Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 17 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
    ऋषिः - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
    57

    दौष्व॑प्न्यं॒ दौर्जी॑वित्यं॒ रक्षो॑ अ॒भ्व॑मरा॒य्यः॑। दु॒र्णाम्नीः॒ सर्वा॑ दु॒र्वाच॒स्ता अ॒स्मन्ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दौ:ऽस्व॑प्न्यम् । दौ:ऽजी॑वित्यम् । रक्ष॑: । अ॒भ्व᳡म् । अ॒रा॒य्य᳡: । दु॒:ऽनाम्नी॑: । सर्वा॑: । दु॒:ऽवाच॑: । ता: । अ॒स्मत् । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥१७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दौष्वप्न्यं दौर्जीवित्यं रक्षो अभ्वमराय्यः। दुर्णाम्नीः सर्वा दुर्वाचस्ता अस्मन्नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दौ:ऽस्वप्न्यम् । दौ:ऽजीवित्यम् । रक्ष: । अभ्वम् । अराय्य: । दु:ऽनाम्नी: । सर्वा: । दु:ऽवाच: । ता: । अस्मत् । नाशयामसि ॥१७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (दौष्वप्न्यम्) नींद में बेचैनी, (दौर्जीवित्यम्) जीवन का कष्ट, (अभ्वम्) बड़े (रक्षः) राक्षस, (अराय्यः) अनेक अलक्ष्मियों और (दुर्णाम्नीः) दुष्ट नामवाली (दुर्वाचः) कुवाणियों, (ताः सर्वाः) इन सबको (अस्मत्) अपने से (नाशयामसि) हम नाश करें ॥५॥

    भावार्थ

    राजा ऐसी नीति चलावे कि प्रजागण बाहिर भीतर से निश्चिन्त होकर सुख की नींद सोवें, उद्यमी होकर आनन्द भोगें, चोर डाकू आदिकों से निर्भय रहें, धन की वृद्धि करें और विद्याबल से कलह छोड़कर परस्पर उन्नति करने में लगे रहें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(दौष्वप्न्यम्) दुर्+स्वप्न−ष्यञ्। बाह्याभ्यन्तरकारणैः स्वप्नावसादं निद्राभङ्गम् (दौर्जीवित्यम्) दुर्+जीवित−ष्यञ्। दुर्जीवनत्वम् (रक्षः) राक्षसम् (अभ्वम्) अशूप्रुषि०। उ० १।१५१। इति अभि शब्दे-क्वन्, नलोपः। अभ्वो महन्नाम-निघ० ३।३। महद्। अतिभयकरम्। (अराय्यः) अ० २।१४।३। शसि जस्। अरायीः। अलक्ष्मीः। विपत्तीः (दुर्णाम्नीः) दुर्+नामन्-ङीप् दुष्टनामोपेताः (सर्वाः) दुर्वाचः। दुष्टवाणीः (ताः) (अस्मत्) अस्मत्सकाशात् (नाशयामसि) नाशयामः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    "शुभ-लक्ष्मी-सम्पन्न' जीवन

    पदार्थ

    १. (दौष्वप्न्यम्) = बुरे स्वप्नों का आते रहना, (दौर्जीवित्यम्) = कष्टमय जीवन का होना (अभ्वं रक्षः) = [अभय-महत] महान् भय के कारणभूत रोगकृमि, (अराय्यः) = असमृद्धि की कारणभूत अलक्ष्मियाँ, (दुर्नाम्नी:) = दुष्ट नामवाले बवासीर आदि रोग तथा (सर्वा दुर्वाच:) = सब अशुभ वाणियाँ (ता:) = उन सबको (अस्मत्) = अपने से नाशयामसि हम नष्ट करते हैं।

