Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 64

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 64/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - विश्वे देवाः, मनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त

    स॑मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः। स॑मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ वः॒ सुस॒हास॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मा॒नी । व॒: । आऽकू॑ति: । स॒मा॒ना । हृद॑यानि । व॒: । स॒मा॒नम् । अ॒स्तु॒ । व: । मन॑: । यथा॑ । व॒: । सुऽस॑ह । अस॑ति॥६४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः। समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समानी । व: । आऽकूति: । समाना । हृदयानि । व: । समानम् । अस्तु । व: । मन: । यथा । व: । सुऽसह । असति॥६४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 64; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (वः) तुम्हारा (आकूतिः) संकल्प (समानी) एकरूप हो, (वः) तुम्हारे (हृदयानि) हृदय (समाना= समानानि) एकरूप हों [हार्दिक भावनाएं एकरूप हों]। [हार्दिक भावनाएं एकरूप हों]। (वः) तुम्हारा (मनः) मनन (समानम्) एकरूप (अस्तु) हो, (यथा) जिस प्रकार से (वः) तुम्हारा (सु सह) उत्तम पारस्परिक मेल (असति) बना रहे। अथवा पारस्परिक सहायता बनी रहे।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top