अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 13
ऋषिः - अथर्वा
देवता - सर्वात्मा रुद्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मविद्या सूक्त
50
इन्द्र॑स्य॒ वर्मा॑सि। तं त्वा॒ प्र प॑द्ये॒ तं त्वा॒ प्र वि॑शामि॒ सर्व॑गुः॒ सर्व॑पूरुषः॒ सर्वा॑त्मा॒ सर्व॑तनूः स॒ह यन्मेऽस्ति॒ तेन॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑स्य । वर्म॑ । अ॒सि॒ । तम् । त्वा॒ । प्र । प॒द्ये॒ । तम् । त्वा॒ । वि॒शा॒मि॒ । सर्व॑ऽगु: । सर्व॑ऽपुरुष: । सर्व॑ऽआत्मा । सर्व॑ऽतनू: । स॒ह । यत् । मे॒ । अस्ति॑ । तेन॑ ॥६.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्य वर्मासि। तं त्वा प्र पद्ये तं त्वा प्र विशामि सर्वगुः सर्वपूरुषः सर्वात्मा सर्वतनूः सह यन्मेऽस्ति तेन ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रस्य । वर्म । असि । तम् । त्वा । प्र । पद्ये । तम् । त्वा । विशामि । सर्वऽगु: । सर्वऽपुरुष: । सर्वऽआत्मा । सर्वऽतनू: । सह । यत् । मे । अस्ति । तेन ॥६.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब सुख प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमात्मन् !] तू (इन्द्रस्य) जीवात्मा का (वर्म) कवच (असि) है.... म० ११ ॥१३॥
भावार्थ
मन्त्र ११ के समान है ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(वर्म) वृञ् वरणे−मनिन्। तनुत्राणम्। अन्यत्−म० १० ॥
विषय
शर्म, वर्म, वरूथ
पदार्थ
१३. हे प्रभो! आप (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष का (वर्म असि) = कवच हो। आप इस जितेन्द्रिय पुरुष को कामदेव के बाणों के आक्रमण से इसप्रकार बचाते हो जैसेकि कवच हमें शत्रु के बाणों से बचाता है। शेष पूर्ववत्।
भावार्थ
प्रभु ही हमारे रक्षक हैं, प्रभु ही कवच हैं, प्रभु ही हमारी ढाल है-प्रभु का स्मरण ही हमें शत्रुओं के आक्रमण से आक्रान्त होने से बचाएगा।
अगले सूक्त में भी ऋषि 'अथर्वा' ही है।
भाषार्थ
[हे ब्रह्म !] (इन्द्रस्य) इन्द्रियों के अधिष्ठाता जीवात्मा की ( वर्म) कवच (असि) तू है । (तम्, त्वा, प्रपद्ये) उस तुझको मैं प्राप्त होता हूँ, (तम्, त्वा, प्रविशामि) उस तुझमें में प्रवेश करता हूँ, (सर्वगु:) सब इन्द्रियोंवाला होता हुआ, तथा (सर्वपूरूषः ) सब पुरुषोंवाला होता हुआ भी। (सर्वात्मा) सर्वनामक तुझ ब्रह्म को निज आत्मा समझता हुआ, (सर्वतनू:) सब अवयवोंवाली तनूवाला, (सह तेन) उस सबके साथ होता हुआ (यत् मे अस्ति) जो कुछ कि मेरा है।
विषय
जगत्-स्रष्टा और राजा का वर्णन।
भावार्थ
हे राजन् ! तू (इन्द्रस्य वर्म असि) इन्द्र = ऐश्वर्यशील पद का कवच के समान रक्षक है। (तं त्वा०) उस तेरी मैं शरण में आता हूं, इत्यादि पूर्ववत्।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। १ सोमरुदौ, ब्रह्मादित्यौ, कर्माणि रुद्रगणाः हेतिश्च देवताः। १ त्रिष्टुप्। २ अनुष्टुप्। ३ जगती। ४ अनुष्टुबुष्णिक् त्रिष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती। ५–७ त्रिपदा विराड् नाम गायत्री। ८ एकावसना द्विपदाऽनुष्टुप्। १० प्रस्तारपंक्तिः। ११, १३, पंक्तयः, १४ स्वराट् पंक्तिः। चतुर्दशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma Vidya
Meaning
You are the ultimate shelter and protection of the soul, I come to you, I join your presence with all my power and potential, all my people, all my soul, all my body and mind, with all that is mine, I come
Translation
You are the armour of the resplendent Lord. To you as such, I approach. I enter you as such with all my senses (gau), with all my manly activity, with all my soul, with all my body and with all whatever is mine.
Translation
O King! you are the shield of dreadful mighty Indra. I... etc.
Translation
O God, Thou art the shield of the soul. I betake me to Thee, I enter Thy service, with all my dynamic strength, with all my enterprising spirit, with all my spiritual force, with all my physical force, nay with mine entire possessions!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(वर्म) वृञ् वरणे−मनिन्। तनुत्राणम्। अन्यत्−म० १० ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal