अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
आ तू न॑ इन्द्र म॒द्र्यग्घुवा॒नः सोम॑पीतये। हरि॑भ्यां याह्यद्रिवः ॥
स्वर सहित पद पाठआ । तु । न॒: । इ॒न्द्र॒ । म॒द्र्य॑क् । हु॒वा॒न: । सोम॑ऽपीतये ॥ हरि॑ऽभ्याम् । या॒हि॒ । अ॒द्रि॒ऽव॒: ॥२३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आ तू न इन्द्र मद्र्यग्घुवानः सोमपीतये। हरिभ्यां याह्यद्रिवः ॥
स्वर रहित पद पाठआ । तु । न: । इन्द्र । मद्र्यक् । हुवान: । सोमऽपीतये ॥ हरिऽभ्याम् । याहि । अद्रिऽव: ॥२३.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (हुवानः) पुकारे गये आप (मद्र्यक्) मुझ उपासक की ओर आइए, (सोमपीतये) मेरे भक्तिरस के पान के लिए। (अद्रिवः) हे पापों का भक्षण करनेवाले! (हरिभ्याम्) ऋक् और साम की स्तुतियों और गानों द्वारा, आप (नः) हमारी ओर (तू) शीघ्र (आ याहि) प्रवृत्त हूजिए।
टिप्पणी -
[अद्रिः=अत्तेः (निरु০ ४.१.४)।]