अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 13/ मन्त्र 8
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - साम्नी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ये पुण्या॑नां॒पुण्या॑ लो॒कास्ताने॒व तेनाव॑ रुन्द्धे॥
स्वर सहित पद पाठये । पुण्या॑नाम् । पुण्या॑: । लो॒का: । तान् । ए॒व । तेन॑ । अव॑ । रु॒न्ध्दे॒ ॥१३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
ये पुण्यानांपुण्या लोकास्तानेव तेनाव रुन्द्धे॥
स्वर रहित पद पाठये । पुण्यानाम् । पुण्या: । लोका: । तान् । एव । तेन । अव । रुन्ध्दे ॥१३.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 13; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(तेन) अतिथि के उस चौथी रात के निवास के कारण, (ये) जो (पुण्यानाम्, पुण्याः) पुण्यों में भी अधिक पुण्य या पुण्यात्माओं के पुण्य (लोकाः) लोक हैं (तान्, एव) उन्हें ही गृहस्थी (अव रुन्द्धे) अपनाता है, प्राप्त करता है।