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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः, गृहसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रम्यगृह सूक्त
    45

    उप॑हूता॒ भूरि॑धनाः॒ सखा॑यः स्वा॒दुसं॑मुदः। अ॑क्षु॒ध्या अ॑तृ॒ष्या स्त॒ गृहा॒ मास्मद्बि॑भीतन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ऽहूता: । भूरि॑ऽधना: । सखा॑य: । स्वा॒दुऽसं॑मुद: । अ॒क्षु॒ध्या: । अ॒तृ॒ष्या: । स्त॒ । गृहा॑: । मा । अ॒स्मत् । बि॒भी॒त॒न॒ ॥६२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपहूता भूरिधनाः सखायः स्वादुसंमुदः। अक्षुध्या अतृष्या स्त गृहा मास्मद्बिभीतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽहूता: । भूरिऽधना: । सखाय: । स्वादुऽसंमुद: । अक्षुध्या: । अतृष्या: । स्त । गृहा: । मा । अस्मत् । बिभीतन ॥६२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुवचन के त्याग का उपदेश।

    पदार्थ

    (भूरिधनाः) बड़े धनी, (स्वादुसंमुदः) स्वादिष्ठ पदार्थों से आनन्द करनेवाले (सखायः) मित्र लोग (उपहूताः) स्वागत किये गये हैं। (गृहाः) हे घर के लोगो ! (अक्षुध्याः, अतृष्याः, स्त) तुम भूखे-प्यासे मत रहो, (अस्मत्) हम से (मा बिभीतन) मत भय करो ॥४॥

    भावार्थ

    बाहिर से आये हुए और घरवाले सब पुरुष प्रसन्न होकर परस्पर आनन्द करें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(उपहूताः) सत्कारेण प्रार्थिताः (भूरिधनाः) प्रभूतधनाः (सखायः) सुहृदः (स्वादुसंमुदः) स्वादुभी रोचकैः पदार्थैः संमोदमानाः (अक्षुध्याः) तदर्हति। पा० ५।१।६३। इत्यर्थे। छन्दसि च। पा० ५।१।६७। क्षुध्-य−प्रत्ययः। क्षुधं बुभुक्षामर्हन्तीति क्षुध्याः, न क्षुध्या अक्षुध्याः। क्षुधारहिताः (अतृष्याः) पूर्ववत् तृष्-य प्रत्ययः। तृष्णारहिताः (स्त) भवत (गृहाः) गृहस्थाः (अस्मत्) अस्मत्तः (मा बिभीतन) ञिभी भये लोटि तस्य तनादेशः। भयं मा प्राप्नुत ॥

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    विषय

    'भूरिधनाः स्वादुसंमुदः' गृहा:

    पदार्थ

    १. (भूरिधना:) = पालक व पोषक धन से युक्त (गृहा:) = घर (उपहूता:) = हमारे द्वारा प्रार्थित हुए हैं। प्रभु हमें ऐसे घरों को प्राप्त कराएँ जहाँ कि आवश्यक धन की कमी न हो, (सखायः) = जिस घर में रहनेवाले लोग परस्पर मित्रभाववाले हों [सखे ससपदी भव], (स्वादुसंमुदः) = ये घर स्वादिष्ट पदार्थों से प्रसन्नता को प्राप्त करानेवाले हों। (अक्षुध्याः अतष्याः स्त) = हे गृहो! आप भूखे और प्यासे ही न रह जाओ, अर्थात् घरों में खान-पान की कमी न हो। हे (गृहा:) = घर के लोगो! (अस्मत् मा बिभीतन) = हमसे भयभीत मत होवो, अर्थात् गृहपति का स्वभाव ऐसा मधुर हो कि उसके आने पर सब प्रसन्नता का अनुभव करें।

