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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 143

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 143/ मन्त्र 7
    सूक्त - पुरमीढाजमीढौ देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १४३

    इ॒हेह॒ यद्वां॑ सम॒ना प॑पृ॒क्षे सेयम॒स्मे सु॑म॒तिर्वा॑जरत्ना। उ॑रु॒ष्यतं॑ जरि॒तारं॑ यु॒वं ह॑ श्रि॒तः कामो॑ नासत्या युव॒द्रिक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒हऽइ॑ह । यत् । वा॒म् । स॒म॒ना । प॒पृ॒क्षे । सा । इयम् । अ॒स्मे । इति॑ । सु॒ऽम॒ति: । वा॒ज॒ऽर॒त्ना॒ ॥ उ॒रु॒ष्यत॑म् । ज॒रि॒तार॑म् । यु॒वम् । ह॒ । श्रि॒त: । काम॑: । ना॒स॒त्या॒ । यु॒व॒द्रिक् ॥१४३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेह यद्वां समना पपृक्षे सेयमस्मे सुमतिर्वाजरत्ना। उरुष्यतं जरितारं युवं ह श्रितः कामो नासत्या युवद्रिक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इहऽइह । यत् । वाम् । समना । पपृक्षे । सा । इयम् । अस्मे । इति । सुऽमति: । वाजऽरत्ना ॥ उरुष्यतम् । जरितारम् । युवम् । ह । श्रित: । काम: । नासत्या । युवद्रिक् ॥१४३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 143; मन्त्र » 7

    भाषार्थ -
    (इह इह) इन इन विषयों अर्थात् नाना विषयों के सम्बन्ध में (यद्) जो (वाम्) हे अश्वियो! तुम दोनों की (समना) मानो एक मन होकर सुनिश्चित (सुमतिः) सुमति है, (सा) वह सुमति (अस्मे पपृक्षे) हम प्रजाजनों को दीजिए, उसी के साथ हमारा संपर्क रहे। (इयम्) यह सुमति (वाजरत्ना) हमें अन्न बल तथा नानाविध रत्न प्रदान करती है। (युवम्) तुम दोनों (जरितारम्) आपके प्रशंसक प्रजावर्ग की (उरुष्यतम्) रक्षा करो। (नासत्या) असत्य व्यवहारों से रहित हे अश्वियो! (कामः) हम प्रजावर्ग की कामना, (ह) निश्चय से, (युवद्रिक्, श्रितः) एकमात्र आश्रयरूप आप पर आश्रित है।

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