अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः, गृहसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रम्यगृह सूक्त
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इ॒मे गृ॒हा म॑यो॒भुव॒ ऊर्ज॑स्वन्तः॒ पय॑स्वन्तः। पू॒र्णा वा॒मेन॒ तिष्ठ॑न्त॒स्ते नो॑ जानन्त्वाय॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मे । गृ॒हा: । म॒य॒:ऽभुव॑: । ऊर्ज॑स्वन्त: । पय॑स्वन्त: । पू॒र्णा: । वा॒मेन॑ । तिष्ठ॑न्त: । ते । न॒: । जा॒न॒न्तु॒ । आ॒ऽय॒त: ॥६२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इमे गृहा मयोभुव ऊर्जस्वन्तः पयस्वन्तः। पूर्णा वामेन तिष्ठन्तस्ते नो जानन्त्वायतः ॥
स्वर रहित पद पाठइमे । गृहा: । मय:ऽभुव: । ऊर्जस्वन्त: । पयस्वन्त: । पूर्णा: । वामेन । तिष्ठन्त: । ते । न: । जानन्तु । आऽयत: ॥६२.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कुवचन के त्याग का उपदेश।
पदार्थ
(इमे) यह (गृहाः) घर के लोग (मयोभुवः) आनन्द देनेवाले, (ऊर्जस्वन्तः) बड़े पराक्रमी, (पयस्वन्तः) उत्तम जल, दुग्ध आदिवाले, (वामेन) उत्तम धन से (पूर्णाः) भरपूर (तिष्ठन्तः) खड़े हुए हैं। (ते) वे लोग (आयतः) आते हुए (नः) हमको (जानन्तु) जानें ॥२॥
भावार्थ
घर के लोग बाहिर से आये हुए गृहस्थों और अतिथियों का यथावत् सत्कार करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(इमे) (गृहाः) गृहस्थाः (मयोभुवः) अ० १।५।१। सुखस्य भावयितारः (ऊर्जस्वन्तः) अ० ३।१२।२। प्रभूतपराक्रमिणः (पयस्वन्तः) उत्तमजलदुग्धादिसमृद्धाः (पूर्णाः) समृद्धाः (वामेन) प्रशस्येन धनेन। वामः प्रशस्यः-निघ० ३।८। (तिष्ठन्तः) (ते) गृहाः (जानन्तु) अवबुध्यन्ताम् (आयतः) इण् गतौ-शतृ। आगच्छतः ॥
विषय
'उर्जस्वन्तः पयस्वन्तः'
पदार्थ
१. (इमे गृहा:) = ये घर (मयोभुवः) = सुख उत्पन्न करनेवाले [भावयितारः] हैं, (ऊर्जस्वन्तः) = अन्न रसवाले हैं, (पयस्वन्त:) = क्षीरादि से समृद्ध हैं। (वामेन) = सेवनीय धन से (पूर्ण:) = सम्पूर्ण व समृद्ध होकर (तिष्ठन्त:) = स्थिर होते हुए (ते) = वे गृहजन घर पर (आयतः नः जानन्तु) = प्रवास से लौटे हुए हमें जानें। प्रवास से लौटे हुए पति का सब घरवाले उचित सत्कार करें।
भावार्थ
घर सुखी, अन्न-रसयुक्त, क्षीरादी-सम्पन्न व सेवनीय धन से पूर्ण हों। प्रवास से लौटने पर सब घरवाले गृह-स्वामी का स्वागत करें।
भाषार्थ
(ऊर्जस्वन्तः) अन्न रस वाले (पयस्वन्तः) दूधसम्पन्न (वामेन) शोभन वस्तुओं से (पूर्णाः) भरपूर हुए (तिष्ठन्तः) स्थित (इमे गृहाः) ये घर (मयोभुवः) सुखदायी होते हैं, (ते) वे गृह अर्थात् गृहवासी (आयतः नः१) आते हुए हमें (जानन्तु) जान लें, पहचान लें।
टिप्पणी
[गृहाः पद द्व्यर्थक है, शालारूप, तथा गृहवासी२। गृहवासियों के सम्बन्ध में "जानन्तु" शब्द प्रयुक्त हुआ है। यथा “तात्स्थ्यात्" गृहाः= गृहवासिनः। सुख है ऐन्द्रियिक, और मय: है मानसिक सन्तोष रूपी। सुखम्= सुहितं खेभ्यः, इन्द्रियेभ्यः]। [१. आयतः नः= एक वचन तथा बहुवचन एक ही व्यक्ति के निर्देशक है, 'अस्मदो द्वयोश्च' (अष्टा० १।२।५९)। २. यथा “मञ्चाः क्रोशन्ति"= मञ्चस्थाः पुरुषाः कोशन्ति।]
विषय
गृह स्वामि और गृह-बन्धुओं के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(इमे गृहाः) ये हमारे घर परिवार (मयः भुवः) सुख आनन्द के उत्पादक, (ऊर्जस्वन्तः) धन धान्य आदि से पूर्ण, (पयस्वन्तः) घी दूध मक्खन से भरपूर, (वामेन) धन से (पूर्णाः) भरे पूरे (तिष्ठन्तः) रहकर (ते) वे (आयतः) बाहर से आते हुए (नः) हम लोगों को अभ्युत्थान द्वारा (जानन्तु) जाने, सत्कार करें।
टिप्पणी
“गृहा मा बिभीत, मा वेपध्वमूर्जं विभ्रत एमसि। ऊर्ज बिभ्रदः सुमनाः सुमेधा गृहानैमि मनसा मोदमानः” इति यजु०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। रम्या गृहाः वास्तोष्पतयश्च देवलः। पराऽनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Happy Home
Meaning
These homes with their inmates are happy and peaceful, full of food, energy and enthusiasm, and they stay overflowing with cherished wealth, beauty and joy. And let them welcome us as we come and join.
Translation
These are our houses, giving happiness, rich in food and milk, and standing full of good wealth. May they recognize us as we approach.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.62.2AS PER THE BOOK
Translation
Let these houses full of family members be rich with wealth, be the store of milk and the place of happiness and have a plenty of riches. Let our people offer us standing ovation when we come to them.
Translation
Let these delightful houses, that are rich in foodstuffs and store of milk, replete with wealth and standing firm, become aware of our approach.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(इमे) (गृहाः) गृहस्थाः (मयोभुवः) अ० १।५।१। सुखस्य भावयितारः (ऊर्जस्वन्तः) अ० ३।१२।२। प्रभूतपराक्रमिणः (पयस्वन्तः) उत्तमजलदुग्धादिसमृद्धाः (पूर्णाः) समृद्धाः (वामेन) प्रशस्येन धनेन। वामः प्रशस्यः-निघ० ३।८। (तिष्ठन्तः) (ते) गृहाः (जानन्तु) अवबुध्यन्ताम् (आयतः) इण् गतौ-शतृ। आगच्छतः ॥
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