अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 6
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः, गृहसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रम्यगृह सूक्त
82
सू॒नृता॑वन्तः सु॒भगा॒ इरा॑वन्तो हसामु॒दाः। अ॑तृ॒ष्या अ॑क्षु॒ध्या स्त॒ गृहा॒ मास्मद्बि॑भीतन ॥
स्वर सहित पद पाठसू॒नृता॑ऽवन्त: । सु॒ऽभगा॑: । इरा॑ऽवन्त: । ह॒सा॒मु॒दा: । अ॒तृ॒ष्या: । अ॒क्षु॒ध्या: । स्त॒ । गृहा॑: । मा । अ॒स्मत् । बि॒भी॒त॒न॒ ॥६२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
सूनृतावन्तः सुभगा इरावन्तो हसामुदाः। अतृष्या अक्षुध्या स्त गृहा मास्मद्बिभीतन ॥
स्वर रहित पद पाठसूनृताऽवन्त: । सुऽभगा: । इराऽवन्त: । हसामुदा: । अतृष्या: । अक्षुध्या: । स्त । गृहा: । मा । अस्मत् । बिभीतन ॥६२.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
कुवचन के त्याग का उपदेश।
पदार्थ
(सूनृतावन्तः) प्रिय सत्य वचनवाले, (सुभगाः) बड़े ऐश्वर्यवाले, (इरावन्तः) उत्तम भोजनवाले, (हसामुदाः) हँस-हँस कर प्रसन्न करनेवाले, (गृहाः) हे घर के लोगो ! तुम (अतृष्याः, अक्षुध्याः स्त) प्यासे-भूखे मत रहो, (अस्मत्) हम से (मा बिभीतन) मत भय करो ॥६॥
भावार्थ
जो मनुष्य परस्पर सत्यभाषी, धर्मात्मा होते हैं, वे ही ऐश्वर्य बढ़ाकर सदा प्रसन्न रहते हैं ॥६॥
टिप्पणी
६−(सूनृतावन्तः) अ० ३।१२।२। सत्यप्रियवाग्युक्ताः (सुभगाः) शोभनैश्वर्यवन्तः (इरावन्तः) अन्नवन्तः-निघ० २।७। (हसामुदाः) हस हसने-क्विप+मुद मोदे क, अन्तर्गतण्यर्थः। हासेन मोदयमानाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ ॥
विषय
"सूनृतावन्तः सुभगाः' गृहाः
पदार्थ
१. हे (गृहा:) = गृह में रहनेवालो! तुम (सून्तावन्त: स्त) = प्रिय, सत्य वाणीवाले होओ [प्रवसति यजमाने गृहे जातमप्यरिष्टं पुनरागच्छति गृहस्वामिनि तहिवसे न ज्ञापनीयम्] (सुभगा:) = तुम शोभन भाग्य से युक्त होओ (इरावन्त:) =[इरा अन्न] प्रशस्त अन्नवाले हसामुदाः-हँसी के साथ प्रसन्न [मोदमान] होओ। हास से अभिव्यक्त सन्तोषवाले तुम होओ। २. (अतृष्याः अक्षुध्याः स्त) = भूखे प्यासे न रहो, तुम्हें खान-पान की कमी न हो। (गृहाः मा अस्मद् बिभीतन) = हे गृहो! हमसे भयभीत न होओ। गृहपति के मधुरस्वभाव से सबको प्रसन्नता ही हो।
भावार्थ
घर में प्रिय, सत्यवाणी, सौभाग्य, प्रशस्त अन्न व हास्य के साथ प्रमोद हो। यहाँ सब तृप्त हों तथा गृहपति का स्वभाव अत्यन्त मधुर हो।
भाषार्थ
(गृहाः) हे गृहवासियों ! (सूनृतावन्तः) परस्पर प्रिय तथा सत्य वाणी बोलने वाले, (सुभगाः) सौभाग्य वाले, (इरावन्तः) प्रभूत अन्न वाले, (हसामुदाः) हंसते तथा मोद-प्रमोद युक्त (अतृष्याः, अक्षुध्याः) तृषा और क्षुधा से पीड़ित (स्त) तुम होओ, (मा अस्मत्, बिभीतन) पुनः हमारे प्रवास में जाने पर भयभीत न होओ।
टिप्पणी
[मन्त्र (७) के अनुसार गृहपति धनोपार्जन के लिये पुनः प्रवास अर्थात् गृह से बाहिर जाना चाहता है। इस प्रयास से होने वाले, गृहवासियों के भय का परिहार गृहपति करता है। इरा अन्ननाम (निघं० २।७)।]
विषय
ऐसे हों हमारे घर
शब्दार्थ
