अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 14/ मन्त्र 4
इ॒हैव गा॑व॒ एत॑ने॒हो शके॑व पुष्यत। इ॒हैवोत प्र जा॑यध्वं॒ मयि॑ सं॒ज्ञान॑मस्तु वः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । ए॒व । गा॒व॒: । आ । इ॒त॒न॒ । इ॒हो॒ इति॑ । शका॑ऽइव । पु॒ष्य॒त॒ । इ॒ह । ए॒व । उ॒त । प्र । जा॒य॒ध्व॒म् । मयि॑ । स॒म्ऽज्ञान॑म् । अ॒स्तु॒ । व॒: ॥१४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इहैव गाव एतनेहो शकेव पुष्यत। इहैवोत प्र जायध्वं मयि संज्ञानमस्तु वः ॥
स्वर रहित पद पाठइह । एव । गाव: । आ । इतन । इहो इति । शकाऽइव । पुष्यत । इह । एव । उत । प्र । जायध्वम् । मयि । सम्ऽज्ञानम् । अस्तु । व: ॥१४.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 14; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(गावः) हे गौओ! (इह एव) इस गोशाला में ही (एतन) आओ, (इह उ) इस गोशाला में ही (पुष्यत) परिपुष्ट होओ, परिपुष्टान्न का ग्रहण करो, (शका इव) शक्तिशाली हस्तिनी१ के सदृश परिपुष्ट होओ। (इह एव) इस गोशाला में ही (प्रजायध्वम्) सन्तानें पैदा करो। (मयि) मुझ गोशालाधिपति में (व:) तुम्हारा (संज्ञानम्) ऐकमत्य या संप्रीति (अस्तु) हो।
टिप्पणी -
[ग्वाले के साथ गौएँ संचरणार्थ बाहर जाती हैं, उनके प्रति कहा है कि लौटकर तुम अपनी गोशाला में ही वापिस आओ, भ्रमवश अन्य किसी स्थान में न चली जाओ। सायणाचार्य ने "शका" का अर्थ किया है "मक्षिका, अर्थात् जैसे मक्षिकाएँ प्रभूत संख्या में पैदा हो जाती हैं, वैसे हे गौओ! तुम भी प्रभूत संतानों को को पैदा करो।] [१. गौएँ भी महाकाया होती हैं, और हस्तिनी भी महाकाया होती है। गौ और हस्तिनी दोनों पद स्त्रीलिङ्गी हैं। इस प्रकार दोनों में साम्य है। हस्तिनी शका है, शक्तिशाली है। मक्षिका शक्तिशाली नहीं। ]