अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 14/ मन्त्र 6
मया॑ गावो॒ गोप॑तिना सचध्वम॒यं वो॑ गो॒ष्ठ इ॒ह पो॑षयि॒ष्णुः। रा॒यस्पोषे॑ण बहु॒ला भव॑न्तीर्जी॒वा जीव॑न्ती॒रुप॑ वः सदेम ॥
स्वर सहित पद पाठमया॑ । गा॒व॒: । गोऽप॑तिना । स॒च॒ध्व॒म् । अ॒यम् । व॒: । गो॒ऽस्थ: । इ॒ह । पो॒ष॒यि॒ष्णु: । रा॒य: । पोषे॑ण । ब॒हु॒ला: । भव॑न्ती: । जी॒वा: । जीव॑न्ती: । उप॑ । व॒: । स॒दे॒म॒ ॥१४.६॥
स्वर रहित मन्त्र
मया गावो गोपतिना सचध्वमयं वो गोष्ठ इह पोषयिष्णुः। रायस्पोषेण बहुला भवन्तीर्जीवा जीवन्तीरुप वः सदेम ॥
स्वर रहित पद पाठमया । गाव: । गोऽपतिना । सचध्वम् । अयम् । व: । गोऽस्थ: । इह । पोषयिष्णु: । राय: । पोषेण । बहुला: । भवन्ती: । जीवा: । जीवन्ती: । उप । व: । सदेम ॥१४.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 14; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(गाव:) है गौओ! (मया गोपतिना) मुझ गोपति के साथ (सचध्यम्) तुम सम्बद्ध रहो, (इह) इस स्थान में (व: गोष्ठः) तुम्हारी गोशाला है, (अयम्) यह गोष्ठ अर्थात् गोशाला (व:) तुम्हारी (पोषयिष्णुः) पोषिका है। (रायस्पोषेण) धन की पुष्टि द्वारा (बहुला भवन्तीः) बहुत होती हुई, (जीवन्तीः) तथा चिरकाल तक जीवित रहती हुई (व:) तुम्हारे (उप) समीप (जीवाः) जीवित हम (सदेम) स्थित रहे।
टिप्पणी -
[रायस्पोषेण=धन की पुष्टि है, धन की समृद्धि। गौओं के घृतादि के विक्रय द्वारा धन का आधिक्य हो जाता है और धनाधिक्य से गौओं को खरीद कर गौओं का बाहुल्य हो जाता है। जीवा: मनुष्यों का जीवन, गौओं के दुग्ध, दधि तथा घृत के सेवन से बढ़ता है और वे दीर्घायु हो जाते हैं। दुग्धादि शरीर की परिपुष्टि करते हैं। गौओं का दुग्धादि सात्त्विक होता है, सत्त्व के बढ़ने से आयु दीर्घ हो जाती है।]