    भावार्थ

    हम उन घरों के लिए प्रार्थना करते हैं जो पर्याप्त धनवाले हैं, जहाँ लोग परस्पर मित्रभाव से रहते हैं, जहाँ स्वादिष्ट पदार्थ हर्ष का कारण बनते हैं, जहाँ लोग न भूखे हैं न प्यासे।

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    भाषार्थ

    (भूरिधनाः) बहुधनी, (स्वादुसंमुदः) स्वादु भोजनों में हर्ष का अनुभव करने वाले (सखायः) सखा (उपहूताः) सत्कारपूर्वक निमन्त्रित किये हैं, (गृहाः) हे गृहवासियों ! (मा अस्मत् बिभीतन) हमारे इस काम से भयभीत न होओ, (अक्षुध्याः अतृष्याः स्त) तुम क्षुधा और तृषा से पीड़ित न होयो।

    टिप्पणी

    [गृहपति प्रवास से बहुत धनोपार्जन कर (मन्त्र १) घर आया है। उस ने बहुधनी तथा स्वादुभोजन चाहने वाले मित्रों को निमन्त्रित किया है। इस निमन्त्रण में बहुत धन का व्यय होगा, यह जानकर गृहवासी भय भीत हो गये। गहपति उन्हें विश्वास दिलाता है कि तुम किसी प्रकार भी क्षुधा तृष्णा से पीड़ित न होओगे, मैं पर्याप्त धनोपार्जन कर लाया हूं]।

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    विषय

    गृह स्वामि और गृह-बन्धुओं के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (भूरि-धनाः) बहुत धनाढ्य, (स्वादु-संमुदः) स्वादु, सुखकारी, मिष्टान्न आदि पदार्थों में एकत्र होकर आनन्द लेने वाले, (सखायः) मित्रगण, (उप-हूताः) नाना अवसरों पर बुलाये जाया करें। और हे (गृहाः) घर के सम्बन्धी लोगो ! आप लोग (अक्षुध्याः) भूख से पीड़ित न होकर सदा तृप्त रहो, और (अतृष्याः स्त) कभी प्यासे न रह कर सदा तृप्त, भरपूर रहो, (अस्मत्) हम से (मा बिभीतन) भय मत करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। रम्या गृहाः वास्तोष्पतयश्च देवलः। पराऽनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Happy Home

    Meaning

    Invited and welcome are people, enjoy with ample wealth, be friendly, good at heart and joyous. O inmates of the homes, be free from hunger and thirst, fear us not, enjoy yourselves.

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    Translation

    Invited and assembled are here very wealthy friends who enjoy tasty meals. May you ever remain free from hunger and thirst; O houses, have no fear from us (be not afraid of us).

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.62.4AS PER THE BOOK

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    Translation

    O my family members; you greeted, possessing ample wealth amicable and enjoying with palatable food and drink be ever free from hunger free from thirst and never fear from us.

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    Translation

    Thus greeted, ye of ample wealth, friends who enjoy delightful sweets, be ever free from hunger, free from thirst! Ye inmates of the house fear us not.

    Footnote

    Us: Relatives who have returned from foreign lands.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(उपहूताः) सत्कारेण प्रार्थिताः (भूरिधनाः) प्रभूतधनाः (सखायः) सुहृदः (स्वादुसंमुदः) स्वादुभी रोचकैः पदार्थैः संमोदमानाः (अक्षुध्याः) तदर्हति। पा० ५।१।६३। इत्यर्थे। छन्दसि च। पा० ५।१।६७। क्षुध्-य−प्रत्ययः। क्षुधं बुभुक्षामर्हन्तीति क्षुध्याः, न क्षुध्या अक्षुध्याः। क्षुधारहिताः (अतृष्याः) पूर्ववत् तृष्-य प्रत्ययः। तृष्णारहिताः (स्त) भवत (गृहाः) गृहस्थाः (अस्मत्) अस्मत्तः (मा बिभीतन) ञिभी भये लोटि तस्य तनादेशः। भयं मा प्राप्नुत ॥

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