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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 128/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वाङ्गिरा
देवता - सोमः, शकधूमः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राजा सूक्त
अ॑होरा॒त्राभ्यां॒ नक्ष॑त्रेभ्यः सूर्याचन्द्र॒मसा॑भ्याम्। भ॑द्रा॒हम॒स्मभ्यं॑ राज॒ञ्छक॑धूम॒ त्वं कृ॑धि ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हो॒रा॒त्राभ्या॑म् । नक्ष॑त्रेभ्य: । सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसा॑भ्याम् । भ॒द्र॒ऽअ॒हम् । अ॒स्मभ्य॑म् । रा॒ज॒न् । शक॑ऽधूम । त्वम् । कृ॒धि॒ ॥१२८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अहोरात्राभ्यां नक्षत्रेभ्यः सूर्याचन्द्रमसाभ्याम्। भद्राहमस्मभ्यं राजञ्छकधूम त्वं कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठअहोरात्राभ्याम् । नक्षत्रेभ्य: । सूर्याचन्द्रमसाभ्याम् । भद्रऽअहम् । अस्मभ्यम् । राजन् । शकऽधूम । त्वम् । कृधि ॥१२८.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 128; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(शकधूम राजन्) हे राजा रूप शक्तिशाली धूम ! (प अहोरात्राभ्याम्) दिन और रात से (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रों से, (सूर्याचन्द्रमसाभ्याम्) और चन्द्रमा से (त्वम्) तू (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (भद्राहम्) भद्रदिन (कृधि) कर१।
टिप्पणी -
[अस्मभ्यम्= हम राष्ट्रजनों के लिये (मन्त्र १)। योगाभ्यासी में शकधूम के प्रकट हो जाने पर राष्ट्र के जनों के लिये प्राकृतिक शक्तियां सुख दायक हो जाती है।२] [१. अथवा "प्रतिदिन-रात आध्यात्मिक खद्योतों से, आध्यात्मिक सूर्य-चन्द्रमा से सुखदायक तथा कल्याणकारी दिन, हे शकधूम ! तू हमारे लिये कर। आध्यात्मिक खद्योत है जभ्यास में चमकते तारागण, आध्यात्मिक सूर्य है अर्क, और आध्यात्मिक चन्द्रमा है शशी" (श्वेता उप० २।११)। २. पूर्णयोगी को प्राकृतिक शक्तियों पर प्रभुत्व प्राप्त हो जाता है। वह राष्ट्र के लिये प्राकृतिक शक्तियों द्वारा सुख प्रदान करा सकता है (योग ३।४४;४८,४९)।]