अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 12
सूक्त - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
ग्रा॑म॒णीर॑सि ग्राम॒णीरु॒त्थाया॒भिषि॑क्तो॒ऽभि मा॑ सिञ्च॒ वर्च॑सा। तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धार॒याधि॑ र॒यिर॑सि र॒यिं मे॑ धेहि ॥
स्वर सहित पद पाठग्रा॒म॒ऽनीः। अ॒सि॒। ग्रा॒म॒ऽनीः। उ॒त्थाय॑। अ॒भिऽसि॑क्तः। अ॒भि। मा॒। सि॒ञ्च॒। वर्च॑सा। तेजः॑। अ॒सि॒। तेजः॑। मयि॑। धा॒र॒य॒। अधि॑। र॒यिः। अ॒सि॒। र॒यिम्। मे॒। धे॒हि॒ ॥३१.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ग्रामणीरसि ग्रामणीरुत्थायाभिषिक्तोऽभि मा सिञ्च वर्चसा। तेजोऽसि तेजो मयि धारयाधि रयिरसि रयिं मे धेहि ॥
स्वर रहित पद पाठग्रामऽनीः। असि। ग्रामऽनीः। उत्थाय। अभिऽसिक्तः। अभि। मा। सिञ्च। वर्चसा। तेजः। असि। तेजः। मयि। धारय। अधि। रयिः। असि। रयिम्। मे। धेहि ॥३१.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(ग्रामणीः असि) तू ग्रामों का नेता है, (ग्रामणीः) ग्रामों का नेता तू (अभिषिक्तः) ग्रामों के नेतृत्व के लिए अभिषिक्त किया गया है। तू (उत्त्थाय) उद्यम करके (वर्चसा) अन्नों द्वारा (मा) मुझे (अभि सिञ्च) सींच दे, मुझ पर अन्नों की वर्षा कर। (तेजः असि) तू तेजस्वी है, (मयि) मुझ में तू (तेजः) तेज (अधि धारय) स्थापित कर। (रयिः असि) तू सम्पत्तियों का स्वामी है, (मयि) मुझमें तू (रयिम्) सम्पत्तियाँ (अधि धेहि) स्थापित कर।
टिप्पणी -
[ग्रामणीः= औदुम्बर-वनाधिपति को ग्रामों का भी नेता अर्थात् अधिपति नियत करना चाहिए। क्योंकि वनों तथा अन्नादि पुष्ट पदार्थों का सम्बन्ध ग्रामों के साथ होता है। अभिषिक्तः= प्रत्येक राज्याधिकारी को अधिकार सौंपते समय उसका अभिषेक होना चाहिए। वर्चसा= अन्नेन (निघं० २.७)। तेजः=तेजस्वी; रयिः=रयिमान। जिस राष्ट्र में अन्न का बाहुल्य हो, वह तेजस्वी अर्थात् प्रभावशाली और रयिमान् बन जाता है। ग्रामाधिपति होने से वनाधिपति “गार्हपत्य” भी है, गृहपतियों का शासक भी है (मन्त्र २)।]