अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 62/ मन्त्र 3
यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ व स्तुषे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । न॒: । इ॒दम्ऽइ॑दम् । पु॒रा । प्र । वस्य॑: । आ॒ऽनि॒नाय॑ । तम् । ऊं॒ इति॑ । व॒: । स्तु॒षे॒ ॥ सखा॑य: । इन्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥६२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु व स्तुषे। सखाय इन्द्रमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठय: । न: । इदम्ऽइदम् । पुरा । प्र । वस्य: । आऽनिनाय । तम् । ऊं इति । व: । स्तुषे ॥ सखाय: । इन्द्रम् । ऊतये ॥६२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
हे उपासको! (यः) जो परमेश्वर, (नः) हम सबके लिए, (पुरा) अनादिकाल से, (इदम् इदम्) अमुक-अमुक (वस्यः) उत्तमोत्तम सम्पत्तियाँ (प्र आनिनाय) लाता रहा है, (वः) तुम्हारे ज्ञान के लिए (तम् उ) उस ही परमेश्वर का (स्तुषे) मैं कथन करता हूँ। (सखायः) हे सर्वभूत-मैत्री से सम्पन्न उपासको! (ऊतये) तुम्हारी रक्षा के लिए (इन्द्रम्) उस परमेश्वर का (स्तुषे) मैं कथन करता हूँ।