अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
सूक्त - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
औदु॑म्बरेण म॒णिना॒ पुष्टि॑कामाय वे॒धसा॑। प॑शू॒णां सर्वे॑षां स्फा॒तिं गो॒ष्ठे मे॑ सवि॒ता क॑रत् ॥
स्वर सहित पद पाठऔदु॑म्बरेण। म॒णिना॑। पुष्टि॑ऽकामाय। वे॒धसा॑। प॒शूना॑म्। सर्वे॑षाम्। स्फा॒तिम्। गो॒ऽस्थे। मे॒। स॒वि॒ता। क॒र॒त् ॥३१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
औदुम्बरेण मणिना पुष्टिकामाय वेधसा। पशूणां सर्वेषां स्फातिं गोष्ठे मे सविता करत् ॥
स्वर रहित पद पाठऔदुम्बरेण। मणिना। पुष्टिऽकामाय। वेधसा। पशूनाम्। सर्वेषाम्। स्फातिम्। गोऽस्थे। मे। सविता। करत् ॥३१.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(सविता) सर्वप्रेरक प्रधानमन्त्री ने (वेधसा) विद्वान् (औदुम्बरेण) उदुम्बर आदि वृक्षों के अधिपति (मणिना) राज्यरत्नरूपी वनाधिपति द्वारा (पुष्टिकामाय) पुष्टि की कामनावाले (मे) मुझ प्रत्येक प्रजाजन के लिए (गोष्ठे) मुझ प्रत्येक प्रजाजन की गोशाला में (सर्वेषाम्) सभी (पशूनाम्) पशुओं की (स्फातिम्) वृद्धि (करत्) की है।
टिप्पणी -
[सविता= षू प्रेरणे। वेधसा, वेधाः-विद्वान् (उणा० ४.२२६)। सर्वेषाम् = अश्व, गौ, अजा, अवि आदि। औदुम्बर= इसे ३१.९ में "वनस्पते"! द्वारा सम्बोधित किया है। वनस्पतिः= वनस्य पाता वा पालयिता, अर्थात् वनों का रक्षक तथा पालक। इसे ही ३१.१२ में "ग्रामणीः" भी कहा है, अर्थात् ग्रामों का नेता। उदुम्बर= गूलर वृक्ष।]