अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 19/ मन्त्र 1
वार्त्र॑हत्याय॒ शव॑से पृतना॒षाह्या॑य च। इन्द्र॒ त्वा व॑र्तयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठवार्त्र॑ऽहत्याय । शव॑से । पृ॒त॒ना॒ऽसह्या॑य । च॒ ॥ इन्द्र॑ । त्वा॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ ॥१९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च। इन्द्र त्वा वर्तयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठवार्त्रऽहत्याय । शवसे । पृतनाऽसह्याय । च ॥ इन्द्र । त्वा । आ । वर्तयामसि ॥१९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(वार्त्रहत्याय) पाप-वृत्रों के हनन के लिए, (शवसे) इस निमित्त आपसे बल की प्राप्ति के लिए (च) और (पृतनाषाह्याय) कामादि की समग्र सेना के पराभव के लिए, (इन्द्र) हे परमेश्वर! हम (त्वा) आपको (वर्तयामसि) आपकी ओर प्रवृत्त करते हैं।