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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 18

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 18/ मन्त्र 8
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त

    इन्द्रं॒ ते म॒रुत्व॑न्तमृच्छन्तु। ये मा॑ऽघा॒यव॑ ए॒तस्या॑ दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म्। ते। म॒रुत्ऽव॑न्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। ए॒तस्याः॑। दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त् ॥१८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं ते मरुत्वन्तमृच्छन्तु। ये माऽघायव एतस्या दिशोऽभिदासात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम्। ते। मरुत्ऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। एतस्याः। दिशः। अभिऽदासात् ॥१८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    (ये) जो (अघायवः) पापेच्छुक-हत्यारे (एतस्याः दिशः) इस दिशा से (मा) मेरा (अभिदासात्) क्षय करें, (ते) वे (मरुत्वन्तम्) मनुष्यजाति के स्वामी (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर [के न्यायदण्ड] को (ऋच्छन्तु) प्राप्त हों।

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