अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 21/ मन्त्र 7
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
परा॒मित्रा॑न्दुन्दु॒भिना॑ हरि॒णस्या॒जिने॑न च। सर्वे॑ दे॒वा अ॑तित्रस॒न्ये सं॑ग्रा॒मस्येश॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठपरा॑ । अ॒मित्रा॑न् । दु॒न्दु॒भिना॑ । ह॒रि॒णस्य॑ । अ॒जिने॑न । च॒ । सर्वे॑ । दे॒वा: । अ॒ति॒त्र॒स॒न् । ये । स॒म्ऽग्रा॒मस्य॑ । ईश॑ते ॥२१.७॥
स्वर रहित मन्त्र
परामित्रान्दुन्दुभिना हरिणस्याजिनेन च। सर्वे देवा अतित्रसन्ये संग्रामस्येशते ॥
स्वर रहित पद पाठपरा । अमित्रान् । दुन्दुभिना । हरिणस्य । अजिनेन । च । सर्वे । देवा: । अतित्रसन् । ये । सम्ऽग्रामस्य । ईशते ॥२१.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(दुन्दुभिना) दुन्दुभि द्वारा, (च) और (हरिणस्य) हरिण के (अजिनेन) चर्म द्वारा, (सर्वे देवाः) सब देवों ने (अतित्रसन् ) शत्रुसेनाओं को भयभीत कर दिया है, ( ये ) जो देव कि (संग्रामस्य ) संग्राम के (ईशते) अधीश्वर हैं।
टिप्पणी -
[ये देव हैं सम्राट की सेना की देखभाल करनेवाले अधिकारी। सम्राट् के दुन्दुभि का घोष परसेना को भयभीत कर देता है, परन्तु हरिणों के अजिन, पर सेना को अतिभयभीत कर देते हैं। ये है अजिनों में छिपे सैनिक। शत्रु तो जानते है कि ये हरिण हैं, इन्हें आसानी से मारा जा सकता है, परन्तु ये हरिण भी जब लड़ते हैं तो शत्रु सेना अतिभयभीत हो जाती है, यह जानकर कि सम्राट के हरिण भी युद्ध करते हैं तो सम्राट की सेनाओं के साथ लड़ना तो अतिशय दुष्कर हो गया। हरिणों के अजिन-अजिनों में ढके सम्राट के सैनिक।]