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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शुक्रः देवता - अपामार्गो वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
    65

    तृ॑ष्णामा॒रं क्षु॑धामा॒रं अथो॑ अक्षपराज॒यम्। अपा॑मार्ग॒ त्वया॑ व॒यं सर्वं॒ तदप॑ मृज्महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तृ॒ष्णा॒ऽमा॒रम् । क्षु॒धा॒ऽमा॒रम् । अथो॒ इति॑ । अ॒क्ष॒ऽप॒रा॒ज॒यम् । अपा॑मार्ग । त्वया॑ । व॒यम् । सर्व॑म् । तत् । अप॑ । मृ॒ज्म॒हे॒ ॥१७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तृष्णामारं क्षुधामारं अथो अक्षपराजयम्। अपामार्ग त्वया वयं सर्वं तदप मृज्महे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तृष्णाऽमारम् । क्षुधाऽमारम् । अथो इति । अक्षऽपराजयम् । अपामार्ग । त्वया । वयम् । सर्वम् । तत् । अप । मृज्महे ॥१७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 17; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (तृष्णामारम्) पियास से मरना, (क्षुधामारम्) भूख से मरना, (अथो) और भी (अक्षपराजयम्) व्यवहारों वा इन्द्रियों की हार, (तत् सर्वम्) इस सबको, (अपामार्ग) हे सर्वसंशोधक राजन् ! (त्वया) तेरे साथ (वयम् अपमृज्महे) हम शोधते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    राजा के उत्तम प्रबन्ध से न तो जल, अन्न और दैनिक काम काज की हानि, और न शरीर और आत्मा की दुर्बलता होती है ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(अथो) अपि च (अक्षपराजयम्) अक्षू व्याप्तौ-पचाद्यच् घञ् वा। यद्वा। अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ स प्रत्ययः। अक्षाणां व्यवहाराणाम् इन्द्रियाणां वा पराजयं पराभवम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    'अक्षपराजय' दूरीकरण

    पदार्थ

    १. (तृष्णामारम्) = प्यास को मार देनेवाले अथवा प्यास से मार देनेवाले रोग को, (क्षुधामारम्) = भूख को मार देनेवाले अथवा भूख से मार देनेवाले रोग को अथ उ-और निश्चय से (अक्षपराजयम्) = इन्द्रियों के (पराजय) = [शैथिल्य]-रूप रोग की हे अपामार्ग! (त्वया) = तेरे प्रयोग से (वयम्) = हम (तत् सर्वम्) = उस सबको (अपमृण्महे) = दूर करते हैं।

    भावार्थ

    अपामार्ग के प्रयोग से भूख व प्यास ठीक लगने लगती है और इन्द्रियों का शैथिल्य नष्ट होता है।

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    भाषार्थ

    (क्षुधामारम्) अति क्षुधा द्वारा होनेवाली मृत्यु को, (तृष्णामारम्) अति प्यास द्वारा होनेवाली मृत्यु को, (अथो) तथा (अक्षपराजयम्) इन्द्रियों द्वारा पराजय को प्राप्त होना, (अपामार्ग) हैं अपामार्ग औषधि ! (त्वया) तेरे द्वारा (वयम्) हम (तत् सर्वम्) उस सबको (अप मृज्महे) हटाकर, पृथक कर, आत्म-शोधन करते हैं।

    टिप्पणी

    [अक्षपराजयम्=अक्ष [इन्द्रियाँ], उन द्वारा पराजय को प्राप्त होना, इन्द्रियों को स्ववश न कर, उनके वशीभूत हो जाना। अपामार्ग या उसके योग सम्भवतः इस निमित्त सहायक हों।]

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    विषय

    अपामार्ग और अपामार्ग विधान का वर्णन।

    भावार्थ

    उसी बात को पुनः दृढ़ करते हैं—हे (अपामार्ग) रोगों को दूर करने वाली ओषधे ! (त्वया) तेरे बल से (वयं) हम (तृष्णा-मारं) पियास के रोग को, (क्षुधा-मारं) भूख के रोग को, और (अक्ष-पराजयम्) इन्द्रिय-नाशक रोग को तथा (तत् सर्वं) उसी प्रकार अन्य सब रोगों को, (अप मृज्महे) विनाश करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-८ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apamarga Herb

    Meaning

    O Apamarga, panacea for health and happiness, with your versatile power and efficacy we eliminate from our life and society all diseases that cause death by thirst or loss of thirst, by hunger or loss of hunger, and all mental diseases caused by addiction such as gambling, alcohol or the thrill of chance and unknown possibility and expectation.

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    Translation

    Death due to hunger, death due to thirst, as well as defeat at the dice-play- all this, O apamarga (the wiper off), we wipe off with your aid.

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    Translation

    We wipe away through this Apamarga all that the mortality caused by thirst, the Mortality caused by hunger and the frustration caused in organs.

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    Translation

    O Apamarga, we cleanse and wipe away, with thine aid, the disease caused by thirst, caused by hunger, physical debility and all other ailments!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(अथो) अपि च (अक्षपराजयम्) अक्षू व्याप्तौ-पचाद्यच् घञ् वा। यद्वा। अशेर्देवने। उ० ३।६५। इति अशू व्याप्तौ स प्रत्ययः। अक्षाणां व्यवहाराणाम् इन्द्रियाणां वा पराजयं पराभवम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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