Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 18

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 18/ मन्त्र 5
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - स्वराडार्च्यनुष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त

    सूर्यं॒ ते द्यावा॑पृथि॒वीव॑न्तमृच्छन्तु। ये मा॑ऽघा॒यव॑ प्र॒तीच्याः॑ दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूर्य॑म्। ते। द्यावा॑पृथि॒वीऽव॑न्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। प्र॒तीच्याः॑।दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त् ॥१८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर्यं ते द्यावापृथिवीवन्तमृच्छन्तु। ये माऽघायव प्रतीच्याः दिशोऽभिदासात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूर्यम्। ते। द्यावापृथिवीऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। प्रतीच्याः।दिशः। अभिऽदासात् ॥१८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (ये) जो (अघायवः) पापेच्छुक-हत्यारे (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिम दिशा से (मा) मेरा (अभिदासात्) क्षय करें, (ते) वे (द्यावापृथिवीवन्तम्) द्युलोक और पृथिवीलोकसम्बन्धी (सूर्यम्) सूर्य के सदृश प्रकाशमान परमेश्वर [के न्यायदण्ड] को (ऋच्छन्तु) प्राप्त हों।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top