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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१९

    अ॑र्वा॒चीनं॒ सु ते॒ मन॑ उ॒त चक्षुः॑ शतक्रतो। इन्द्र॑ कृ॒ण्वन्तु॑ वा॒घतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्वा॒चीन॑म् । सु । ते॒ । मन॑: । उ॒त । चक्षु॑: । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो ॥ इन्द्र॑ । कृ॒ण्वन्तु॑ । वा॒घत॑: ॥१९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्वाचीनं सु ते मन उत चक्षुः शतक्रतो। इन्द्र कृण्वन्तु वाघतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्वाचीनम् । सु । ते । मन: । उत । चक्षु: । शतक्रतो इति शतऽक्रतो ॥ इन्द्र । कृण्वन्तु । वाघत: ॥१९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 19; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (शतक्रतो) हे सर्वशक्तिमन् या सैकड़ों अद्भुत कर्मोंवाले! (इन्द्र) हे परमेश्वर! (वाघतः) उपासना-यज्ञ के ऋत्विक् (ते) आपके (मनः) मन को (उत) और (चक्षुः) आपकी कृपादृष्टि को (अर्वाचीनम्) हमारी ओर अर्थात् हम शिष्य उपासकों की ओर (सु) सुगमतापूर्वक (कृण्वन्तु) कर दें। अर्थात् वे ऋत्विक् हमें साधनामार्ग पर प्रेरित करें। ताकि आपकी कृपादृष्टि हम नव-उपासकों की ओर भी हो सके।

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