(गृहा) हे गृहस्थ लोगो ! आप (सुनृतावन्तः) सत्यभाषी, मधुरभाषी और सुव्यवस्थित (स्तः) बनो (सुभगा:) उत्तम सौभाग्य-शाली, ऐश्वर्य-सम्पन्न बनो (इरावन्तः) अन्न और धन से भरपूर रहो (हसामुद:) सदा हँसमुख और प्रसन्न रहो (अतृष्याः) तृष्णारहित, संतोषी बनो (अक्षुध्या:) सदा तृप्त रहो, कभी अभावग्रस्त मत बनो और (अस्मद्) हमसे (मा विभीतन) भयभीत मत होओ ।
भावार्थ
मन्त्र में एक आदर्श गृहस्थ का चित्रण किया गया है । हमारे घर ऐसे होने चाहिएँ जहाँ - १. घर के सभी सदस्य सत्यवादी, मधुरभाषी और सुव्यवस्थाप्रिय हों । २. सभी पारिवारिक जन सौभाग्यशाली हों । ३. घर में अन्न और धन-धान्य की न्यूनता न हो । ४. परिवार के सभी सदस्य सदा हँसते औौर मुस्कराते रहें । ५. सभी निर्लोभी और सन्तोषी हों । ६. घर में कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त न हो, सभी तृप्त हों, सभी की आवश्यक इच्छाओं की पूर्ति होती रहे । ७. घर के सदस्य एक-दूसरे से भयभीत न हों । प्रभु हमें बल और शक्ति दें कि हम अपने घरों और परिवारों को ऐसा ही आदर्श वैदिक-परिवार बनाने में समर्थ हो सकें ।
विषय
गृह स्वामि और गृह-बन्धुओं के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (गृहाः) हमारे गृह और परिवार के बन्धुजनो ! आप लोग सा (सूनृता-वन्तः) सत्यभाषण किया करो, (सु-भगाः) सदा उत्तम भाग्यशाली, सम्पन्न और (इरा-वन्तः) धन धान्य से युक्त रहो। नित्य (हसा-मुदाः) हँसमुख, प्रसन्न रहो। सदा (अतृष्याः) तृष्णा रहित और (अक्षुध्याः) बिना भूख के, सदा तृप्त (स्त) रहो। और (अस्मद्) हमसे मा (बिभीतन) भय मत करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। रम्या गृहाः वास्तोष्पतयश्च देवलः। पराऽनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Happy Home
Meaning
Inmates of the home, be dedicated to holy truth and the law of divinity, be noble and prosperous, have ample food and drink, be comfortable, merry at heart and joyous. Let there be all freedom from hunger and thirst. Nothing to fear from us.
Translation
May you ever remain full of pleasant words, full of good fortune, full of gladdening drinks, full of laughter and pleasure, free from hunger and thirst. O houses, be not afraid of us.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.62.6AS PER THE BOOK
Translation
O immates of my house! you full of true-speech, full of refreshment and full of laughter and felicity be ever free from hunger and free from thirst. Let you not have any fear from us,
Translation
Ye, members of the family, always speak the truth, ever attain to prosperity, ever remain full of foodstuffs,, be full of laughter and felicity. Be ever free from hunger, free from thirst, and be not afraid of us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(सूनृतावन्तः) अ० ३।१२।२। सत्यप्रियवाग्युक्ताः (सुभगाः) शोभनैश्वर्यवन्तः (इरावन्तः) अन्नवन्तः-निघ० २।७। (हसामुदाः) हस हसने-क्विप+मुद मोदे क, अन्तर्गतण्यर्थः। हासेन मोदयमानाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ ॥
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