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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 57
    ऋषिः - बन्धुर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    ए॒ष ते॑ रुद्र भा॒गः स॒ह स्वस्राम्बि॑कया॒ तं जु॑षस्व॒ स्वाहै॒ष ते॑ रुद्र भा॒गऽआ॒खुस्ते॑ प॒शुः॥५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः। ते॒। रु॒द्र॒। भा॒गः। स॒ह। स्वस्रा॑। अम्बि॑कया। तम्। जु॒ष॒स्व॒। स्वाहा॑। ए॒षः। ते॒। रु॒द्र॒। भा॒गः। आ॒खुः। ते॒। प॒शुः ॥५७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष ते रुद्र भागः सह स्वस्राम्बिकया तञ्जुषस्व स्वाहैष ते रुद्र भाग आखुस्ते पशुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः। ते। रुद्र। भागः। सह। स्वस्रा। अम्बिकया। तम्। जुषस्व। स्वाहा। एषः। ते। रुद्र। भागः। आखुः। ते। पशुः॥५७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 57
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    Translation -
    O vital breath, this portion (of oblation) is for you. Take it and enjoy it with your sister, the autumn. Svaha. (1) О vital breath, this is your portion; let tubers be your food. (2)

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