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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 128/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वाङ्गिरा
देवता - सोमः, शकधूमः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राजा सूक्त
श॑क॒धूमं॒ नक्ष॑त्राणि॒ यद्राजा॑न॒मकु॑र्वत। भ॑द्रा॒हम॑स्मै॒ प्राय॑च्छन्नि॒दं रा॒ष्ट्रमसा॒दिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठश॒क॒ऽधूम॑म् । नक्ष॑त्राणि । यत् । राजा॑नम् । अकु॑र्वत । भ॒द्र॒ऽअ॒हम् । अ॒स्मै॒ । प्र । अ॒य॒च्छ॒न् । इ॒दम् ।रा॒ष्ट्रम् । असा॑त् । इति॑ ॥१२८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शकधूमं नक्षत्राणि यद्राजानमकुर्वत। भद्राहमस्मै प्रायच्छन्निदं राष्ट्रमसादिति ॥
स्वर रहित पद पाठशकऽधूमम् । नक्षत्राणि । यत् । राजानम् । अकुर्वत । भद्रऽअहम् । अस्मै । प्र । अयच्छन् । इदम् ।राष्ट्रम् । असात् । इति ॥१२८.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 128; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(नक्षत्राणि) नक्षत्रों ने (यद्) जो (शकधूमम्) शक्तिशाली धूम को (राजानम्) अपना राजा (अकुर्वत्) किया तो उन्होंने (अस्मै) इस योगी के लिये (भद्राहम्) सुखदायक और कल्याणकारी दिन मानो (प्रायच्छन्) प्रदान किया, ताकि (इदम्) यह (राष्ट्रम्) राष्ट्र भी (भद्राहम्१) सुखदायक तथा कल्याणकारी दिनों वाला (असात् इति) हो जाय, इसलिये।
टिप्पणी -
[मन्त्र का विषय योग साधना का है। यथा “नीहारधूमार्कानलानिलानां खद्योतविद्युत्स्फटिकशशीनाम्। एतानि रूपाणि पुरःसराणि ब्रह्मण्यभिव्यक्तिकराणि योगे॥" (श्वेता उप० अ० २ खण्ड ११)। कोहरा, धूम, सूर्य, अग्नि, वायु, तारे, विद्युत्, स्फटिक, चन्द्रमा,–ये रूप ब्रह्म की अभिव्यक्ति कराने के पूर्वरूप हैं। इनमें खद्योत अर्थात् आकाश के द्युतिमात् तारे नक्षत्र कहे हैं। इन्होंने "धूम" को मित्र राजा माना, क्योंकि इस धूम के प्रकट हो जाने के पश्चात् ही शेष रूप सूर्य आदि प्रकट होते हैं। इन्होंने नीहार अर्थात् कोहरे को राजा नहीं माना। कोहरा तो चक्षु के दबाने पर भी प्रकट हो जाता है। अतः यह योगाभ्यास में अङ्ग नहीं। जिस योगाभ्यासी को "धूम" प्रकट हो जाता है मानो उसके लिये भद्र दिन का उदय हुआ, और उसके राष्ट्र के लिये भी भद्र दिन का उदय हुआ। यह "धूम" "शक" है शक्तिशाली है, क्योंकि अन्य आध्यात्मिक सूर्य आदि के प्रकटीकरण में यह शक्ति रखता है। भद्राहम्= भद्र' च तत् अहश्चेति भद्राहः, समासान्तः टच् (अष्टा० ५।४।९१)।] [१. भदि कल्याणे सुखे च (भ्वादिः)]