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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 31

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 11
    सूक्त - सविता देवता - औदुम्बरमणिः छन्दः - पञ्चपदा शक्वरी सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त

    त्वं म॑णी॒नाम॑धि॒पा वृषा॑सि॒ त्वयि॑ पु॒ष्टं पु॑ष्ट॒पति॑र्जजान। त्वयी॒मे वाजा॒ द्रवि॑णानि॒ सर्वौदु॑म्बरः॒ स त्वम॒स्मत्स॑हस्वा॒रादा॒रादरा॑ति॒मम॑तिं॒ क्षुधं॑ च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम्। म॒णी॒नाम्। अ॒धि॒ऽपाः। वृषा॑। अ॒सि॒। त्वयि॑। पु॒ष्टम्। पु॒ष्ट॒ऽपतिः॑। ज॒जा॒न॒। त्वयि॑। इ॒मे इति॑। वाजाः॑। द्रवि॑णानि। सर्वा॑। औदु॑म्बरः। सः। त्वम्। अ॒स्मत्। स॒ह॒स्व॒। आ॒रात्। अरा॑तिम्। अम॑तिम्। क्षुध॑म्। च॒ ॥३१.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं मणीनामधिपा वृषासि त्वयि पुष्टं पुष्टपतिर्जजान। त्वयीमे वाजा द्रविणानि सर्वौदुम्बरः स त्वमस्मत्सहस्वारादारादरातिममतिं क्षुधं च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। मणीनाम्। अधिऽपाः। वृषा। असि। त्वयि। पुष्टम्। पुष्टऽपतिः। जजान। त्वयि। इमे इति। वाजाः। द्रविणानि। सर्वा। औदुम्बरः। सः। त्वम्। अस्मत्। सहस्व। आरात्। अरातिम्। अमतिम्। क्षुधम्। च ॥३१.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 11

    भाषार्थ -
    (मणीनाम्) राज्यरत्नों में (त्वम्) हे वनाधिपति! तू (अधिपाः) वनों का अधिपति, और (वृषा) वन्य सम्पत्तियों की वर्षा करनेवाला (असि) है। (पुष्टपतिः) पोषक तत्त्वों के स्वामी अर्थात् सम्राट् (मन्त्र ७) ने (त्वयि) तुझ में (पुष्टम्) पोषक पदार्थों का अधिकार (जजान) प्रकट किया है। (त्वयि) तेरे अधिकार में (इमे) ये (वाजाः) अन्न और (सर्वा) सब (द्रविणानि) वन्य सम्पत्तियाँ हैं। (सः) वह (औदुम्बरः) वनाधिपति (त्वम्) तू (अस्मत्) हम प्रजाजनों से (अरातिम्) दान न देने की भावना को, (अमतिम्) असन्मति अर्थात् कुमति को, (च) और (क्षुधम्) क्षुधा को (आरात्) दूर कर, (सहस्व) और विरोधी शक्तियों को पराभूत कर।

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