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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कर्म छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मविद्या सूक्त
    44

    अना॑प्ता॒ ये वः॑ प्रथ॒मा यानि॒ कर्मा॑णि चक्रि॒रे। वी॒रान्नो॒ अत्र॒ मा द॑भ॒न्तद्व॑ ए॒तत्पु॒रो द॑धे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अना॑प्ता: । ये । व॒: । प्र॒थ॒मा: । यानि॑ । कर्मा॑णि। च॒क्रि॒रे । वी॒रान् । न॒: । अत्र॑ । मा । द॒भ॒न् । तत् । व॒: । ए॒तत् । पु॒र: । द॒धे॒ ॥६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनाप्ता ये वः प्रथमा यानि कर्माणि चक्रिरे। वीरान्नो अत्र मा दभन्तद्व एतत्पुरो दधे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनाप्ता: । ये । व: । प्रथमा: । यानि । कर्माणि। चक्रिरे । वीरान् । न: । अत्र । मा । दभन् । तत् । व: । एतत् । पुर: । दधे ॥६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सुख प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जिन (प्रथमाः) प्रधान (अनाप्ताः) अत्यन्त यथार्थज्ञानी पुरुषों ने (वः) तुम्हारे लिये (यानि) पूजनीय (कर्माणि) कर्म (चक्रिरे) किये हैं, वे (नः) हम (वीरान्) वीरों को (अत्र) यहाँ पर (मा दभन्) न मारें, (तत्) सो (एतत्) इस कर्म को (वः) तुम्हारे (पुरः) आगे (दधे) मैं धरता हूँ ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्नपूर्वक जगत् हितकारी महात्माओं का अनुकरण करें और दुष्ट कर्म छोड़कर श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्त रहें ॥२॥ यह मन्त्र पहिले आ चुका है−अ० ४।७।७ ॥

    टिप्पणी

    २−अयं मन्त्रः पूर्वं व्याख्यातः−अ० ४।७।७। (अनाप्ताः) अनुत्तमाः। अतिशयेनाप्ताः (ये) पुरुषाः (वः) युष्मभ्यम् (प्रथमाः) प्रधानाः (यानि) यज−ड। यजनीयानि पूज्यानि (कर्माणि) आचरणानि (चक्रिरे) कृतवन्तः (वीरान्) शूरान् (नः) अस्मान् (अत्र) अस्मिन् संसारे (मा दभन्) मा हिंसन्तु ते शत्रवः (तत्) तस्मात् (वः) युष्माकम् (एतत्) क्रियमाणं कर्म (पुरः) पुरस्तात् (दधे) धारयामि ॥

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    विषय

    पथ-प्रदर्शक वेदज्ञान

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (वः) = तुम्हारे (प्रथमा:) = पहले (अनाता:) = अज्ञानी पुरुष (यानि कर्माणि) = जिन कर्मों को (चक्रिरे) = करते हैं, वे अज्ञानवश किये गये भ्रान्त कर्म (अत्र) = यहाँ (न: वीरान्) = हमारी वीर सन्तानों को (मा दभन्) = मत हिंसित करें। (तत्) = उस कारण से (एतत्) = इस बेदज्ञान को (वः पुरः दधे) = तुम्हारे आगे स्थापित करता हूँ। २. हमसे पहले के बड़े आदमी भी अज्ञानवश कुछ भ्रान्त कर्म कर बैठते हैं। उन्हें देखकर उन्हीं कर्मों में प्रवृत्त हो जाने से हानिकर परम्पराएँ चल पड़ती हैं। वे हमारे लिए हितकर नहीं होती। हमें चाहिए कि हम वेदज्ञान के अनुसार कार्यों को करते हुए (अन्ध) = परम्पराओं में बह जाने से बचें।

    भावार्थ

    वेदज्ञान हमारे लिए पथ-प्रदर्शक हो। हम देखादेखी भ्रान्त परम्पराओं में बहकर उलटे कर्म न कर बैठे।

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    भाषार्थ

    (व:) तुम्हारे, (अनाप्ताः) जिनसे बढ़कर कोई आप्त नहीं, (ये प्रथमाः) जोकि प्रथमकोटि के पुरुष हैं, (यानि कर्माणि) वे जिन कर्मों को (चक्रिरे) करते रहे हैं, (तत् ) उस कर्मसमूह को ( एतत् ) इस प्रयोजन को लक्ष्य कर (वः) तुम्हारे (पुरः) सामने (दधे) मैं रखता हूँ, ताकि ( अत्र) इस जीवन में (न:) हमारे (वीरान्) वीरपुत्रों को [ अन्य प्रकार के अर्थात् दुष्कर्म ] (मा)(दभन्) हिसित करें ।

    टिप्पणी

    [ये अनाप्त हैं वेदाविर्भाव करनेवाले अग्नि, वायु, आदित्य, अङ्गिरा।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma Vidya

    Meaning

    There are those among you who earlier were not wholly self-realised in knowledge and perfect experts in their job, but they did perform certain acts and created certain precedents. Let them and their work not mislead our children and harm our heroes. Therefore I place this knowledge and expertise before you for your guidance.

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    Subject

    Karma

    Translation

    None have attained (anāpta) to those of old, those who accomplished holy acts for you. Let them not harm your young heroes here, and for this reason I set before you this. (Also Av. IV.7.7)

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    Translation

    O men; Those ignorant persons amongst you and those their acts which they performed may not harm our heroes and children. Therefore, I, the priest set before you this Vedic speech. (as the code of conduct.)

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    Translation

    O men, in order that the acts committed by those of you who are not perfect in knowledge, may not harm in this world our sons, I set before you, this Veda, is full of that knowledge, which is perfect.

    Footnote

    ‘Our’ refers to mankind, i.e., the sons of all.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−अयं मन्त्रः पूर्वं व्याख्यातः−अ० ४।७।७। (अनाप्ताः) अनुत्तमाः। अतिशयेनाप्ताः (ये) पुरुषाः (वः) युष्मभ्यम् (प्रथमाः) प्रधानाः (यानि) यज−ड। यजनीयानि पूज्यानि (कर्माणि) आचरणानि (चक्रिरे) कृतवन्तः (वीरान्) शूरान् (नः) अस्मान् (अत्र) अस्मिन् संसारे (मा दभन्) मा हिंसन्तु ते शत्रवः (तत्) तस्मात् (वः) युष्माकम् (एतत्) क्रियमाणं कर्म (पुरः) पुरस्तात् (दधे) धारयामि ॥

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