewith bless you.

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    Translation

    Of the corn produced, the major and best part should be handed overto the lord of the house, for use in emergency, three parts of the rest should be given to the Government for the spread of education and administration of the state, and four parts should be reserved for domestic use by the mistress of the house.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (मात्राः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। इति माङ् माने-त्रन्, टाप्। परिमाणानि (गन्धर्वाणाम्) अ० २।१।२। गो+धृञ्-व। गोर्विद्यायाः पृथिव्या वा धारकाणाम्। (चतस्रः) (गृहपत्न्याः) गृहपालनशक्तेः। (तासाम्) सर्वमात्राणाम् (स्फातिमत्तमा) स्फाति+मतुप्+तमप्+टाप्। अतिशयेन समृद्धियुक्ता। (त्वा) प्रधानम् (अभि) सर्वतः (मृशामसि) मृशामः। स्पृशामः। संयोजयामः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (গন্ধর্বাণাম্‌) পৃথিবীর ধারণকারী স্বামীদের (মাত্রা) অংশ (তিস্রঃ) তিন এবং (গৃহপত্যাঃ) গৃহবধূর পরিমাণ রয়েছে, অংশের চার (তাসাম্) সেই মাত্রার মধ্যে (যা) যে (স্ফাতিমত্তমা) অতিসমৃদ্ধিযুক্ত মাত্রা আছে, (তয়া) সেই মাত্রার সাথে (ত্বা) হে গৃহপত্নী! (অভিমৃশামসি) আমি তোমাকে স্পর্শ/সংসর্গ করাই।

    टिप्पणी

    [অভিমৃশামসি দ্বারা রাজ্যাধিকারী গৃহপত্নীকে আশ্বাস দেয়। গৃহপত্নী যখন প্রাপ্ত সম্পত্তির অধিকারিণী হবে, তখন সে গৃহজীবনে স্বতন্ত্রতা অনুভব করতে পারে। এবং স্বামী-স্ত্রী পারস্পরিক সহায়তায় সুখী হতে পারে।]

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    मन्त्र विषय

    ধান্যসমৃদ্ধিকর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তিস্রঃ) তিন (মাত্রাঃ) মাত্রা [ভাগ] (গন্ধর্বাণাম্) বিদ্যা বা পৃথিবী ধারণকারীর, এবং (চতস্রঃ) চার (গৃহপত্ন্যাঃ) গৃহপত্নী [ঘরের পালন শক্তি] এর [হোক], (তাসাম্) সেই সব [মাত্রা] থেকে (যা) যা (স্ফাতিমত্তমা) অত্যন্ত সমৃদ্ধযুক্তা, (তয়া) সেই [মাত্রা] দ্বারা (ত্বা) তোমাকে (অভি) সর্বতোভাবে/সব দিক থেকে (মৃশামসি=০-মঃ) আমরা স্পর্শ [সংযুক্ত করি] ॥৬॥

    भावार्थ

    সমস্ত কুটুম যারা ধন ধান্য অর্জন করবে, তা থেকে উত্তম অধিকাংশ অদৃষ্ট বিপত্তি সময়ের জন্য প্রধান পুরুষের প্রতি অর্পণ করুক, এবং অবশিষ্টাংশের সাত ভাগ করে তিন ভাগ বিদ্যাবৃদ্ধি ও রাজপ্রবন্ধ আদি এবং চার ভাগ সামান্য নির্বাহ খাদ্য, পানীয়, বস্ত্র প্রভৃতিতে ব্যয় করুক। এই বৈদিক শিক্ষা সমস্ত মানুষের সুখের মূল॥৬॥

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