अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
सूक्त - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
पु॒ष्टिं प॑शू॒नां परि॑ जग्रभा॒हं चतु॑ष्पदां द्वि॒पदां॒ यच्च॑ धा॒न्यम्। पयः॑ पशू॒नां रस॒मोष॑धीनां॒ बृह॒स्पतिः॑ सवि॒ता मे॒ नि य॑च्छात् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ष्टिम्। प॒शू॒नाम्। परि॑। ज॒ग्र॒भ॒। अ॒हम्। चतुः॑ऽपदाम्। द्वि॒ऽपदाम्। यत्। च॒। धा॒न्य᳡म्। पयः॑। प॒शू॒नाम्। रस॑म्। ओष॑धीनाम्। बृह॒स्पतिः॑। स॒वि॒ता। मे॒। नि। य॒च्छा॒त् ॥३१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
पुष्टिं पशूनां परि जग्रभाहं चतुष्पदां द्विपदां यच्च धान्यम्। पयः पशूनां रसमोषधीनां बृहस्पतिः सविता मे नि यच्छात् ॥
स्वर रहित पद पाठपुष्टिम्। पशूनाम्। परि। जग्रभ। अहम्। चतुःऽपदाम्। द्विऽपदाम्। यत्। च। धान्यम्। पयः। पशूनाम्। रसम्। ओषधीनाम्। बृहस्पतिः। सविता। मे। नि। यच्छात् ॥३१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(चतुष्पदाम्) चौपायों और (द्विपदाम्) दोपायों (पशूनाम्) पशुओं का (पुष्टिम्) परिपोषण (अहम्) मैंने (परिजग्रभ) पर्याप्त पा लिया है, (च) और (धान्यम्) अनाज भी पर्याप्त पा लिया है। (बृहस्पतिः) महारक्षक (सविता) सर्वप्रेरक सर्वोत्पादक सर्वैश्वर्यों के स्वामी परमेश्वर ने (मे) मुझ प्रत्येक प्रजाजन के लिए (पशूनां पयः) पशुओं का दूध, और (ओषधीनाम्) औषधियों का (रसम्) रस (नि यच्छात्) नियुक्त किया हैं, दिया है।
टिप्पणी -
[पयः=पशुओं का दूध लेना चाहिए न कि मांस। रोगनिवृत्ति तथा स्वास्थ्य के लिए ओषधियों का रस अधिक उपयोगी होता है। सविता=इस पद द्वारा मन्त्र (१) में कथित प्रेरक प्रधानमन्त्री का भी ग्रहण किया जा सकता है। वह भी राष्ट्र की महासम्पत्तियों का रक्षक होता है।]