अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 27/ मन्त्र 3
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिवृत्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
ति॒स्रो दिव॑स्ति॒स्रः पृ॑थि॒वीस्त्रीण्य॒न्तरि॑क्षाणि च॒तुरः॑ समु॒द्रान्। त्रि॒वृतं॒ स्तोमं॑ त्रि॒वृत॒ आप॑ आहु॒स्तास्त्वा॑ रक्षन्तु त्रि॒वृता॑ त्रि॒वृद्भिः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठति॒स्रः। दिवः॑। ति॒स्रः। पृ॒थि॒वीः। त्रीणि॑। अ॒न्तरि॑क्षाणि। च॒तुरः॑। स॒मु॒द्रान्। त्रि॒ऽवृत॑म्। स्तोम॑म्। त्रि॒ऽवृतः॑। आपः॑। आ॒हुः॒। ताः। त्वा॒। र॒क्ष॒न्तु॒। त्रि॒ऽवृता॑। त्रि॒वृत्ऽभिः॑ ॥२७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
तिस्रो दिवस्तिस्रः पृथिवीस्त्रीण्यन्तरिक्षाणि चतुरः समुद्रान्। त्रिवृतं स्तोमं त्रिवृत आप आहुस्तास्त्वा रक्षन्तु त्रिवृता त्रिवृद्भिः ॥
स्वर रहित पद पाठतिस्रः। दिवः। तिस्रः। पृथिवीः। त्रीणि। अन्तरिक्षाणि। चतुरः। समुद्रान्। त्रिऽवृतम्। स्तोमम्। त्रिऽवृतः। आपः। आहुः। ताः। त्वा। रक्षन्तु। त्रिऽवृता। त्रिवृत्ऽभिः ॥२७.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 27; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
विद्वान् लोग (आहुः) कहते हैं कि (दिवः) द्युलोक (तिस्रः) तीन हैं, (पृथिवीः) पृथिवी (तिस्रः) तीन हैं, (अन्तरिक्षाणि) अन्तरिक्ष (त्रीणि) तीन हैं, (समुद्रान् चतुरः) समुद्र चार हैं, (त्रिवृतम् स्तोमम्) स्तोम भी त्रिवृत् है, (आपः) जल (त्रिवृतः) तीन प्रकार के हैं। (ताः) वे त्रिवृत्-जल, हे मनुष्य! (त्रिवृता) त्रिवृत् स्तोम द्वारा और (त्रिवृद्भिः) त्रिवृत् द्युलोक आदि द्वारा (त्वा) तुझे (रक्षन्तु) सुरक्षित रखें।
टिप्पणी -
[तिस्रः दिवः=द्युलोक में एक क्रान्तिवृत्त (Ecliptic) है, जिसमें कि सूर्य पृथिवी, पृथिवी सहित चन्द्रमा, तथा अन्य ग्रह यात्राएं कर रहे हैं। इस क्रान्तिवृत्त को २८ नक्षत्रों में बांटा गया है, राशियों की दृष्टि से इस क्रान्तिवृत्त के १२ विभाग किये जाते हैं। द्युलोक का एक विभाग है क्रान्तिवृत्त। क्रान्तिवृत्त के उत्तर में द्युलोक का उत्तरीय विभाग है, और दक्षिण में दक्षिणी विभाग। इस प्रकार द्युलोक के इन तीन विभागों को “तिस्रः दिवः”१ कहा है। द्युलोक के क्रान्तिवृत्त का अनुरूपीवृत्त, पृथिवी के भी तीन विभाग करता है। भूमध्यरेखा के साढ़े २३ अंश उत्तर और साढ़े २३ अंश दक्षिण में जो वृत्त फैला हुआ है, वह द्युलोक के क्रान्तिवृत्त का अनुरूपी है। इस अनुरूपी वृत्त के उत्तर में जो विभाग है, वह पृथिवी का उत्तरीय विभाग और अनुरूपी-वृत्त के दक्षिण में जो विभाग है, वह पृथिवी का दक्षिणी विभाग कहलाता है। इस प्रकार इन तीन विभागों को “तिस्रः पृथिवीः” कहा है। इसी दृष्टि से अन्तरिक्ष के भी तीन विभाग हैं। वर्तमान वैज्ञानिक कहते हैं कि “अतिशक्तिशाली दूरवीक्षण यन्त्र” द्वारा उन्हें आकाश गङ्गा (Milky way) में दो और द्युलोक दृष्टिगोचर हुए हैं। इस प्रकार प्रत्येक द्युलोक की दृष्टि से उनकी पृथिवियां और अन्तरिक्ष भी त्रिविध सम्भव हैं। समुद्रान्= पृथिवी का पूर्वसमुद्र, पश्चिम समुद्र, उत्तर समुद्र, तथा दक्षिण समुद्र। इन चार समुद्रों द्वारा पृथिवी घिरी हुई है। स्तोमम्= संगीत के तीन अंश हैं। ऋचा, स्तोम, और साम। संहिताओं में ऋचाएँ या मन्त्र दिये गये हैं। इन ऋचाओं की पुनरावृत्तियाँ गाने के लिए की जाती हैं, वह इनका गेयरूप बनता है। इसे स्तोम कहते हैं। जिस स्वर या राग में स्तोम गाया जाता है उसे साम कहते हैं। स्तोम कई प्रकार के होते हैं। यथा—“त्रिवृत् स्तोम, पंचदश स्तोम, त्रयस्त्रिंश स्तोम, एकविंश स्तोम” (अथर्व ८.९.२०)। इनमें से त्रिवृत् स्तोम गायत्री छन्द वाले तीन मन्त्रों द्वारा, निर्मित होता है। आपः— जल भी त्रिवृत् हैं, तीन प्रकार के हैं। भूमि गर्भस्थ जल, जैसे कि चश्मों तथा कूपों का जल। नदियों तथा समुद्रों का जल। तथा अन्तरिक्षस्थ जल।] [१. "त्रिदिवं दिव" (अथर्व० १०।१०।३२) में, दिव् (द्यौः) को त्रिदिव् कहा हैं। त्रिदिव्= तीन विभागों में विभक्त दिव्]