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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 27/ मन्त्र 6
    सूक्त - कपिञ्जलः देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुपराजय सूक्त

    रुद्र॒ जला॑षभेषज॒ नील॑शिखण्ड॒ कर्म॑कृत्। प्राशं॒ प्रति॑प्राशो जह्यर॒सान्कृ॑ण्वोषधे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रुद्र॑ । जला॑षऽभेषज । नील॑ऽशिखण्ड । कर्म॑ऽकृत् । प्राश॑म् । प्रति॑ऽप्राश: । ज॒हि॒ । अ॒र॒सान् । कृ॒णु॒ । ओ॒ष॒धे॒ ॥२७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रुद्र जलाषभेषज नीलशिखण्ड कर्मकृत्। प्राशं प्रतिप्राशो जह्यरसान्कृण्वोषधे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रुद्र । जलाषऽभेषज । नीलऽशिखण्ड । कर्मऽकृत् । प्राशम् । प्रतिऽप्राश: । जहि । अरसान् । कृणु । ओषधे ॥२७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    (रुद्र) हे रौद्र कर्म करनेवाले ! [मध्यस्थानी इन्द्र = विद्युत् ], (जलाषभेषज) हे उदक द्वारा चिकित्सा करनेवाले, (नीलशिखण्ड) हे नीली शिखा तथा नीले पुंछ सहित मोरोंवाले ! (कर्मकृत्) हे कृषिकर्म के करनेवाले मेघ !।

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