    भावार्थ

    अपामार्ग के प्रयोग से हम पूर्ण स्वस्थ बनते हैं। बुरे स्वप्न नहीं आते, जीवन रोगशून्य होकर कष्टमय नहीं रहता, भयजनक रोगकृमियों का विनाश होता है, शरीर अलक्ष्मीक नहीं रहता, बवासीर आदि अशुभ रोग दूर हो जाते हैं, रोग से आक्रान्त होकर हम ऊटपौंग नहीं बोलते।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (दौस्वप्न्यम्) दुःस्वप्न और उसमें अवाञ्छनीय दृश्य, यथा (दौर्जीवित्यम्) जीवन सम्बन्धी दुर्गति, (रक्षः) जिससे अपनी रक्षा अभीष्ट है ऐसे ‘क्रूर मनुष्य का दर्शन’ (अभ्वम्) निज सत्ता का अभाव अर्थात् निज मृत्यु का दर्शन, (अराय्यः) निज सम्पत्तियों का अभाव अर्थात विनाश-इन दृश्यों को (नाशायामसि) हम नष्ट करते हैं, तथा (दुर्णाम्नीः, दुर्वाचः, सर्वाः) बदनाम कुवचन बोलनेवाली सब स्त्रियों को (अस्मत्) अपने मध्य में से (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं।

    टिप्पणी

    [दुःस्वप्न आदि का विनाश तो निज मनोबल द्वारा या सूफ्तोक्त औषधियों द्वारा, सम्भव है और बदनाम स्त्रियों की दुष्प्रवृत्तियों का विनाश भी औषध-चिकित्सा द्वारा सम्भव है। अथवा राजव्यवस्थानुसार१ इन्हें मृत्युदण्ड देकर इनके विनाश को सूचित किया है।] [१. यथा “धर्माय सभाचरम्” (यजुः० ३०।६), धर्म के लिए सभा अर्थात् न्यायसभा और न्यायसभा के मुख्य न्यायाधीश को राजा प्राप्त करें [आलभते मन्त्र] धर्म का अभिप्राय ३०।२२ व्यवस्था, राजव्यवस्था तथा प्रजाव्यवस्था। न्यायसभा दोनों व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करती है। दण्ड देना भी न्यायसभा के निर्णयानुसार होता है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अपामार्ग और अपामार्ग विधान का वर्णन।

    भावार्थ

    उक्त प्रकार से रस ओषधि तैयार करने से निम्नलिखित प्रकार की व्याधियां दूर हो सकती हैं। हे पुरुष ! (दौः स्वप्न्यम्) बुरे स्वप्नों के आने, (दौर्जीवित्यम्) दुःख से जीने, फेंफड़ों में सांस लेने के समय पीड़ा होने आदि रोग को, (रक्षः) विघ्नकारी (अभ्वम्) निर्बलताकारी (अराय्यः) देह की कान्ति के विनाशक (दुर्नाम्नी:) बुरे रूप, रंग वाली व्याधियों को, और (दुर्वाचः) बदनाम करने वाली पाप व्याधियों या दुःख जनक चीत्कार, बड़बड़ाहट पैदा करने वाली बीमारियों को, (अस्मत्) हम (नाशयामास) दूर करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apamarga Herb

    Meaning

    Bad dreams and loss of sleep, depression, hyper tension and schizophrenia, debility, loss of lustre, and all cursed and superstitious diseases concerned with loss of honour and image and loss of reputation, we eliminate from us. (Durnaman and Durvach are names of piles.)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Unpleasant dreams, unwholesome living, germs (of diseases), epidemic (abhvamarayya) and wretchedness (ugly hags); all these evil-named and evil-voiced we drive away from us. (Abhva = invincible monster)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    We drive away from us bad-dreams, breathing-trouble, disease of affection, debility, bad diseases destroying the glamour of face and all sorts of delirium.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    We drive away from us, ill dream, wretchedness of life, troublesome, emaciating, beauty-consuming diseases, piles and delirium.

    Footnote

    By the use of proper medicine, we can get rid of diseases.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(दौष्वप्न्यम्) दुर्+स्वप्न−ष्यञ्। बाह्याभ्यन्तरकारणैः स्वप्नावसादं निद्राभङ्गम् (दौर्जीवित्यम्) दुर्+जीवित−ष्यञ्। दुर्जीवनत्वम् (रक्षः) राक्षसम् (अभ्वम्) अशूप्रुषि०। उ० १।१५१। इति अभि शब्दे-क्वन्, नलोपः। अभ्वो महन्नाम-निघ० ३।३। महद्। अतिभयकरम्। (अराय्यः) अ० २।१४।३। शसि जस्। अरायीः। अलक्ष्मीः। विपत्तीः (दुर्णाम्नीः) दुर्+नामन्-ङीप् दुष्टनामोपेताः (सर्वाः) दुर्वाचः। दुष्टवाणीः (ताः) (अस्मत्) अस्मत्सकाशात् (नाशयामसि) नाशयामः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top