Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 8 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वाङ्गिराः देवता - चन्द्रमाः, आपः, राज्याभिषेकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राज्यभिषेक सूक्त
    48

    अ॒भि त्वा॒ वर्च॑सासिच॒न्नापो॑ दि॒व्याः पय॑स्वतीः। यथासो॑ मित्र॒वर्ध॑न॒स्तथा॑ त्वा सवि॒ता क॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । वर्च॑सा । अ॒सि॒च॒न् । आप॑: । दि॒व्या: । पय॑स्वती: । यथा॑ । अस॑: । मि॒त्र॒ऽवर्ध॑न: । तथा॑ । त्वा॒ । स॒वि॒ता । क॒र॒त् ॥८.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा वर्चसासिचन्नापो दिव्याः पयस्वतीः। यथासो मित्रवर्धनस्तथा त्वा सविता करत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । त्वा । वर्चसा । असिचन् । आप: । दिव्या: । पयस्वती: । यथा । अस: । मित्रऽवर्धन: । तथा । त्वा । सविता । करत् ॥८.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 8; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजतिलक यज्ञ का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (त्वा) तुझको (दिव्याः) दिव्य (पयस्वतीः=०-त्यः) सारयुक्त (आपः) जलधाराओं ने (वर्चसा) अपने बलदायक सार से (अभि असिचन्) सब प्रकार सींचा है, (यथा) जिससे तू (मित्रवर्धनः) मित्रों की वृद्धि करनेवाला (असः) होवे। (सविता) सर्वप्रेरक परमेश्वर (त्वा) तुझको (तथा) वैसे गुणवाला [जैसा जल] (करत्) करे ॥६॥

    भावार्थ

    अभिषेक के उपरान्त सब लोग आशीर्वाद दें, हे राजन् ! तुझे यह अभिषेक वा स्नान इसलिये कराया है कि जैसे जल अन्न आदि उत्पन्न करके संसार का उपकार करता है, वैसे ही सर्वप्रेरक परमेश्वर के अनुग्रह से तू प्रजाप्रेरक होकर अपने हितैषी जनों की सदा उन्नति करता रहे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(अभि असिचन्) षिच क्षरणे, सेके-लुङ्। अभिषेकयुक्तं कृतवत्यः (त्वा) राजानम् (वर्चसा) स्वकीयेन सारेण (आपः) (दिव्याः) (पयस्वतीः) पयस्वत्यः। सारवत्यः (यथा) येन प्रकारेण (असः) अस्तेर्लेटि अडागमः। त्वं भवेः (मित्रवर्धनः) म० २। मित्राणां वर्धयिता (तथा) तेन प्रकारेण। जलवत्स्वभावेन (सविता) सर्वप्रेरको देवः परमेश्वरः (करत्) लेट्। कुर्यात् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रभु-प्रेरणा प्राप्त करनेवाला' राजा

    पदार्थ

    १. हे राजन्! (दिव्याः) = आकाश से होनेवाले (पयस्वती:) = रसमय व आप्यायन के हेतुभूत (आप:) = जलों ने (त्वा) = तुझे (वर्चसा) = रोग-निवारक शक्ति से (अभि असिचन्) = सर्वतः सिक्त किया है। २. अभिषिक्त होने पर (सविता) = वह प्रेरक प्रभु (त्वा) = तुझे (तथाकरत्) = इसप्रकार बनाये-ऐसी क्षमता प्राप्त कराए कि (यथा) = जिससे तू (मित्रवर्धन: अस:) = मित्रों का वर्धन करनेवाला हो।

    भावार्थ

    दिव्य जलों के तेज से अभिषिक्त होकर राजा शक्तिशाली बनता है। प्रभु की प्रेरणा के अनुसार कार्य करता हुआ यह मित्रों का वर्धन करनेवाला होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    [हे राजन] (दिव्याः पयस्वतीः आपः) सारिष्ठ, द्युलोक से वर्षा के जल, (त्वा) तुझे (वर्चसा) वर्चस् द्वारा (अभि असिञ्चन्) अभिषिक्त करें; (यथा) जिस प्रकार कि (मित्रवर्धनः असः) तु पर-राष्ट्र में मित्रसंख्या को तथा अन्ताराष्ट्रिय मित्रों की संख्या को बढ़ानेवाले हो, (तथा) उस प्रकार (सविता) सर्वोत्पादक परमेश्वर (त्वा) तुझे (करत्) करे।

    टिप्पणी

    [द्युलोक से प्राप्त वर्षा-जल स्वच्छ होता है, भूमिष्ठ जल भी वर्षा द्वारा ही प्राप्त होता है, परन्तु भूमि के पदार्थों में मिलकर पूर्णतया स्वच्छ नहीं रहता। अन्ताराष्ट्रिय= अन्तर्राष्ट्रिय।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राज्याभिषेक योग्य रोजा का वर्णन।

    भावार्थ

    हे राजन् ! (त्वा) तुझे (पयस्वतीः) पुष्टिदायक सार पदार्थों से युक्त (दिव्याः) दिव्य-गुणसम्पन्न (आपः) जलों और आप्तजनों ने (वर्चसा) अपने तेज से जो (अभि असिचन्) सब प्रकार से या सब के समक्ष स्नान कराया है इसका तात्पर्य यही है कि तू (यथा) जिस प्रकार से हो सके (मित्रवर्धनः असः) अपने स्नेह करने वाले राजा और प्रजा, सामन्तों और अधिकारियों की वृद्धि करे (सविता) सर्वप्रेरक, सर्वोत्पादक पिता परमात्मा (तथा) उस प्रकार का (त्वा करत्) तुझे बनावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाङ्गिराः ऋषिः। राज्याभिषेकम्। चन्द्रमाः आपो वा देवताः। १, ८ भुरिक्-त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्। ५ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। २, ४, ६ अनुष्टुभः॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ruler’s Coronation

    Meaning

    Let divine showers of the milk and honey of glory bless and sanctify you with illustrious royalty. Let the showers of people’s profuse praise and exhortation raise you high with earthly grandeur. And as you advance the merit and dignity of friendly powers, so may Savita, divine lord of inspiration and creativity, bless you with regal honour and grace.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The celestial, sapful waters have consecrated you with lustre, May the impeller Lord (savitr) fashion you so that you shall be a promoter of friends. (Mitra-vardhana = promoter of friends).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The heavenly waters full of strength (rainy-waters) sprinkle on you with the power and might so that you may be the gladdener of friends and may the Creator of the universe do you so.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The heavenly waters rich in milk have sprinkled thee with power and might, to be the prosperer of thy friends, may God so fashion thee.

    Footnote

    Thee' refers to the king.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(अभि असिचन्) षिच क्षरणे, सेके-लुङ्। अभिषेकयुक्तं कृतवत्यः (त्वा) राजानम् (वर्चसा) स्वकीयेन सारेण (आपः) (दिव्याः) (पयस्वतीः) पयस्वत्यः। सारवत्यः (यथा) येन प्रकारेण (असः) अस्तेर्लेटि अडागमः। त्वं भवेः (मित्रवर्धनः) म० २। मित्राणां वर्धयिता (तथा) तेन प्रकारेण। जलवत्स्वभावेन (सविता) सर्वप्रेरको देवः परमेश्वरः (करत्) लेट्। कुर्यात् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top