अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 18/ मन्त्र 9
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - प्राजापत्या त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
प्र॒जाप॑तिं॒ ते प्र॒जन॑नवन्तमृच्छन्तु। ये मा॑ऽघा॒यवो॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒जाऽप॑तिम्। ते। प्र॒जन॑नऽवन्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। ध्रु॒वायाः॑। दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त् ॥१८.९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापतिं ते प्रजननवन्तमृच्छन्तु। ये माऽघायवो ध्रुवाया दिशोऽभिदासात् ॥
स्वर रहित पद पाठप्रजाऽपतिम्। ते। प्रजननऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। ध्रुवायाः। दिशः। अभिऽदासात् ॥१८.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(ये) जो (अघायवः) पापेच्छुक-हत्यारे (ध्रुवायाः दिशः) स्थिर अर्थात् निचली दिशा से (मा) मेरा (अभिदासात्) क्षय करें, (ते) वे (प्रजननवन्तम्) उत्पत्तियों के कर्त्ता, तथा (प्रजापतिम्) प्रजाओं के स्वामी और रक्षक परमेश्वर [के न्यायदण्ड] को (ऋच्छन्तु) प्राप्त हों।
टिप्पणी -
[ध्रुवायाः= निचली दिशा ध्रुव रहती है, स्थिर रहती है। देशभेद से पूर्व आदि दिशाएँ बदलती रहती हैं। कोई प्रदेश अपने पश्चिम में स्थित प्रदेश से यदि पूर्व में है, तो वही अपने पूर्व में स्थित प्रदेश की अपेक्षा पश्चिम में है। इसी प्रकार उत्तर, दक्षिण आदि दिशाएँ भी अपेक्षाकृत परिवर्त्तित होती रहती हैं।]