अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 29/ मन्त्र 7
सूक्त - उद्दालकः
देवता - कामः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा उपरिष्टाद्दैवी बृहती ककुम्मतीगर्भा विराड्जगती
सूक्तम् - अवि सूक्त
क इ॒दं कस्मा॑ अदा॒त्कामः॒ कामा॑यादात्। कामो॑ दा॒ता कामः॑ प्रतिग्रही॒ता कामः॑ समु॒द्रमा वि॑वेश। कामे॑न त्वा॒ प्रति॑ गृह्णामि॒ कामै॒तत्ते॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक: । इ॒दम् । कस्मै॑ । अ॒दा॒त् । काम॑: । कामा॑य । अ॒दा॒त् । काम॑: । दा॒ता । काम॑: । प्र॒ति॒ऽग्र॒ही॒ता । काम॑: । स॒मु॒द्रम् । आ । वि॒वे॒श॒ । कामे॑न । त्वा॒ । प्रति॑ । गृ॒ह्णा॒मि॒ । काम॑ । ए॒तत् । ते॒ ॥२९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
क इदं कस्मा अदात्कामः कामायादात्। कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामः समुद्रमा विवेश। कामेन त्वा प्रति गृह्णामि कामैतत्ते ॥
स्वर रहित पद पाठक: । इदम् । कस्मै । अदात् । काम: । कामाय । अदात् । काम: । दाता । काम: । प्रतिऽग्रहीता । काम: । समुद्रम् । आ । विवेश । कामेन । त्वा । प्रति । गृह्णामि । काम । एतत् । ते ॥२९.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 29; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(क:) किसने (इदम्) यह राजपद (अदात्) दिया है, (कस्मै) किसके लिए दिया है। (कामः) कामना ने (कामाय अदात्) कामना के लिए दिया है। (कामः दाता) कामना देनेवाली है, (कामः प्रतिग्रहीता) कामना ग्रहण करनेवाली अर्थात् स्वीकार करनेवाली है, (कामः) कामना (समुद्रम् आविवेश) हृदय-समुद्र में प्रविष्ट हुई है। (कामेन) कामना द्वारा (त्वा) तुझ राजपद को (प्रतिगृह्णामि) मैं राजा स्वीकार करता हूँ। (काम) हे कामना ! (एतत्) यह राजपद (ते) तेरे लिए या तेरा है।
टिप्पणी -
[अभिप्राय यह कि प्रजा ने यदि राजा को राजपद दिया, तो अपनी कामना की पूर्ति के लिए दिया, ताकि उसकी सुरक्षा हो सके, और राजा ने जो राजपद ग्रहण किया, वह इसलिए की प्रजा में उसका मान और यश हो सके। इस प्रकार प्रदान-और-प्रतिग्रह परस्पर की स्वार्थपूर्ति के लिए हैं। इस प्रदान और प्रतिग्रह की कामना का स्त्रोत हृदय-समुद्र है। हृदयात्समुद्रात् (यजु० १७।९३) तथा (अथर्व० १६।३।६)। इस प्रकार सांसारिक व्यवहार "प्रदान-प्रतिग्रह" स्वार्थपूर्ति के अधीन हैं। कामना के सम्बन्ध में तत्त्वदर्शन की व्याख्या के लिए देखो याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का संवाद (अध्याय ४। ब्राह्मण ५। सन्दर्भ बृहदारण्यक उपनिषद्)।]